________________
वीरसेवा मन्दिरमें श्रतपञ्चमी महोत्सव
ज्येष्ट शुक्ला पञ्चमी ता. २६ मईको श्रतपञ्चमी पर्व है, जिसे वीरसेवामन्दिर और बाबू छोठेलालजी कलकत्साके स्थानीय दि. जैन लालमन्दिरमें सानन्द और सोत्साह सत्प्रयत्नसे सम्पन्न कर रहा है। जीर्णोद्धार हो जानेसे इन मनाया गया । इस उत्सवकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी ग्रन्थोंको काया पलट हो गई है और अब उनको प्रायु पांचकि भगवान महावीरकी साक्षात् वाणीसे जिनका सम्बन्ध है सौ वर्षके लगभग और हो गई है। अर्थात् जिनमें भगवान महावीरकी वाणीका सार भरा हुधा
इसके बाद ला. रघुवीरसिंहजी जैनावाचने बाबू है उन पागम ग्रन्थोंकी प्रायः एक हजार वर्ष पुरानी जय
छोटेलालजी कलकत्ताका परिचय कराते हुए बतलाया कि धवल महाधवलकी प्राचीन ताण्डपत्रीय प्रतियाँ जो गत १२
बाबूजी वीरसेवामन्दिरकी बिल्डिंगके कारण इतनी दूर तीव्र दिसम्बरको देहजीके वार्षिक रथोत्सबके समय मूडबिद्रीसे
गर्मी में तीन महीनेसे अधिक समयसे पड़े हुए हैं। इन्होंने मरम्मतके लिए लाई गई थीं, और जिनका शानदार जुलूस वीरसेवामन्दिरको बिल्डिंगके लिए जमीन खरीदनेके लिए निकाला गया था । और जो भारतीय ग्रन्थ रक्षा
चालीस हजारसे ऊपरकी रकम प्रदान की है। और शारीरिक गार (नेशनल पारकाईन्ज अाफ़ इण्डिया ) से जीर्णो- अश्वस्थतामें भी अपने सेवा-कार्यमें जुटे हुए हैं। प्राप द्वारित होकर लालमन्दिरजीके विशाल हालमें शो ग्लास
लघमी सम्पन्न, इतिहामज्ञ और कलाके प्रेमी विद्वान है। केशमें चाँदीकी चौकियों पर विराजमान की गई थीं। उनके
आपकी वजहसे ही इन भागम-प्रन्थोंका ऐसा अच्छा जीर्णोदोनों ओर लालमन्दिरजी और वीरसेवामन्दिरके हस्त- द्धार कार्य हो सका है। मैं बाबूजीके भद्रस्वभाव और सेवा लिखित ग्रंथ और मुद्रित ग्रन्थ विराजमान थे। उस समय कार्यको प्रशंसा करते हुए नहीं थकता । मैं बाबूजोसे प्रेरणा ऐमा जान पड़ता था कि सरस्वती माताके इम मन्दिरमें
करता हूँ कि आप इन श्रुत प्रन्योंके सम्बन्धमें अपना भाषण महावीरकी वाणोका धाराका प्रवाह प्रवाहित हो रहा है, अनन्तर उक्र बाब साहबने अपना भाषण प्रारम्भ करते बा० छोटेलालजी कलकत्ता, धर्मसाम्राज्यजी मूडबिद्री, पं.
हुए जैन समाजके धार्मिक प्रेमके शैथिल्यकी चर्चा करते हुए जुगजकिशोरजी मुख्तार और ला• रघुवीरसिंहजी जैना वाच,
बड़ा भारी खेद प्रकट किया और कहा कि जिन भागमऔर मैंने तथा दूसरे स्थानीय अन्य साधर्मी भाइयोंके साथ
ग्रन्थोंके दर्शनोंके लिए हम हजारों रुपया खर्च करके ३०-३५ श्रुतकी पूजा की, दोनों ओर दो लाउडस्पीकरों पर पूजा बड़े
पाकरा पर पूजा बड़े व्यक्रि शामिल होकर और वहां भेंट चढ़ा कर उनका दर्शन मधुर स्वरमें पढ़ी जा रही थी, जिसे उपस्थित जनता बड़ी भाकर करते थे। ये ग्रंथ लाखों व्यक्रियोंके नमस्कारों और शान्तिके माथ सुन रही थी।
धोकोंसे पवित्र हुए हैं। वे जैन संस्कृतिकी ही नहीं किन्तु शामको शास्त्र प्रवचनके बाद ८ बजेसे मभाका कार्य
भारतकी अनुपम निधि हैं। जिनके जीर्णोद्धारका महान् प्रारम्भ हुआ। यद्यपि गर्मीकी वजहसे जनताकी उपस्थिति
कार्य वीरसेवामन्दिर द्वारा सम्पन्न हुआ है, इस कार्य में मेरे उतनी ज्यादा नहीं थी, जितनी कि दहलो जैसे केन्द्र स्थल में
केन्द्र स्थलम मित्र धर्म साम्राज्यजीका सत्प्रयत्न सराहनीय है धर्मसाम्राज्यजीसे होनी चाहिये थी। फिर भी कार्य प्रारम्भ किया गया। मेरी तीस वर्षसे मित्रता है। वे चौहार राजवंशके हैं उन्हीं प्रथम हा पं. अजितकुमारजी शास्त्री सम्पादक 'जैन गजट' ने की कपासे दिल्ली वालोंको उनके दर्शन-पूजन करनेका परम श्रुतपंचमीक उद्गमका इतिहास बतलाते हुए उन अागम सौभाग्य मिला है। इसके लिये वे धन्यवादक पत्र है ! ग्रन्थोंका महावीरकी वाणीसे कितना गहरा सम्बन्ध है। दिल्ली जैन समाजका केन्द्र है। यहाँ जैनियोंकी संख्या २०इसका विवेचन करते हुए आपने बतलाया कि यदि जिन- २५ हजार होते हुए भी उनकी उपस्थिति उसके अनुकूल वाणी माता न होती तो आज हमें सन्यपथ भी नहीं सूझता। न होना बढे भारी खेदका विषय है। मालूम होता है कि परन्तु खेद है कि हम लोग इनकी महत्ताको भूल गये। हमारा धार्मिक प्रेम अब शिथिल हो गया है, जब कि हमारा सौभाग्य है कि वीरसंवा-मन्दिरके सत्प्रयन्नसे हमें मुसलमानों और सिक्खोंका धर्म प्रेम बढ़ रहा है । जब एक इनका साक्षात् दर्शन और पूजन करनेका सुअवसर मिला मानेके एक पुराने स्टम्पका मूल्य दो लाग्य रुपया मिला और है । मूडबिद्रीके पंचों ट्रस्टियों और भट्टारकोंने श्रुतकी रक्षाका वह भी सुरक्षाकी गारंटोके साथ । इस तरह जब ऐसी-ऐसी महान् कार्य किया। जिसके लिए वे धन्यवादके पात्र हैं। चीजोंकी सुरक्षा की जा रही है तब इन प्रमूल ग्रन्थोंकी वीरसेवामन्दिरका शास्त्रोद्धारका यह विशाल कार्य महान् सुरक्षाकी और हमारा तनिक भी ध्यान न होना हमारी अज्ञता