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________________ % 3D किरण ११-१२] सम्पादकीय [३२१ रहा है । इधर बा. छोटेलालजीको कलकत्तासे पाए और लेखोंका प्रफ जरूर देखता हूँ-दूसरे किसी खास लेखका बिल्डिंगके कार्यमे पूरा योग देते तथा स्वयं खड़े होकर प्रफ देखने में मुझे कदाचित् हा प्रवृत्त होना पड़ता है। परिश्रमके साथ काम कराते हुए कई महीने हो गये और वे प्रफ रीडिंग और सम्पादनका कार्य प्राय: ५० परमानन्दजी अब जल्दी ही वापिस कलकत्ता जाना चाहते थे और साथ ही कर रहे हैं । मेरी वृद्धावस्था और रुचिके भी कुछ बदल ही यह भी चाहते थे कि बिल्डिगकी नीकी मंजिलको जानेके कारण ये दोनों परिश्रम-साध्य कार्य अब मुझसे प्रायः सब तरहसे पूरी कराकर, उसे किराये पर चढ़ाकर और नहीं बनते। और इस से मैं सम्पादक-पदसे एक दो बार दूसरी मंज़िलके हॉल आदिकी छतें डलवाकर ही कलकत्ता त्यागपत्र भी दे चुका है, जिसे यह कह कर अस्वीकार कर जावें । इमसे मामान ग्वरीदने, बिजली तथा नलोंका फ़िटिंग दिया गया कि आप कार्य भले ही न करें, आपका नाम कराने, उनके क्रिटिंगकी शीघ्रताके लिये बार २ अनेक अफसरोंके सम्पादक-मण्डलमें जरूर रहेगा, परन्तु मेरे द्वारा होनेवाले पास जाने, सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाने भादिके कितने ही कार्योकी कोई दूसरी व्यवस्था नहीं की गई ! अस्तु । काम ऐसे नये खड़े होगये जिनकी मारा-मारीमें ६० परमानंद अब तो इस नये भयंकर रोगके धक्कसे मेरी शक्तियां नीको भी लगना पड़ा और अनेकान्तका सारा काम गौण और भी जीर्ण-शीर्ण हो गई हैं। इसीसे शरीरमें शक्रके कर दिया गया । उधर दिल्ली में लगातार अशान्ति भोगते पुनः संचार एवं स्वास्थ्य-लाभको दृष्टिसे मैं कमसे कम एक हुए मेरा प्राण घुटने तथा स्वास्थ्य और भी गिरने लगा, वर्षके लिये सम्पादक-पदस अवकाश ग्रहण कर रहा हूँ। इसमे स्वास्थ्य गाथा शान्ति-लाभ लिये मैं जुलाई के मध्यमें अत: इस किरणके माथ अपने पाठकोंसे विदाई ले रहा हूँ। सरमावा चला गया, जहाँ मुझे शान्ति मिली और मेरे यदि जीवन शेष रहा तो फिर किसी-न-किसी रूपसे उनकी म्वास्थ्यमें अपेक्षाकृत कितना ही सुधार हुश्रा है. और उसीका सेवामें उपस्थित होमगा । अपने इस लम्बे संवा-कालमें यह फल है कि आज मैं यह 'सम्पादकीय' लिखने में प्रवृत्त यदि कोई अनुचित या अप्रिय आचरण पाठकोंके प्रति मेरा हो रहा है। अनेकान्तका हिसाब भी जैसे तैसे तय्यार ही बन गया हो तो उसके लिये मैं उनसे हदयसे क्षमा चाहता गया है और वह इस किरणमें प्रकाशित किया जा रहा है। हूँ, श्राशा है वे अपने उदारभावसे मुझे ज़रूर पमा करेंगे। यहाँ एक बात और भी प्रकट कर देने की है और वह ४. अनेकान्तका हिसाब और घाटायह कि कुछ विद्वानोंका ऐसा ख़याल है कि अनेकान्तका अनेकान्तक इस १३ वर्षका हिसाब, जिसे पं० परमास्टैंड कुछ गिर रहा है, जिसका जिक्र उन्होंने अध्यक्ष बाबू नन्दजी शास्त्रीने तय्यार किया है, प्रस्तुत किरणमें अन्यत्र छोटलालजोस किया है। इस विषयों में इस समय इतना ही प्रकाशित हो रहा है। हिमाबको देखनेसे मालूम होता है कि निवेदन कर देना चाहता है कि जहों नक लेखोंके प्रकार, इस वर्षकी कुल आमदनी २३६३-) है, जिसमें नियत ग्राहकोंस चयन-युनाव या मंझलनसे सम्बन्ध है पत्रका मडर्ड प्रायः प्राप्त हुई रकम केवल १२ ) है, शेष संरक्षक-महायकों कुछ भी नहीं गिग-वह जैया पिछले कुछ वर्षोंमें था वैमा तथा फाइलोंकी विक्री प्रादिस प्राप्त रकमें हैं। और खर्चका अब भी है। दूसरे अनेक विद्वानोंक ऐसे पत्र पा रहे हैं जो कल जोड ३७६ ) है। अत: इस नका घाटा अब भी लेवोंकी दृष्टिय इस जैन समाजका एक आदर्श एवं १४६२॥-)॥ हुया, जिसमें पिछले घाटेको रकम महत्वपूर्ण पत्र बतला रहे हैं। हाँ, दो दृष्टियोंसे पत्रका ८७१10) मिला देनेसे घाटकी कुल रकम २३६४) हो स्टैंडर्ड कुछ गिरा हुया जरूर कहा जा सकता है-एक तो जाती है । यह रकम वास्तवमें चार वर्षके घाटकी है। यदि यह कि दूसरोंके लेम्बोंका सम्पादन अब मेरे द्वारा प्रायः १.वें वर्षके घाटेकी रकम २३३३) को, जिसके कारण नहीं होता, जब मेरे द्वारा लेखांका सम्पादन होता था तब पत्र वर्षभरसे ऊपर बन्द रहा था, अलग रक्खा जाय तो भाषा-साहित्यादिके सुधार-द्वारा अधिकांश लेग्वोंमें कुछ यह कह सकते हैं कि शेष तीनों वर्ष, अपने संरक्षकों नथा नया जीवन पा जाता था और इसलिये पाठकोंको वे अधिक सहायकों के बल पर, बिना किसी घाटेके ही पूरे हो गये है। रुचिकर मालूम होते थे। दूसरी दृष्टि पत्रके कुछ अशुद्ध परन्तु पाटेकी उस रकम का तो पहले पूरा होना अनिवार्य छपनेकी है और उसका प्रधान कारण यही है कि पत्रका था, इसलिये चार वर्षके घाटेकी जो रकम स्थिर की गई वह प्रफ रीडिंग अब मेरे द्वारा प्राय: नहीं होता, मैं स्वयं अपने प्रायः ठीक हो है। मैंने एक दो बार यह प्रक्ट किया था कि
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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