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किरण ३-४]
नियतिवाद
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समाजके कर्णधारोंसे यह नम्र निवेदन कर देना चाहता हूँ ही सही, अमली जामा पहिना करके उनकी आन्तरिक कि उक्र सज्जनका सुझाव प्राचार्यश्राके प्रवचनके अनुरूप ही भावनाको मूर्तमान रूप देकर अपना कर्तव्य पालन करना नहीं, प्रतिध्वनि रूप है । यदि सारे भारतके जैनियोंने चाहिए। महाराजकी प्रात्मा स्वर्गसे यह देखकर अत्यन्त प्राचार्यश्रीके स्वर्गवास पर श्रद्धाके फूल चढ़ाकर सचमुचमें शान्तिका अनुभव करेगी कि मेरे भक्क मेरे जीते जी तो नहीं शोक सभाएं की हैं और वास्तवमें थे महाराजकी स्मृतिको चेते तो. चलो अब मेरे चले पानेके बाद उनका ध्यान मेरी कायम रखना चाहते हैं, तो उन्हें स्वयं महाराजके द्वारा मेरी बातों पर गया है और वे उसे पूरा करनेके लिए कृतदिये गये सुझावको यदि वे उनके जीवन में अमली रूप नहीं संकल्प हुए हैं । महाराजकी स्वर्गस्थ भारमा वहींसे तुम्हें दे सके हैं. तो कम-से-कम अब तो उनके स्वर्गवासके बाद आशीर्वाद देगी कि तुम सबका कल्याण हो ।
नियतिवाद
(प्रो० महेन्द्र कुमारजी न्यायाचार्य, एम० ए०) नियतिवादियोंका कहना है कि-जिसका जिस हेतु नहीं, प्रत्यय नहीं । बिना हेतु, बिना प्रत्यय ही समयमें जहाँ जो होना है वह होता ही है। ताक्षण प्राणी क्लेश पाते हैं। प्राणियोंकी शुद्धिका कोई हेतु शस्त्र घात होने पर भी यदि मरण नहीं होना है तो नहीं, प्रत्यय नहीं है। बिना प्रत्यय ही प्राणी विशुद्ध व्यक्ति जीवित ही बच जाता है और जब मरनेकी होते हैं। न आत्मकार है, न परकार है न पुरुषघड़ी आ जाती है तब विना किसी कारणके ही कार है, न बल है न वीर्य है, न पुरुषका पराक्रम है। जीवनकी घड़ी बन्द हो जाती है।
सभी सत्व, सभी प्राणी, सभी जीव अवश्य हैं, बल___"प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति वीर्य-रहित हैं। नियतिसे निर्मित अवस्था में परिणत न्टणां शुभोऽशुभो वा । भूतानां महति कृतेऽपि प्रयत्ने नाभाव्यं होकर छह ही अभिजातियों में सुख-दुःख अनुभव भवति न भाविनोऽस्ति नाशः ॥
करते हैं।....."वहाँ यह नहीं है कि इस शील तसे अर्थात मनुष्योंको नियतिके कारण जो भी शुभ इस तप ब्रह्मचर्य से मैं अपरिपक्व कर्मको परिपक्व और अशुभ प्राप्त होना है वह अवश्य ही होगा। करूँगा, परिपक्व कर्मको भागकर अन्त करूंगा । प्राणों कितना भी प्रयत्न करलें पर जो नहीं होना है सुख और दुःख द्रोणसे नपे हुए हैं । संसारमें घटनावह नहीं ही होगा, और जो होना है उसे कोई रोक बढ़ना, उत्कर्ष-अपकर्ष नहीं होता। जैसे कि सूतकी नहीं सकता। सब जीवोंका सब कुछ नियत है, वह गोली फेंकने पर खलती हुई गिर पड़ती है. वैसे ही अपनी गतिसे होगा ही।
मूर्ख और पंडित दौड़कर आवागमनमें पड़कर मझिमनिकाय (२।३।६) तथा बुद्धचयो दुःखका अन्त करेंगे।" (दर्शन-दिग्दर्शन पू. ४८८(सामञ्जफल सुत्त पृ०४६२-६३) में अकर्मण्यता- ८) भगवती सूत्र (१५वाँ शतक) में भी गोशावादी मक्खलि गोशालके नियतिचक्रका इस प्रकार लकको नियतिवादी ही बताया है । इसी नियतिवाद. वर्णन मिलता है-"प्राणियोंके क्लेशके लिये कोई का रूप आज भी 'जो होना है वह होगा ही' इस "यथा चोकम् -
भवितव्यताके रूप में गहराईके साथ प्रचलित है। . मियतेनैव रूपेण सर्वे भावा भवन्ति यन् ।
नियतिवाद का एक आध्यात्मिक रूप और ततो नियतिजा मते तत्स्वरूपानुवेधतः ॥
निकला है । इसके अनुसार प्रत्येक द्रव्य की प्रति यद्यदैव यतो यावत् तत्तदैव ततस्तथा ।
समय की पर्याय सुनिश्चित है। जिस समय जो पर्याय नियतिर्जायने न्यायात् क एनां बाधितुक्षमः ॥
देखो श्रीकानन्जी स्वामी लिखित वस्तु विज्ञानसार -नन्दीसूत्र टी०। प्रादि पुस्तकें ।