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________________ साहित्य परिचय और समालोचन -वरांगचरित, मूनकर्ता जटामिहनन्दी अनुवादक देशमें 'तामिल-वेद' के नामसे प्रख्यात है। यह उसी महाप्रो. खुशालचन्दजी एम. ए. साहित्याचार्य गोरावाला, प्रका- काब्यके कामपुरुषार्थको छोड़कर शेष सम्पूर्ण ग्रन्थका संस्कृत शक, मंत्री साहित्य विभाग भारत दि. जैन संघ चौगसी हिन्दी गद्य-पद्यानुवाद है । जिसके कर्ता प्रज्ञाचा पं. मथुरा। साइज २२x२६ पृष्ठ संख्या सब मिला कर १०. गोविंदरायजी शास्त्री हैं जिन्होंने इस प्रन्थका अध्ययन मनन सजिल्द प्रतिका मूल्य पात रुपया। परिशीलनकर संस्कृत और हिन्दीकी सरस कवितामें इस मुल काम्य-ग्रन्थका अन्वेषण 1. प. एन. रखनेका उपक्रम किया है । ग्रन्थमें १०८ परिच्छेद या उपाध्ये एम. ए. ने किया और स्वयं मम्पादितकर माणिक- अध्याय हैं जिनमें सदाचार, धर्म, ईश्वर स्तुति, सयम, चन्द्र ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशमें लाया गया। जटासिंह नन्दी- भेद, परोपकार, सत्य, दान, कीर्ति, मादि १०८ विषयों पर ने इस महाकाव्यमें ३, सगों और तीन हजार आठ सौ प्रकाश डाला गया है । यह नीतिका महाकान्य है, ग्रन्थके सोस रखोकोंमें राजा परांगकी जीवन-कथाका परिचय सभी प्रकरण रोचक और पठनीय हैं और लोकोपयोगी हैं। कराया है, जिसमें वरांगकी धर्म-निष्ठा, सदाचार, कर्तव्य पाई सफाई अच्छी है, ऐसे सुन्दर संस्करणके लिये पंडितपरायणता, और शारीरिक तथा मानसिक विपत्तियों में महि- जी बधाईके पात्र हैं। मजिल्द प्रतिका मुख्य १०) कुष माता, विवेक और साहसके साथ बाह्य और अन्तरकषाय अधिक जान पड़ता है। शत्रुओंको दबाने, उमकी शक्ति क्षीण करने उन्हें अशक एवं ३-पाण्डव पुराण भष्टारक, शुभचन्द्र, अनुवादक पं. अममर्थ बनाने अथवा उन पर विजय प्राप्तिका उल्लेख जिनदास शास्त्री प्रकाशक, जीवराज ग्रंथमाला शोलापुर । किया गया है। राजा वगंग जैनियोंके १२वें तीर्थकर भगवान पृष्ठ संख्या ५६८ बड़ा माइज, मूल्य सजिल्द प्रतिका १२) मेमिनाथ और श्रीकृष्णके समकालीन थे। प्रन्थकारने प्रन्यमें रुपया। उपजाति, मालभारिणी, भुजंगप्रयात और द्र नविलम्बित प्रस्तुत प्रन्यमें महाभारत कालमें होने वाले यदुवंशी मादि विविध छन्दोंका उपयोग किया है । ग्रंथका कथा भाग कौरव और पांडवोंका चरित्र कः हजार श्लोकोंमें दिया हुआ मरम और सुन्दर है । प्रस्तुत ग्रंथका यह हिन्दी अनुवाद है। महाभारतको कथा हिन्दू जैन बौड प्रन्थों में अंकित बहुत सुन्दर और मूलानुगामी हुना है। और प्रोफेमर पाई जाती है। यद्यपि उनमें परस्पर कुछ भेदोंके साथ माहबने उसे ललित भाषामें रखनेका उपक्रम किया है, भाषा कथनोपकथनों में वैशिष्ट मिल जाता है। फिरभी प्रन्थकारों में मुहावरेवार और सरल है। अनुवादकने प्रन्यमें मूल पचोंके एक दूसरेके अनुकरणकी स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। नम्बर भी यथास्थान दे दिये हैं जिनसे पद्योंके अर्थ के साथ अनुवाद भी अच्छा है। मूल श्लोकोंका मिलान करने में सुभीता हो जाता है । न्य पं. बालचन्द्रजी सिद्धान्त शास्त्री द्वारा लिखी गई इस अन्तमें पारिभाषिक कोषभी दे दिया है जिससे म्वाध्याय ग्रन्थकी प्रस्तावना ग्बोज पूर्ण है। उसके पढ़नेसे ग्रन्थका प्रेमियोंको शब्दोंके अर्थ जानने में विशेष सुविधा हो गई है, निचोद महज ही मालूम हो जाता है । और कथावस्तुके मर्मग्रंथकी प्रस्तावना सुन्दर ऐतिहासिक दृष्टिको प्यक्र करते हुए का भी पता चल जाता है। साथही ग्रन्धकी रचना शेली लिखी गई है। इस तरह अनुवादकजीने हिन्दी भाषा आदिके सम्बन्धमें विचार हो जाता है। ग्रंथके अन्त में पों. भाषियोंके लिए उक्त प्रन्थको पठनीय बना दिया है। इसके का अनुक्रम न होना खटकता है । माथमें ग्रन्थ निर्दिष्ट लिये अनुवादक और प्रकाशक दोनों ही धन्यवादके राजा, राज मंत्री, श्रेष्ठी और विविध देशों आदिका परिपात्र हैं। चायक परिशिष्ट भी रखना आवश्यक था। फिर भी जीव२-कुरख-काम्य, मूलकर्ता विवल्लूवर-एलाचार्य, अनु- राज ग्रन्थमालाका प्रकाशन सुन्दर हुपा है। इसके लिये ग्रंथ पावक, संस्कृत-हिन्दी गद्य-पद्य पं. गोविन्दरायजी शास्त्री, मालाके संचालक महोदय धन्यवादके पात्र हैं। बाशा है यह महरौनी ।बकाशक स्वयं, पृष्ठ संख्या ३५०, मजिद प्रति- प्रन्थमाला भविष्यमें और भी सुन्दरतम प्रकाशनों द्वारा जैन का मूल्य ..)। संस्कृतिके संरक्षणके साथ उसके प्रचारमें विशेष योग देगी। मूल ग्रन्थ तामिल भाषाका महाकाव्य है जो तामिल -परमानन्द जैन
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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