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________________ अनेकान्त [ वर्ष १३ उसके मुँह से ये शब्द निकले 'मौतका सामना है । व ग्वीर है । यह इल्तिजा है कि मैंने जिसे सताया हो या किसीने मुझसे आजार पाया हो माफ करे। दिलको साफ करे । फिराक सुरी नज़दीक हैं। अब वस्ले बहेदत ला शरीक है।" परन्तु सैयद मलार ममने इस बार एक बहुत बड़ी चाल चली है। २४८ ] म्याथ गजनीसे भारतमें घुस आया। यहाँ आकर उसने भीषण लूटमार प्रारंभ करदी तथा तलवार जोरसे इस्लामधर्मका प्रसार करने लगा। चारों ओर जनता ग्राहि-त्राहि कर उठी । किसी में इतना साहस न था जो उसका सामना कर सके। लाहौर, दिल्ली, मथुरा, कानपुर, लखनऊ चीर मतारिय आदिको जीतता हुआ वह सन् १०३० में बालार्क पुरी (बहराइच) आ पहुंचा और इसीको अपना केन्द्र बना कर रहने लगा । । इधर सैयद मलार मसूदका यह उत्पात देखकर देशभतिकी भावना ओत-प्रोत वीर सम्राट् सुहेलदेवकी तलवार अपने निरपराध देशवासियों खूनका बदला लेने लिए मचल रही थी । परन्तु वे शान्ति और अहिसाके पुजारी थे । उन्होंने एक पत्रके द्वारा मैयद सलारको यह देश छोड़ देनेके लिए कहा। परन्तु वह तो देशका सर्वोच्च शामक वननेका स्वप्न देख रहा था और युद्धका इच्छुक था वीर सुहेलदेव कब पीछे हटने वाले थे। शठे शाट्यं समाचरेत्' वे खूब जानते थे । अतः दोनों ओरसे युद्ध की तैयारियाँ होने लगीं। इधर सुहेलदेव के सेनापति त्रिलोकचन्द बोहराके सेनापतित्वमें प्रान्तके २१ तथा अन्य राजाओंकी भी सैन्य शक्रियाँ श्रावस्तीके निकट राप्ती नदी किनारे एकत्रित हुई। सैयद सवार मसऊद की सहायता के लिए भी बहराइच, महोबा, गोपामऊ, लखनऊ, मानिकपुर और बनारस योद्धागण आये। श्रावस्तीसे लगभग चार मील दूर इकौनाके स्थान पर दोनों सेना में घमासान युद्ध हुआ । सैयद सलारकी पराजय हुई और उनका सेनापति बुद्धमें मारा गया तथा शेष सभी बहराइच भाग आये। शत्रु अभी देश में ही थे, ऐसी दशा अभी देशमें ही थे, ऐसी दशा में वीर सुहेलदेवको कैसे चैन पड सकता था। उनकी खेनाने आगे बढ़ कर बहराइचसे कोस दूर प्यागपुरके स्थान पर पड़ाव डाला और सैयद सलारको पुनः ललकारा। उसने मी एक दिन अवसर पाकर एकदम सुहेलदेवकी सेना पर धावा बोल दिया। सेयर मलारकी सेना धायन्त वीरवासे ast परन्तु मफलता प्राप्त न कर सकी और पुनः बहराइच भाग गई। बीर सुहेलदेवकी सेनाने उसका पीछा किया और बहराइचसे दो कोस दूर कुटिला नदी किनारे जितौरा ara चित्तौराके स्थान पर अपना पड़ाव डाला । सैयद मजारको जब इसकी सूचना मिली तो वह अत्यन्त भयभीत हुआ 'और अब उसको अपनी पराजयका स्पष्ट चित्र दृष्टिगोचर होने लगा। मीरात मसूदीके अनुसार उस समय उसको निश्चय पता था, कि हिन्दू गडको पूज्य मानते हैं औरों पर कभी अस्त्र नहीं उठा सकते । इसलिए उसने अपनी सेनाके धागे बहुमी गायको कर दिया। जिनके कारण विरोधी मेना इन पर तीरका वार न कर सकेपरन्तु ये अपनी विरोधी सेना पर आसानी से नीरवर्षा कर म ऐसे आपत्ति और संशय में वीर मुहेलदेव अपना कर्त्तव्य खूब पहचानते थे । बुद्धिमानी और चातुखमें भी वे किमीसे कम न थे इसलिए उन्होंने आतिशबाजी और इसकी तीर वर्षाले गायको तितर-बितर कर दिया। अब क्या था, सुहलदेवकी सेना सैयद सलारकी सेनापर शेरोंकी भांति टूट पड़ो। उनकी तलवारें अरि शोणितसे अपनी प्यास बुझाने लगीं । इसी युद्ध पर देशक भाग्य-सूर्यका उदय था अस्त होना निर्भर था। दोनों सेनायें बडी वीरता से लड़ रही थीं । किन्तु इस समय सम्राट् सुहलदेवकी श्र किसी और के लिएड़ी स्याकुल थीं और वह था सैयद सलार । तभी मम्राट्ने उसे एक महुए के पेड़के नीचे युद्ध करता हुआ देखा। इन्हीं की तो प्रतीक्षा देश तया धर्मके अपमानका बदला लेनेके लिए क्षण भरको उनका हृदय मचल उठा । देहसे क्रोधाग्नि निकलने लगी । श्रब अपनेको और सम्हालना उनके लिए असम्भव हो गया । सम्राट् सुहलदेव और यवनाधिपति सैयद सलार के बीच युद्ध प्रारम्भ हुआ। इतने में ही मम्राट् सुहलदेव एक बा सैयद सलारको मृत्युलोक पहुँचा दिया। मीराते मसऊदी (भारसी) में इसका वर्णन इस प्रकार है : 1 ""निज्द दरियाय कुटिला र दरख्त गुलचकां जब नाविक हम मीज शहीद शुद" अर्थात् कुटिला नदी के किनारे, महुवेके वृत्तके नीचे, तीरके द्वारा गला विंधनेसे मसकर गाजी शहीद हुए। इसके उपरान्त सैयद सलारके लगभग सभी सिपाही मारे गये। भारत भूमि वचनोंसे रहित हुई। देशके भाग्यका पुनः सूर्योदय हुआ। विजयकी सूचनासे सम्पूर्ण देशवासियों में प्राकी एक शहर दौड़ गई। प्रजाके लिए तो राजा
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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