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________________ किरण १ दिल्ली और उसके पाँच नाम इस बातका द्योतक है कि उस समय भारतीय राजाओंको दिल्लीको राजाधली में सं. २ में चौहानवंशका अपने राज्यकी सुरक्षाके लिये यवनादि विदशियांसं दिल्ली पर अधिकार करना लिखा है। अनेक युद्ध आदि करके भी रक्षा करनी पढ़ती थी। इनक स्वर्गीय महामना भोमाजीने सं० १२०७ के खगभग परस्परमें भी अनेक हुए. जो उनकी संगठित चौहानांका दिखली पर काम करना लिखा है। पर शक्तिकी शिथिलत के सूचक है। वह राजावली और उस समयकी स्थितिको देखते हुए टीक विग्रहराज ( वीसलदेव चतुर्थ) ने दिल्जीको विजित नहीं जंचता। हो सकता है कि वह सं० १२०७ और सं. कर उसे अपने राज्यका एक सूबा बनाया था। दिल्लीको १२१६ के मध्य में किमी ममय हुमा हो। प्रस्तु, प्रसिद्ध फीराजशाहकी लाट पर अशोककी धर्मप्राज्ञामाकं अब सोचना यह है कि मन् १०८से (वि० सं०११३८) नीचे शिवालिक स्तम्भ पर उत्कीर्ण किय हुए सन् १९६३ सन् १९६२ (वि.सं. १२१६)के मध्यवर्ती समयमें देहलीपर (वि. सं. १२२.) के वैशाख शुक्ला ११ के शिक्षा किस-किमने शासन किया है। ऐतिहासिक विद्वानोंने इस वाक्यमे यह बतलाया गया है कि-चौहान वंशा राजा सम्बन्ध में कोई निश्चित इतिवृत्त का विवरण दिया हो ऐसा वीमनदव (चतुथ) में तीर्थयात्राक प्रसंगको कर मुझ अद्यावधि ज्ञात नहीं हुअा। हो सकता है कि वह मेरे विन्ध्याचलम हिमालय तक प्रदेशांको जीतकर कर देखनम नह देखने में नहीं पाया हो । परम्नु दिल्लीको राजावलीसे तो वसूल किया और प्रार्यावर्त में म्लेच्छोको निकालकर इतना स्पष्ट जाना जाता है कि दिल्ली पर सं० १२११ के. पुनः प्रार्यभूमि बनाया * । सं० १२२६ में उत्कीर्ण हुए श्राम-पास तक तोमरवंशका शासन रहा है परन्तु उसमें राजाओंके जा नाम दिए हुए हैं उन सबका अभी तक दूसरे दिल्ली लेनेसं श्रान्त ( थक हुए ) और श्राशिका ( हांसी प्रमाणामे पूरा समर्थन नहीं हुश्रा है। इसी कारण के लाभसं लाभान्वित हुए विग्रहराजन अपने यशको प्रताडी मध्यवर्ती समयकी कडीका सम्बन्ध जोड़मके लिए मानन्द और बलभीमें विश्रान्ति दो-वहां उस स्थिर किया -। सम्वतका मा कल्पना का गह । जि सम्बतकी भी कल्पना की गई। जिमका निरसन ओझाजीने , इन दोनाम से प्रथम शिलावाक्यम इतना तो सुनिश्चित है किया है। प्रस्तु, उन तामर शासकोंक नाम इस प्रकार कि वि० सं० १२२० से पूर्व विग्रहराजने दहली पर करजा हैं- रावलु तेजपाल, २ रावलु मदनपाल. ३ अनंगकर लिया था। पाल ) सवलु कृतपाल, ४ रावन लखनपाल, और पृथ्वीपालु। विग्रहराजक पिता मिहराजके तामरशी राजा मल इन नामांमें कुछ परिवर्तन भी हश्रा है। प्रस्तुन वणको पराजित करने और मारनंका उल्लंम्ब किया मदनपालका नाम ही अनंगपाल (तृतीय) जान पड़ता गया है। है। इसी तरह कृनपाल का नाम गवलु कुबरपाल ज्ञात -एपिग्राफिया इंडिका जि.२ पृ. १२२ होता है। इन राजाभांक असली नाम क्या थे और उन्होंने केशाविन्ध्यावाहिमाद्रं वियविजयम्तीर्थयात्रा प्रमंगा- कितने समय तक दिलीम राज्य किया है यह सब बाने दुग्रीवेपु हान्नृपतिषु विनमत्म्कन्धरपु प्रपनः । अभी विचारणीय है। मावते यथार्थ पुनरपि कृतवाम्लेच्छविच्छेदनाभि यहाँ पर इतना जान लेना और भी आवश्यक प्रतीत देव शाकंभरीन्द्रा जति विजयते वीसलः वाणिपाल:॥ होता है कि अनंगपाल नामक एक तोमवंशी राजाका मते सम्प्रति चाहुवाणतिलकः शाकंभरीभूपतिः । समुल्लेख सं. 11 में रचनाने वाले कविवर श्रीधरश्रीमान् विग्रहराज एप विजयी मन्तान जानाम्मनः॥ के पावपुराणमें हुअा है जो उस समय देहली में ही अम्माभिः करदं ज्यधायि हिमाद्वन्ध्यान्तरालं भुवः । रचा गया है। उसमें अनंगपाल नामक राजाकाही स्पष्ट शेषं स्पष्टीकरणायमाम्तुभवतामुद्योगशून्यं मनः॥ उल्लेख नहीं है किन्तु उमक राज्य, राजधानी और -इण्डियन एण्टीक्वेरी जिल्द 1 पृष्ठ २१८ +दखा अनेकान्त वर्ष ८ किरण ३ पृष्टपर प्रकाx देखो अनकान्त वर्ष ११ पृष्ठ ३६२ । शित दिल्ली और दिलीकी रामावली नामका मेरा लेख ।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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