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महावीर जयन्ती के अवसर पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का भाषण अहिंसाके बिना संसारमें वास्तविक शांति असंभव जैन साहित्य के प्रचार पर जोर
राष्ट्रपति का महत्वपूर्ण भाषण भारत के राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद ने दिनांक इन ग्रन्थोंको प्रकाशमें लायें और जिनके पास ज्ञान ७ अप्रेल ५ को उक्त महावीर जयन्ती-समारोह में वे इनका योग्य सम्पादन करे तथा जिनके पास कुछ भाषण करते हुए कहा कि 'संसार में अहिंसा के नहीं है वे इससे फायदा उठायें और जो जैनेतर हैं ये सिद्धान्त को स्वीकार किए बिना वास्तविक शान्ति जैन विचारोंसे परिचित हों।' असम्भव है । २५०० वर्षों से जैन धर्म के प्रचारकों
आज ही मुझे बिहार के राज्यपाल ने लिखा है की अटूट परम्परा आज तक चली आ रही है और
कि वहाँ वैशाली में जैन-झान प्रतिष्ठान के लिए पाँच उनके विद्वान् तथा मुनिगण अनेक ग्रन्थ लिखते आ रहे हैं, मगर तो भी यह दुःख के साथ कहना पड़ेगा
लाख इकमुश्त और ५ हजार प्रति वर्ष ५ वर्ष तक कि उनके साहित्य से माम लोगों को परिचय बहुत
देने का एक जैन भाईने उन्हें वचन दिया है। हमें ज्यादा नहीं हुआ। उनके सहस्त्रों हस्तलिखित ग्रन्थ हर्ष है कि भगवान महावीर का जन्म बिहार में वैशाली पुस्तकालयों और संग्रहालयों में छिषे रहते हैं, यहाँ में हुआ और वहीं पावापुर में उनका निर्वाण हुआ। तक कि उनको तहखानों में सुरक्षित रखा हुआ है। उन्होंने १२ वर्ष तक तप भी विहार में ही आस-पास हाल में मैं जैसलमेर गया था वहाँ मैंने तहखाने में भी किया होगा । जहाँ जहाँ उन्होंने तप किया उन स्थानों तहखाना और उस नहखाने में भी तहखाना देखा, जहां की श्राज खोज होनी चाहिए। वे महापुरुष थे, उनके जैन ग्रन्थ मुझे दिखाये गये। जिनके पास धन है सिद्धान्तों से ही दुनियामे शान्ति हो सकती है।'
हथियारका जबाब हथियार नहीं अहिंसा है। चैत्र शुक्ला १३ वी निः १० २४८१ दिनांक ५ क्या अच्छाई है, क्या बुराई है ? हम लोगों में रटे भप्रेल १६४५ को 'कॉस्टीटयूशन क्लब' नई दिल्ली में हुए सबक को दोहराने की आदत है। सवाल है कि भायोजित महावीर-जयन्ती के समारोह में भाषण हमें क्या करना है ? हमें महापुरुषों के सिद्धान्बोको करते हुए भारत के प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू जीवन में उतारना है, अपने ही नहीं, बल्कि राष्ट्र के ने कहा कि हथियार का जवाब हथियार से नहीं बल्कि और विशेषकर अन्तर्राष्ट्रीय जोवनमें।' शान्तिमय ढंग से महिसा से देना चाहिए। हमारे अणुबम की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा-भाज महापुरुषों-गाँधी जी तथा महावीर स्वामी ने शान्ति संसार में एटमबम और हाईड्रोजन बम की चर्चा है, व अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए उपदेश दिये। लेकिन इसका जबाब अहिंसा से दिया जा सकता है, बाज एक महापुरुष को जयन्ती है। मुनासिव है कि हथियार से नहीं। हथियार से हथियार का कोई जवाब हम उनके सिद्धान्तों को याद करे और ननका तर्जुमा नहीं, क्योंकि अपने हथियार से अपने को ही खतरा अपने जीवन में करें।' भागे नेहरू जी ने कहा-जहाँ है। हमें इस शक्ति का उपयोग शान्ति कायम करने तक जैन सिद्धान्तों का मतलब है, वे अहिंसक ही हैं। में करना चाहिये हमें खुशी है कि हम महफूज है, हम महापुरुषों के सिद्धान्तों की ओर ध्यान कम देते हम उतने खतरे में नहीं जितने और देश हैं । कारण हैं और तमाशा करते हैं. दूसरों को दिखाने के लिए। हम लड़ना नहीं चाहते । पर आज कोई महफूज नहो,
आप ही नहीं हम मब करते हैं। मुनासिब तो यह है जब कि आग सब जगह लग गई है । जवाब गालिकि हम भगवान महावीर के सिद्धान्तों का पालन करें। वन एक ही है और वह है गांधी जी तथा भगवान
आजकल दुनिया टेडी है, खतरनाक है । हम एक महावर के शान्तिमय सिद्धान्तों पर चलने का। भगदूसरे को भला बुरा कहते हैं । एक देश दूसरे देश को वान महावीरने उन्हें धर्म व समाज तक सीमित धोखा देता है । नेता लोग एक दूसरे देश पर इल्जाम रखा, गाँधी जी उन्हें राजनीति में लाये । हम महाशक्ति जगातेहमें अपने दिली को टटोलना चाहिये, का मुकाबला महाशकि सेन करें।'