SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५-1 अनेकान्त विर्ष १३ भागे नर-मुण्डों पर निगाह पड़ी, तब उन्हें यह भान हुआ सांभरपर अधिकार और उसका बटवारा कि महाराज जयसिंह बहुत बड़ी फौजके माथ पा रहे हैं। दीवान रामचन्दजीने नाती महाराजा जयसिंहजीको उन्होंने यह पब माजग देखकर यह निश्चय किया कि इतनी " जोधपुरके किले पर भी अधिकार प्राप्त करनेका समाचार भेजा, विशाल फौजके साथ थोडेसे सैनिकोंका युद् करना मूर्खता है । तो उन्हें बड़ी खुशी हुई। दोनों गजा अपने सिपाहियोंके साथ अतः किलेके सैनिक जान बचा दूसरे रास्तेसे भागने लगे। दल-बल महित उदयपुरसे रवाना हुए। चलते-चलते जब वे उसी समय दीवान रामचन्द्रजी ढाईसौ राजपूतोंके सांभरके पास पहुंचे, तब सांभरके रक्षक मुसलमानों पर उन्होंने साथ आमेरक किले में प्रविष्ट होगए । और उन्होंने अवशिष्ट हमला कर दिया । आखिर मुसलमान सिपाही वीर राजबचे हुए मुसलमान सिपाहियोंका काम तमामकर किले पर पूतोंसे कब तक लोहा लेते, कुछ मर गए और कुछ हारकर अपना अधिकार कर लिया, और आमेरमें पुनः राजा भाग गये। जर्यासहकी ध्वजा फहराने लगी। इतनेमें दीवान रामचन्द्रजी भी महाराजा जयसिंहजीक दीवान रामचन्द्रजीने राजा जयसिंहजीके पास उदयपुर उदयपुर आगमनका समाचार सुनकर अगवानी के लिये प्राण थे, वे भी पत्र भेजा कि भामेर पर अपना अधिकार हो गया है । अब सांभरकी उस युद्धस्थलीमें शरीक हो गए । सांभर पर दोनों आप यहां पा जावें । पत्र पाकर महाराज जयसिंहजी बहुत राजाओंने अधिकार तो कर लिया किन्तु दानों में इस बानकी प्रसन्न हुए। उन्होंने उत्तर दिया-"मैं तब तक आमेर नहीं चर्चा उठ खड़ी हुई कि सांभर किसक राज्यमें रहे? इस पाऊँगा, जब तक हमारे बहनोईजीका जोधपुरका राज्य छोटी सी बातपर विवाद बढ़ने लगा और वह विपंवादका मुसलमानोंके अधिकारस पुनः अधिकृत नहीं हो जाता।" रूप धारण करना ही चाहता था कि सहसा उनका ध्यान जोधपुरका उद्धार-कार्य दीवान रामचन्द्रजी पर गया । दोनों राजाओंने सांभरके फैसलेका भार दीवानजी पर डाला, दीवानजीने कुछ-शोचदीवानजीने जब अपने स्वामीका पत्र पढ़ा, तब उन्हें विचार कर सांभरका प्राधा-आधा बटवाग करनेका फैसला जोधपुरका राज्य पुनः वापिस लेनेकी चिंता हुई और उन्हें एक दिया अर्थात् प्राधा सांभर जयपुर राज्यमें और प्राधा जोधयुकि सूझ पड़ी। उन्होंने दो सौ म्याने तैयार करवाए। पुर राज्यमें रहेगा। उक्त फैसला दोनों राजाओंने स्वीकृत हर एक म्यानेमें शस्त्र मज्जित चार-चार वीर मैनिक बिठाए, किया और आगत विर्षवाद टल गया। सांभरका उक्र बटऔर चार-चार सिपाही उनको उठाने वाले हुए, जिनके सब वारा दोनों राज्यों में अब तक बराबर कायम रहा है। हथियार म्यानेके अन्दर रख दिये गए। और तीन सौ सवार दीवान रामचन्द्रजीके इन कार्यों उनको स्वामिभक्ति मुस्लिम सैनिक वेषमें उन म्यानोंके आगे पीछे चले । म्याने और राज्य मंचालनकी योग्यता और निर्भयता परखी जा जिम दिन जोधपुर पहुंचे, उस दिन ताजियोंका त्यौहार था। सकती है। इस प्रकारके कार्यास उन्हें राज्यमं अनेक उपहार किलेकी फौजके अनेक सिपाही ताजियोंमें चले गए थे, कुछ और जागीरें, सनदें समय दमय पर प्राप्त होती रही हैं। थोडेसे सैनिक किलेमें रक्षार्थ रह गए थे। जब म्याने किलेके दरवाजे पर पहुंचे, तब दरवाजेके पहरेदारोंने रोका और अनन्तर दीवानजीने राजा जयसिंहजोसे बादशाहको पूछा, तब उत्तर दिया कि 'शाहंशाहका जनाना है।' मुसल खुश करनेकी तदवीर भी बत्तलाई. और उससे बादशाहका सैनिकोंको देखकर पहरेदार सिपाहियोंने रास्ता दे दिया। रोषभी ठंडा पड़ गया और उसने राज्य प्राप्ति-सम्बन्धी म्याने किलेके अन्दर पहुँचते ही हथियारबन्द मैनिक म्यानी- अपराधका क्षमा कर दिया। से बाहर निकल पड़े। उन्होंने किलेके रक्षक मुसलमान सिपा टोकिलेला इससे रामचन्द्रजी दीवानके सम्बन्धमें भाई भंवरलालहियोंको मार डाला और किले पर अधिकार कर जोधपुर जीने जो तीन दोहे सुनाए थे. मैं उन नोट कर लाया था. राज्यका झंडा खड़ा कर दिया। जब किलेके सैनिकोंको, जो उनसे दीवानजीके व्यक्रित्व और राज्य प्रेमकी महत्ताका ताजियोंमें गए हुए थे यह पता चला कि किने पर जोधपुर कितना ही बोध हो जाना है। नरेशका कम्जा हो गया है बेचारे अपने प्राणोंकी रक्षार्थ "रामचन्द्र विमलेशका ढूढाहडकी ढाल । इधर-उधर भाग गये। बांकाने सूधा किया सूधा किया निहाल ||
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy