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किरण १०
राजस्थान विधान सभामें नग्नता प्रतिषेध विधेयक
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मूर्तियाँ मथुरामें उपलब्ध है। भैरवकी मूर्ति वस्त्राभू.ण ताका समर्थन भी किया है । भले ही इस घोर तपस्याके होते हुए भी लिंगको दर्शनीय रखा जाता है और यही हाल प्रतीक उनमें आज उपलब्ध न हों। भिक्षाटन शिव और सदाशिव ब्रहमेन्द्रका है। दाराश्वरम् भारतमें आने वाले विदेशी यात्रियोंने जैसे ग्रीक, चीन में तो भिक्षाटन मूर्ति दि.शिवकी इस प्रकार की है, जिसमें प्ररया आदि ने दि० साधुओंके प्रभाव और तपस्या पर स्त्रियाँ शिवजीके सुन्दर रूपसे लुप्त होगई हैं और उनके वस्त्र प्रकाश डाला है जिनसे उनके निर्वाध विहार पर स्पष्ट प्रकाश खुल कर पढ़ते हुए प्रदर्शित किये गए हैं।
पड़ता है । मुसलमान राज्यकालमें मुसलिम शासकोंने तत्प___ ग्रीक (यूनान) लोगोंके शक्तिके देवता हरक्यूलिशको श्चात् अंग्रेजोंने भी दिगम्बर साधुनोंके प्रति अपना भादर बड़ी बड़ी कलापूर्ण मूर्तियाँ जो प्रसिद्ध संग्रहालयोंमें गौरवके प्रकट किया था, इसके भी प्रमाण उपलब्ध हैं। साथ प्रदर्शित होती हैं । वे नग्न होती हैं अंगोपाग सहित श्रवणबेलगोला (मैसूर) की जगत प्रसिद्ध गोमटेश्वरकी मूर्तियोंके अतिरिक केवल लिंगकी पूजा तो भारतके कोनेकोने- विशाल दिगम्बर मर्तिके दर्शन करनेके लिये भारतीय ही नहीं में प्रचलित है। क्या इनका भी अन्त राजस्थानमें किया किन्त विदशोंसे भी लोग दर्शन करनेके लिये पाते हैं, और जायेगा ? पूरे नग्न लिंग देवताको पूजा जब वर्जितकी जा उस वीतराग तपस्वीकी मुद्राको देखकर नतमस्तक हो जाते है, रही है नब कटे हुए अंग भागकी पूजाका अस्तित्व किस भारत सरकारने भी उस दिव्य मूर्तिको भारतके गौरवकी प्रकार रह सकेगा? यह विचारणीय है। इसके लिये क्या वस्त मान कर उसे सुरक्षित रखनेकी घोषणा की है। इसी लाखों जैनोंके विरोध-सूचक अभिमतका आदर इस विधेयक प्रकार भारतकं म्यूजियमों (संग्रहालयों) में दिगम्बर जन द्वारा मान्य होगा?
मुनियों गौरवके साथ प्रदर्शित है। जिन पाश्चात्य देशोंके दिगम्बरत्वका प्रभाव
लोगोंको नग्नताके विरोधी मानते हैं उनके संग्रहालयों में भी दिगम्बर जैन साधुओंका राजप्रसदोंमें पदण होना दिगम्बर जैन मूर्तियों आदरके साथ रक्खी जाती हैं और सम्रा श्रीर सम्राज्ञी अपना अहोभाग्य समझते थे और उन्हें कलाके पारखी लोग उनके दर्शनोंसे प्रभावित होते हैं। नवधा भक्रिपूर्वक आहार दान देकर अपनेको धन्य मानते गत दिसम्बरमें राज्य सभामें अपने एक भाषणमें प्रसिद्ध थे। और उनके सादुपदेशको वे केवल ग्रहण ही नहीं करते थे कलाकार पृथ्वीराजकपूरने कहा था कि-'जेनेवामें मैंने बिल्कुकिन्तु जीवनमें उतार कर स्वयं साधुदीक्षा तक ले लेते थे। ल नंगे नाचको पाससे देखा, इससे श्रद्धा होती है कि इतना उन परम त्यागीतपस्वियोंका आज अल्प समयके लिये मार्ग- सुन्दर शरीर हो सकता है।' तब भला निर्विकार और में चलना ही खटकमकता है इसकी स्वप्नमें भी पाशा नहीं निर्मित दि. मुनियोंके दर्शनोंसे वीतरागता और भक्ति ही थी।
जागृत हो तो इसमें क्या आश्चर्य है? उनके दर्शनोंसे जिस सम्प्रदायका अतीव उच्चकोटिका साहित्य गत तीन मनुष्य के हृदयमें विकार उत्पन्न हो ही नहीं सकते, यह तो हजार वर्षोंसे निरन्तर समृद्धिको प्राप्त होता हुश्रा, संस्कृत, भावनाकी बात है । हो, यदि दम बोस कलुष हृदय व्यक्तिप्राकृत तामिल कन्नड, अपभ्रंश, राजस्थानी और गुजराती योंकी भावना विगढ़ती हो तो इसके लिये एक प्राचीन आदि सभी भाषाओं में उपलब्ध है और विभिन्न विषयोंक अकाम्य सिद्धान्तका गला नहीं घोंटा जा सकता। अतिरिक्र तर्कशास्त्र और अपने मिन्द्वान्तको (दिगम्बरवके) यह कोई नया धर्म तो है नहीं कि उसे बन्द करनेकी इतनी सबलतासे प्रतिपादन करने वाला है कि उसके सामने आवश्यकता हो । यह तो इतिहासकालसे अब तक निर्वाधित विरोधियोंको भी लोहा मानना पड़ा है।
रूपसे चला आ रहा है, फिर धर्मनिरपेक्ष सरकारका यह संसारके किसी भी सम्प्रदायने दिगम्बरत्व (अपरिग्रहवाद) कर्तव्य नहीं है कि वह सभी धर्मवालोंके विश्वासोंमें बाधा का विरोध नहीं किया है और उसकी प्रशंसा और उपादेय- न पहुंचाये।