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________________ राजस्थान विधान सभामें नग्नता प्रतिषेध विधेयक (श्री छोटेलाल जैन) राजस्थान विधानसभामें जो पशुलि विरोध बिल सुधार कर चुकी होती क्योंकि समाजमें बहुत बड़ी संख्या पेश है उसीकी प्रतिक्रिया स्वरूप यह लग्न उपस्थिति तथा विद्वानों, विचारकों और सुधारकों की है। प्रदर्शन (प्रतिषेध) विधेयकके १९५५ श्री भीमसिंह जी दिगम्बर जैन मुनियोंकी चर्या इतनी कठोर होती है भूतपूर्व जागीरदार मडावाने उपस्थित किया है। भारतमं कि इनका रास्तोंमें निकलना बहुत ही कम होता है । केवल कहीं भी दिगम्बर साधुओंके विहार पर प्रतिबन्ध न था और एक बार भोजन और शौचके लिए बाहर जाते हैं। सूर्यास्तन अब तक है तो भी राजस्थानमें उक्त अराजकीय बिल से सूर्योदय तक इनका गमन बिल्कुल बन्द रहता है। भोजन और जल भी केवल जैनीके यहाँ लेते हैं, सो भी यह विधेयक दिगम्बर जैन समाजक मूलभूत सिद्धांतका खड़े खड़े, पाणि पात्र (हाथों पर) से ही लेते हैं, रात्रिघातक है। पाश्चात्य संस्कृतिस प्रभावित आजके कालमें वे मौन पूर्वक रहते हैं । इनका रात दिन धर्मध्यानमें सत्ताधारी धर्मकी परिभाषामें ही परिवर्तन लाना चाहते हैं। म हा पारवतन लाना चाहते हैं। हो व्यतीत होता है। उनका मन पवित्र और शरीर तथा प्राचीनकालमें नीति और चरित्रकी शिक्षा प्राप्त करनेक लिये इंद्रिय-विषयों पर विजय होती है। अस्तु । विदोंस लोग भारत प्रात थे, पर आज भारतवासी अपना मार्ग-दर्शन विदेशोंस प्राप्त करते हैं। धार्मिक हस्तक्षेप विधेयकका दुष्प्रभाव करने वाले विधेयक कदापि उचित नहीं कहे जा सकते हैं यद्यपि इस विधेयक द्वारा दि० जैनोंके अतीव प्राचीन और वे सहनीय भी नहीं हो सकते हैं जो अन्याय और परम्परागत दृढ़ सिद्धान्तको प्राघात पहुंचानका प्रधान और परम्परागत दृढ़ सिद्धान्तका आधा मुसलिम और क्रिश्चियन जैसे विदेशा और मूर्ति-पूजाके प्राशय है, तो भी इसका प्रभाव अन्य सम्प्रदायोंमें भी महा विरोधी शासन काल में नहीं हुआ वह अब स्वतन्त्रकाल- पड़ेगा। दिगम्बर मूर्तियोंके निदर्शन प्रागैतिहासिक कालसे में हो रहा है। जिस शासनमें जनताको यह विश्वास आज तक जो उपलब्ध हैं उनमें जैनोंके और शैवोंसे दिलाया गया था कि शासन सदा धर्मनिरपेक्ष नोतिको विशेषतासे अलब्ध हैं मोहन जोदडोकी चार हजार वर्ष अपनावेगा। उसी शासनके कतिपय सदस्य जिनका सांस्कृतिक प्राचीन शिवजीकी तथा ध्यानमग्न दि. साधुके चित्र और प्रागैतिहासिक ज्ञान न्यून है और जो अपने धर्मस प्रकाशित हो चुके हैं। दोनोंके दिगम्बरत्वमें अन्तर इतना विपरीत धर्म वालोंका अन्त करने पर ही तुल गये हैं। ही है कि जैनोंके दिगम्बर बिल्कुल नग्न वस्त्राभूषणसे रहित दिगम्बर मुनियों और मूर्तियांका अस्तित्व कम स-कम ४००० होते हैं और शिश्न पड़ा हुआ होता है, जबकि शिवजीकी हजार वर्षोस आजतक अविच्छिन्न रूपसे भारतमें प्राप्त हो मूर्ति वस्त्राभूषण सहित होती है और लिंगको उर्ध्व रूपसे रहा है। प्राचीनकालमें महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य और इतना उठा हा दिखाया जाता है कि वह मानो नाभिकी महाराज खारवल सरोखे प्रसिद्ध सम्राटोंने भी दिगम्बर ही स्पर्श कर रहा हो। इस प्रकारसे ऊर्ध्व लिंग शिवकी दीक्षा ग्रहण करके प्रात्म-कल्याण किया था और उनकी मूर्तियों अनेक जगह पाई जाती हैं। गुडिमल्लमके परशुमहारानियों दिगम्बर साधुओंको नवम भकिस आहार दान रामेश्वर मन्दिरमें ई० पूर्व दूसरी शताब्दीकी मूर्ति है जिसकी देकर अपनेको कृतार्य मानती थीं। इस प्रकारके अनेक राजा पूजाके लिये लाखों हिन्दू पाते जाते हैं। ऊर्ध्वलिग शिवकी मन्त्री और सेनानायकोंके रष्टान्त इतिहास में उपलब्ध हैं। मूर्तियाँ भारतमें सर्वत्र उपलब्ध हैं। कलकत्ताके म्युजियममें परिग्रह त्यागको चरम सीमा पर पहुंचने वाले इन परम चतुर्थ शताब्दीकी कोशमसे उपलब्ध शिव-पार्वतीको एक त्यागियोंने जितना लोक कल्याण किया है उतना किसी मूर्वि है जिसमें ऊर्ध्व लिंग स्पष्ट रूपसे अंकित है। अन्यने नहीं किया। इनके सम्पर्कमें आकर घोर व्यभिचारी अमरावती, सांची आदिकी दो हजार वर्ष प्राचीन ऐसी भी सदाचारी बन गए और अब भी बनते हैं। नंगे बच्चों- मूर्तियाँ उपलब्ध हैं जिनको शिल्पीने स्त्राभूषणोंसे आच्छादित को देख कर जैसे किसीके मनमें क्लेश उत्पन्न नहीं होता, कर दिया है पर उनका लिगभाग स्पष्ट प्रदर्शित होता है। वैसे ही परम तपस्वियोंके दर्शनसे क्लेश कैसे हो सकता है? बौद्धोंके कुम्भंड यक्षकी मूर्तिमें उसके बड़े अंडकोशको यदि ऐसा होता तो भारतकी दिगम्बर समाज कभीका यह प्रदर्शित करते हुए उसका नाम निर्देश हुआ है। ऐसी
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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