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अनेकान्त
[ वर्ष १३
के 'सर्वोदय-तीर्थ' के जो लक्षण बतलाये हैं, वे सर्वोदय- द्वारा बतलाये गये अहिसा-प्रधान मार्गका पूर्णत: अनुभावनाकी वृद्धि और पुष्टिमें आज भी बहुत सहायक हो करण है। - सकते हैं। जब सभी विचार-धाराओका समन्वय किया जाए, स्वम्मामि सब्ब-जीवानं मम्वे जीवा खमन्तु मे। किसी एक मत या दलकी पुष्टि और पक्षपात न किया जाए,
मेत्ती मे सन्व-भूदसु वरं मम न कवि ॥ किन्तु समय और आवश्यकतानु गर गौण और मुख्यके सब जीवोंस देशांसे और राष्ट्रोंसे हमारा कोई विद्वेष भेदसे एक या दूसरी बातको प्रधानता या अप्रधानता दे दी नहीं, और हम चाहते हैं कि वे सब जीव, देश और राष्ट्र जाए, और दृष्टि रखा जाए सब प्रकारकी जन-बाधाओंको हमसे भी कोई विद्वेष न रखें। सबसे हमारी मित्रता है, दूर करनेकी, नथा जोर दिया जाय न्याय और नीतिके शाश्वत्
वैर किसीसे भी नहीं। परस्पर आक्रमण नहीं करना, दूसरे
की गति-विधिमें व्यर्थ हस्तक्षेप नहीं करना, मिलकर रहना, सिद्धान्तों पर, तभी पर्वोदय-तीर्थकी सच्ची स्थापना हो
सहयोग रखना, जीना और जीने देना इत्यादि समस्त सकती है। इस सर्वतोमुम्बी. सर्वहितकारी कल्याण-भावना
भावनाएँ अहिंसावृत्तिक व्यावहारिक रूप ही तो हैं, जिस का विस्तार भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अनेकान्त
पुष्टि देकर संसार भरमें फैलाना तथा व्यक्कियों, समाजों और मिद्धांत में पाया जाता है, जिसके द्वारा सब प्रकारके मतभेदों और विरोधोंको मिटाकर एकन्व और सहयोगको स्थापना
राष्ट्रोंके जीवनमें उतारना हम सबका महान् पुनीत कर्तव्य
होना चाहिए। यही भगवान् महावीरको जन्म-जयन्ती की जा सकती है। क्या ही अच्छा हो, यदि आजका विरोधी
मनानेका मच्चा फल होगा। विचारोंके कारण मर्वनाशकी ओर बढ़ता हुश्रा मानव-समाज
मुझे यह जान कर बडा हर्ष है कि भगवान महावीरके भगवान महावीरकी अनेकान्तात्मक समन्वयकारी वागीको
इन्हीं सब विश्व कल्याणकारी उपदेशोंका अध्ययन करने तथा समझ कर उससे लाभ उठाए।
उनके शासन पर आधारित साहित्यका शोध और पठनआज संसारमें चारों ओर नर-संहारकी आशंका फैल रही पाठनको विशेष सुविधायें उत्पन्न करनेके लिए उनकी इसी है। युद्धके बादल बारंबार उठ-उठकर गर्जन-तर्जन कर रहे जन्म-भूमि पर एक विद्यापीठके निर्माणका प्रयत्न किया जा हैं और जिन महाभयंकर प्रलयकारी अस्त्र-शस्त्रोंका अाजके रहा है । जो सज्जन इस पुण्य-कार्यमें विशेष रूपसे प्रयत्नविज्ञान द्वारा आविष्कार हुआ है, उनके नाम और गुण शील हैं, उनमें मुझे वैशाली-संघके प्रधान मन्त्री श्री सुन-सुनकर ही निरपराध नर-समाज कॉप-कौंप उठता है। जगदीशचन्द्र माथुर जीका नाम प्रमुखतास ध्यानमें आता ऐसे ममनमें हमारे देशकी राजनीतिको निर्धारित करने वाले हैं। मैं माथुर जी और उनके समस्त महयोगियोंका उनकी पंडित जवाहरलाल नेहरुने जो पंचशील' की घोषणा की है, इस उत्तम योजनाके लिए अभिनन्दन करता हूँ और प्रार्थना वह भारतीय संस्कृतिक पर्वथा अनुकूल एवं भगवान महावीर करता हैं कि उनका यह महान् संकल्प पूर्णतः सफल हो।
'अनेकान्त' की पुरानी फाइलें 'अनेकान्त' की कुछ पुरानी फाइलें वर्ष ४ से १२ वें वर्षतक की अवशिष्ट हैं जिनमें समाजके लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों द्वारा इतिहास, परातत्व, दर्शन और साहित्यके सम्बन्धमें खोजपूर्ण लेख लिखे गये हैं और अनेक नई खोजों द्वारा ऐतिहासिक गुत्थियोंको सुलझानेका प्रयत्न किया गया है । लेखोंकी भाषा संयत सम्बद्ध और सरल है । लेख पठनीय एवं संग्रहणीय हैं । फाइलें थोड़ी ही शेष रह गई हैं। अतः मंगानेमें शीघ्रता करें । प्रचारकी दृष्टिसे फाइलोंको लागत मूल्य पर दिया जायेगा। पोस्टेज खर्च अलग होगा। मैनेजर-'अनेकान्त', वीरसेवामंदिर, दिल्ली