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________________ वर्ष १३ भगवान महावीर और उनका लोककल्याणकारी सन्देश [२६१ - जाते हैं और कभी भी किसी देश या कालमें किसी की सुविधाएँ उत्पन करनेके प्रयत्नों द्वारा मांस-भोजनको अपराध में नहीं फंस सकते। ओरसे मनुष्यको रुचिको हटानेका प्रायोजन करें। अब चूंकि सभी प्राणी परमात्मस्व की मोर विकास कर रहे और फलोंका उत्पादन बढ़ाना तथा शाक-भोजनालयोंकी हैं, अतएव वे सब एक ही पथ के पथिक हैं। अतः उनमें जगह-जगह स्थापना और उनमें रुचिकारक और सस्ते परस्पर समझदारी और सहयोग एवं सहायता की भावना शाकमय खाद्य-पदार्थोको प्रस्तुत करना इस दिशामें उचित होनी चाहिए, न कि परस्पर विद्वेष और कलह की। प्रयत्न होंगे। विद्वेषका मूल कारण प्रायः यह हुश्रा करना है कि या तो ऊपर जो भगवान महावीर द्वारा बतलाये गये हिंसा हम भूल जाते हैं कि हम मनुष्य हैं, या हमारी लोलुपता आदि पाँच पाप कह पाये हैं, उनमें अन्तिम पापका कुछ हमें मनुष्यतामे भ्रष्ट कर देती है। इन्हीं दो प्रवृत्तियोंसे विस्तारसे वर्णन करना आवश्यक है। भगवान्ने स्वयं बचनेके लिए भगवान् महावीरने मद्य और मांसके निषेध- राजकुमारका वैभव छोड़कर अकिंचन व्रत धारण किया का उपदेश दिया है । शराब पीकर मनुष्य भूल जाता है था । उन्होंने गृहस्थों को यह उपदेश तो नहीं दिया कि वे कि वह कौन है और अन्य जन कौन कैसे हैं। इसीसे अपनी समस्त धन-सम्पत्तिका परित्याग कर दें, किन्तु अपने शराबीका आचरण अविवेक और निर्लज्जतापूर्ण हो जाता लोभ और संचय पर कुछ मर्यादा लगाना उन्होंने आवश्यक है, जिससे वह नाना प्रकारके भयंकर अपराध कर बैठता है। बतलाया । संसारमें जितने जीवधारी हैं, उनके खाने-पीने धर्माचार्योंने सदैव मद्य-पानको पाप बतलाया है। आज और सुखसे रहनेकी सामग्री भी वर्तमान है । किन्तु मनुष्यसौभाग्यसे हमारी राष्ट्रीय कांग्रेस तथा सरकार भी मद्यपान में जो अपरिमित लोभ बढ़ गया है, उसके कारण ऐसी के निषेधका प्रयत्न कर रही है। उनके इस पवित्र कार्यमें परिस्थिति उत्पन्न हो गयी है कि प्रत्येक मनुष्य या सभी विवेकी और धार्मिक व्यक्यिोंको सहयोग प्रदान जन-समुदाय संसारकी समस्त सुख-सम्पत्ति पर अपना करना चाहिए। अधिकार जमाना चाहता है। इसमें संघर्ष और विद्वष ___ मांस-भोजनका निषेध मद्य-निषेधसे बहुत बड़ी अवश्यम्भावी है। महावीर भगवान् ने इस आर्थिक संघर्षसमस्या है, क्योंकि उसका सम्बन्ध प्रादतके अतिरिक्त से मनुष्यको बचानेके लिए ही परिग्रह-परिमाण पर बड़ा भोजन-सामग्रीकी कमीसे भी है । तथापि इस सम्बन्धमें जोर दिया है। और गृहस्थोंको इस बातका उपदेश दिया हमें प्रकृतिके स्वभाव और मानवीय संस्कृतिक विकासकी है कि वे अपनी प्रावश्यकतासे विशेष अधिक धन-संचय ओर ध्यान देना चाहिए । प्रकृति में जो प्राणी मांस-भक्षी न करें। यदि अपना कर्त्तव्य करते हुए न्याय और नीति के हैं, जैसे शेर, व्याघ्र इत्यादि, वे क्रूर-स्वभावी और निरुपयोगी अनुसार धनकी वृद्धि हो हो, तो उस अतिरिक पाये जाते हैं। शिक्षाके योग्य, उपयोगी और मृदु-स्वभावी उन्हें औषधि, शास्त्र, अभय और पाहार इन चार प्रकारवे ही प्राणी सिद्ध हुए हैं, जो मांस-भाजी नहीं हैं-शुद्ध के लोक-हितकारी दानोंमें लगा देना चाहिए । अर्थात् शाक-भोजी हैं-जंसे हाथी, घोड़ा, ऊँट, गाय, बैल, भैस सम्पस गृहस्थका उन्होंने यह कम्य बतलाया कि वह इत्यादि । एक वैज्ञानिक शोधक अनुसार मनुष्य-जातिका अपनी सम्पत्तिका सदुपयोग लोगोंको प्राण-रक्षाके उपायोंविकाम बानरोंसे हुआ है, और जैसा कि हम भली भांति में, शिक्षा और विद्याक प्रचार में, रोग-व्याधियोंके निवारणजानते हैं, बानर शुद्ध शाक और फल-भही होता है। में तथा दीन-दुःखियोंको भोजन-वस्त्रादि प्रदान करनेमें प्राणीशास्त्र के विज्ञाता बतलाते हैं कि मनुष्योंके दाँतोंकी कर डाले । मज प्राचार्य विनोबा भावे अपने भूदान-यज्ञअथवा उसके हाथ-पांवों की रचना मांस-भक्षी प्राणियों जैसी के आन्दोलन द्वारा जिस मनोवृत्तिका निर्माण करनेका नहीं है। इसीसे मांस-भोजी मनुष्योंके दौत जल्द खराब हो प्रयत्न कर रहे हैं, उसी वृत्तिक निर्माणका उपदेश भगवान् जाते हैं और उससे कई बीमारियों भी उत्पन हो जाती हैं, महावीरने आजसे अढाई हजार वर्ष पूर्व दिया था। यही जिनसे शाक-भोजी मनुष्य बहुधा बचा रहता है। अतएष नहीं, भगवान्के उस शासनको उनके अबुवापियोंने भगवान् महावीरके अनुयायियोंका कर्तव्य है कि वे इन भाजसे कोई रेद हजार वर्ष पूर्व ही 'सोंदव-तीर्थ' का वैज्ञानिक शोधोंके प्रचार द्वारा तथा शाक-भोजन नाम भी दिया है। प्राचार्य समन्तभद्रने भगवार महावीर
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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