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वर्ष १३
भगवान महावीर और उनका लोककल्याणकारी सन्देश
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मन कोई फलसा जुडो मन कोई जुडो किवाड। वीर सेनानी दीवान रामचन्द्रकी मृत्यु सं० १७८४ में यह रामचन्द्र विमलेशका डूढाहडकी ढाल | हुई थी। इनका एक मकान पामेरमें भी बनलाया जाता है। घर राखण घरा रावण प्रजा राखण प्राण । वह अब मौजूद है या नहीं। यह कुछ ज्ञात नहीं होता । जैसिंह कहै छै रामचन्द्र तु सांचो छै दीवाण" बहुत मम्भव है वह भी खगरातमें परिणत हो गया हो।
भगवान महावीर और उनका लोक-कल्याणकारी सन्देश
(डा० हीरालाल जैन एम० ए० डी. लिट०) [वैशाली संघकी ओरसे भ० महावीरकी जन्मभूमि वैशालीमें, जो भगवान महावीरके नाना और लिच्छविगणराजके अधिनामक राजा चेटककी राजधानी थी और जिमका कुण्डपुर एक उपनगर था गत ५ अप्रेल १६५५ को आयोजित ११ वें महावीर जयन्ती-महोत्मयके अध्यक्षपदमे डा०हीरालालजीने जो महत्व पूर्ण अभिभाषण दिया था, वह अनेकान्तके पाठकोंको हितार्थ यहाँ दिया जाता है डाक्टर साहब जन साहित्य
और इतिहासके अधिकारी विद्वान हैं और नागपुर विश्व विद्यालयमें संस्कृत पाला तथा प्राकृत विभागके प्रमुग्व एवं विद्या परिपद्के अध्यन हैं ।
-सम्पादक] प्रिय बन्धुओ,
महावीर कौन थे, यह बात विस्तारसे बतलानेकी मैं वंशाली संघ और उसके सुयोग्य प्रधान श्री माथुर मावश्यकता नहीं है, क्योंकि उसे आप सम्भवतः इसस जीका बहुत कृतज्ञ हैं, जो उन्होंने मुझे वैशालीको इस पवित्र पूर्व अनेक बार सुन और पढ़ चुक होंगे। किन्तु उनकी भूमिके दर्शन करने और यहां एकत्रित जनताक सम्पर्कमें जन्मजयन्तीक इस अवसर पर उनके जीवनका स्मरण कर श्रानका आज यह सुचवसर प्रदान किया। वंशाली एक लेना एक पुण्य-कार्य है। इसलिए संक्षपम भगवान महावीरक महान तीर्थक्षेत्र है, और तीर्थदनाका अवसर मनुष्यको जीवन-वृतान्तकी चचा कर लेता है। बड़े पुण्यके प्रभावसे ही मिला करता है। अतएव इस आजस अढाई हजार वर्ष पूर्वकी बात सोचिए । संसार अवसरको पाकर में अपनेका बड़ा पुण्यशाली अनुभव कर कितना परिवर्तनशील है? जहाँ हम और भाप इस समय
खड़े या बैठे हैं, वहीं उस समय एक वैभवशाली राजधानी इस शाना-क्षेत्रको नार्थकी पवित्रता किस प्रकार प्राप्त थी और उसका नाम उशाली था। वैशालीका एक भाग हुई, यह बात आप मय भली भांति जानते हैं। यह वही कुण्डपुर या क्षत्रिकुण्ड कहलाता था जहाँ एक राजभवन में नूमि है, जिर्मन भगवान महावीर जैसे महापुरुषको जन्म राजा सिद्धार्थ अपनी रानी त्रिशलाक साथ धर्म और न्यायदिया। यहां भगवान महावीरका जन्म आजस कोई अदाई पूर्वक शासन करते हुए सुग्बम रहन थ। रानी शलाका हजार वर्ष पूर्व हुअा था। भगवान महावीर कितने महान् कुक्षिसे एक बालकका जन्म हुआ और राजकुमारके अनुरूप थे, यह इसी बातस जाना जा सकता है कि प्रदाई हजार उसका पालन-पोषण और शिक्षण हुआ। इमी राजकुमारका वर्षोक दार्घकाज पश्चान् भी हम और आप सब आज उत्तरोत्तर बढ़ता हुई बुद्धि और प्रतिभा तथा उन्नति-शाला अनेक कष्ट मकर भी उनका जन्म-भूमिके दर्शन कर । शरीरको उपकर उसका नाम वर्द्धमान महावीर रखा गया । अपनको धन्य पार पुण्यवान् बनानेके लिए यहाँ प्राय हैं। स्वभावनः यह श्राशा की जाती थी कि गजकुमार महावीर इस सुअवसर पर स्वभावतः हमें यह जाननेकी कुछ विशेष भी यथा समय राज्यकी विभूतिका मुग्व-भाग करेंगे। किन्तु इच्छा और अभिलाषा होती है कि भगवान महावीरमें ऐमा एसा नहीं हुअा। लगभग तीस वषोंकी युवावस्थामें उन्हें कौन-सा गुण था और उन्होंने ऐसा कौन-सा महान कार्य राजभवनक जीवनस विक्रि हो गया, आत्म-कल्याण तथा किया, जिपंक कारण उन्हें आज भी यह लोक-पूजा प्राप्त लोकोपकारको भावनासं प्रेरित होकर राजधानीको छोड़ हो रही है।
वनको चले गये। उन्होंने भांगरेपभोग और साज-सजावटकी