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________________ वर्ष १३ तुजक श्री भद्रबाहुजीका अभिमत [२४४ सुहलदेव भगवान बन गये और वह पूर्ववत सुखसे रहने (सूर्यकुण्ड धादि) बहराइचसे १ मील उत्तरमें है। लेकिन लगी। बादशाह फीरोज तुगलकने इन सब बातों पर कोई ध्यान न सूर्यकुण्ड और सैयद सलारका मकबरा दिया और फकीरके कहने पर सूर्यकुण्ड मिहीसे पटवा दिया मयद मलारकी मृत्युकं ३१० वर्ष बाद अर्थात १३१॥ नया सूर्य भगवानके मन्दिरको ध्वस्त करके उस पर सैवत ई. में बादशाह फीरोज तुगलकने बंगाल पर चढ़ाई की और मलार ममऊदको गाजीका एक शान्दार मकबरा बनवा । उसी समय वह मैयद मालार ममऊदका मकबरा बनवान दिया । वह अब भी वर्तमान है । इसके अतिरिक्र शुक्र, बहराइच भाया । इनने वर्षों के बाद मैयद मलार मसऊदकी बुद्ध बृहस्पति, मंगल और चन्द्र आदि ग्रहोंके स्थान पर कवका कोई चिन्ह नक शेष न रह गया था। बादशहन यहा क्रमशः सुका मलार बुडढन मलार, पीरू मलार, हठीले के सबसे वृत मुसलमान को में जो अपनेको एक पहुंचा हुआ तथा मार माहकी करें बनवा दीं। फकीर बतलाता था मैयद सलारकी कनके सम्बन्धमें पूछा। यह हमारे गष्ट्रक लिए बडे कलंक की बात है कि बालापुरी (बहराइच) में एक सूर्य भगवानका मन्दिर था राष्ट्रीय और देशघातक मनोवृत्ति पर विजय प्राप्त करने जो उस समय देश भग्में प्रसिद्ध था तथा इसके समीपही वाले एक राष्ट्रीय महापुरुपकी हमने सदैव उपेक्षा की है तथा एक सूर्य कर द था जिसके उध्या जलसं कष्टरोगी अच्छे हो एक परकीय एवं आक्रमणकारीका पूजन किया । हो सकता जाया करते थे। उप मुसलमान फकीरने बादशाहको विश्वास है कि समय और परिस्थितियान हमको ऐसा करनेके लिए दिलाया कि यहीं पर मेयर सलार मपऊद गाजीकी कब थी, बाध्य कर दिया हा, किन्तु अब ता हमारा देश स्वतन्त्र है। जब कि वास्तविक स्थान कटिला नदीके किनारे जित्तीरा या अनएव राष्ट्रीय जीवनमें नवचेतनाका संचार करने वाले वीर चित्तौरा जहाँ पर महवेके वृक्षक नीच मैयद सालार मारे गये मम्राट् मुहेलदेवकी स्मृतिको पुनर्जीवित करना आज हमारा थे बहराइचस ४ माल पू.व में स्थित है और यह स्थान राष्ट्रीय कर्तव्य है। -(वीर अर्जुनसे) समीचीन धर्मशास्त्रके भाष्यपर क्षुल्लक श्री भद्रबाहुजीका अभिमत मक्रिमोपनपर महन्धका प्रकाश डालने वाले इस समो- पं. मुख्तारजीने अपने सम्पूर्ण जीवनमें इतनी जमिन चीन धर्मशास्त्र (ग्नकरण्ड) पर अनेक टीका टिप्पणानि नल्लीनतासे गहरा अध्ययन किया है कि ममन्तभदभारतीय उपलब्ध हैं. किन्तु अन्यके मर्मको, ग्रन्थकारके हार्दिक भावोंको ऊपर अधिकार वाणीसे कहने वाले जगतमें आज ही एक प्रत्येक पदके यथार्थ सुनिश्चित अर्थको स्पष्ट करके यथार्थ- मेव-अद्वितीय विद्वान हैं। उनकी साहित्य सेवाएं विद्वज्जनोंक ग्रन्थ-व्युत्पत्ति कराने वाले भाष्यकी आवश्यकता सुदीर्घकालसे हृदयमें उनका नाम अमर बना रकम्बेंगी । उनकी इस लोकोमासस हो रही थी। श्री. विद्वदर पं. जुगलकिशोरजी पयोगी अनुपम कृतिका विद्वजनोंमें समुचित समादर होकर मुख्तारने इस भाष्यको लिखकर उस महती आवश्यकताकी इसके अन्य प्रांतीय भाषायों में भी भाषांतर हों और सामान्य पति की है। अतः वे अनेकशः हार्दिक धन्यवादके पात्र हैं। जनताके हृदयतक इसका खूब प्रचार होकर समीचीन धर्मकी जैन तत्त्वज्ञान और इतिहासका, विशेषतः समन्तभद्र- प्रभावना हो, यही शुभ कामना है। पु. भववाह भारतीका और स्वामी समन्तभद्राचार्यके जीवनका, श्री. ११-४-१५ - -
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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