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________________ सम्पादकीय १. दूसरी भयंकर दुर्घटनासे त्राण जलवायु भी मुझे अनुकूल नहीं पड़ रहा है। अस्तु । पिछली तोंगा-दुर्घटनाको अभी दो वर्ष दो महीने भी इस दुर्घटनाके अवसर पर दोनों डाक्टरोंने, पुत्रीसम पूरे नहीं हो पाए थे कि एक दूसरी भारी दुर्घटनाका मुझे बहन जयवन्तीने घऔर बाब छोटेलालजी, पं० परमानन्दजी शिकार होना पड़ा। गत ११ जनको काम करते-करते तथा पं० होरालालजी शास्त्री श्रादिने मेरी जो सेवा की है अचानक एक भयंकर रोगका मेरे उपर आक्रमण हो गया, उप सबके लिये में उनका बहुत श्राभारी है। जिससे एकदम मन-पित्तादिका क्षय होकर शरीर ठण्डा पड २. पुरस्कारोंकी घोषणाका नतीजागया, म्वुश्की बढ गई और हम्त पादादिक जल्दी-जल्दी अनेकान्तकी गत दूसरी किरण (अगस्त १९५४) में मुडकर भारी वेदना उत्पन्न करने लगे । खूनका दौरा निम्न छह ग्रन्थों को खोजक लिये, जिनके उल्लेख तो मिलते (Circulation of blood) बन्द होकर सब कुछ हैं परन्तु वे उपलब्ध नहीं हो रहे हैं, मैंने अपनी तरफसे समाप्त होनेके ही करीब था कि इतनमें मेरे पोते डा. नेम- ६००) रुपयक छह पुरस्कारोंकी घोषणा की थी और साथमें चन्दका एक इंजेक्शन बाएं हाथको एक नस (रंग) में उन उल्लेख-वाक्यों श्राविका परिचय भी दे दिया था सफल हो गया और उससे शरीग्में गर्मीका स्पष्ट संचार जिनसे उनके निर्माण तथा पठन-पाठनादिका पता चलता हैहोता हुआ नज़र पड़ा। तबियतके कुछ सँभलने ही मुझे -जीवमिद्धि (स्वामी समंतभद्र), २-तत्त्वानुमासन जैसे तैसे बन्धुबर डा. रमुवीरकिशोरजी जेनके हम्पतालमें (म्वामी समंतभद्र), ३-४-सन्मतिसूत्रकी दो टीकाएँ-एक ले जाया गया जो निकट था और जहाँ मैं तांगा-दुर्घटनाके दिगम्बगकार्य मन्मति या सुमतिदेव-कृत और दूसरी श्वेताममय भी २० दिन रह चुका था। दोनों डाक्टरोंके परामर्श- म्बराचार्य मल्लवादि कृत, ५-तत्त्वार्थसूत्रकी टीका (शिवमे कुछ इंजेक्शन और दिये गये तथा १५-१५ मिनिटके कोटि), ६-विलक्षणकदर्थन (पात्र केसरी स्वामी) बाद पानी का दिया जाना निर्धारित हुआ। रात भर पैरों- सोजकी सूचगावधि फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा सं० २०११ टांगा आदिका मुइना और नम पर नम चढ़ कर वेदना तक रग्वी गई थी और साथ ही यह 'श्रावश्यक निवेदन' उत्पन्न करना जारी रहा, जिसे बहुत कुछ धैर्य के साथ सहन भी किया गया था किकिया गया। सुबह होनेपर बड इंजक्शन द्वारा, जो ढाई घटेके इन अन्यांक उपलब्ध होने पर साहित्य, इतिहास करब जनी हा शरीरमें नमीन पानी बहाना गया और तत्वज्ञानविपयक क्षेत्र पर भारी प्रकाश पडेगा और क्योंकि हम्न-पादादिकके मानका कारण शरीर में नमकमा अनेक उलझी हुई गुत्थियाँ म्वतः सुलझ जाएँगी । इमीसे कम हो जाना था । इस जेशनका त्वरित और साक्षात वर्तमानमें इनको खोज होनी वहुन ही आवश्यक है । अतः फल यह हुआ कि हस्तपादादिका मुन्द्रना उसी समय रुक सभी विद्वानोंको-स्वासकर जैन विद्वानोंको-इनकी खोज गया। मामी, पाया हुआ पानी खर्ट-कड़ए पित्तीको साथ लिये पूरा प्रयन्न करना चाहिये, सारे शास्त्रभण्डारोंकी लेकर जो उबकाई-बमन द्वारा निकल जाता था उसका अच्छी छान-बीन होनी चाहिये। उन्हें पुरस्कारकी रकमको निकलना भी बन्द हो गया। और कोई छह दिनके बाद न देखकर यह दग्वना चाहिये कि इन ग्रन्थोंको खोज-द्वाग में दम्पनानसे वापिस वीरसेवामन्दिरको भागया। हम देश और समाजको बहुत बड़ी सेवा कर रहे हैं । ऐसी इस तरह दूगरी भागे दुर्घटनास, जिमकी भयंकरता संवाओंका वास्तवमें कोई मूल्य नहीं होना-पुरस्कार नो पहनी दुर्घटनासे कुछ भी कम नहीं थी, यद्यपि धर्मरे आदर सत्कार एवं सम्मान व्यक्त करनेका एक चिन्ह मात्र प्रसादसे मेरा त्राण (संरक्षण) हो गया है परन्तु शरीर है। वे तो जिन ग्रन्थकी भी खोज लगाएँगे उसके 'उद्धारकर बहुत कुछ निप्पाण बन गया है। शरीर में शनियाँके क्षयस समझ जायेंगे।" जो कमजोरी आ गई है उसका दूर होना अब अधिक इतना सब कुछ होते हुए भी खेद है कि किसीने भी विश्राम एवं निश्चिन्ततादिको अपेक्षा रखता है, जिनका उस पर कुछ ध्यान नहीं दिया ! कहींसे खोजका प्रयत्नमनना दिल्ली वोरमेवामन्दिरमें रहने और उस कार्योका सूचक कोई पत्र भ प्राप्त नहीं हुआ जिमसे यह मालूम ज़िम्मेदारियोंका भार वहन करत नहीं बन सकता । दिल्लीका होना कि अमुक सज्जनने अमुक बड़े, अप्रसिद्ध या अपरि.
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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