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अनेकान्त
[किरण १
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हैं। इसके राज्य-समयका एक शिलालेख भी मिला है महमूदके पुत्र मसूदसे भी तोमरवंशी राजाओंको जिसमें लिखा है कि-'संवत् ११.६ दिल्ली अनंगपाल अनेक युद्ध करने पड़े। तथा ममूल के प्रान्ताधिपति अहमदवही ।' साथ ही कुतुबमीनारके पास अनंगपालके मन्दिरके नियाल्लिगीनने सन् २०२४ में बनारसको लूटा था और एक स्तम्भ पर उसका नाम भी उत्कीर्ण किया हुआ वहांकी जनताको भारी परेशान किया था। मिरसेका मिला है।
घेरा स्वयं मसूदने डाला था और उसने सन् १०३८ इस उपलबसे प्रकट है कि अनंगपाल द्वितीयने दिल्ली- (वि० सं० १०६५ ) के लगभग हाँसीके उस महान् का पुनरुद्धार किया था और उसे सुन्दर महलों, मकानाता, सुदृढ़ दुर्गको भी अधिकृत कर लिया था ४ । उसने तथा धन-धान्यादिसे ममृद्ध भी बनाया था । सम्भवत: अपने पुत्र मजदूदको भारतका प्रान्ताधिपति बनाया था। इसी कारण उपके सम्बन्ध में दिल्लीके बमाये जानेकी उसके बाद मजदृदने थानेश्वर पर भी बजा कर लिया कल्पनाका उद्गम हुअा जान पड़ता है।
और हाँसी पर घेरा डाल कर वह दिल्ली पर कब्जा द्वितीय अनंगपालके राज्याभिषेकका समय जनरल करने के लिये प्राकमण करना ही चाहता था कि मसूदके कनिघम साहबने सन् २०११ (वि० सं० 1100) दिया उत्तराधिकारी मजदूदसे किसी कारणवश अनबन हो गई, है और राज्यकाल २६ वर्ष छह महीना, अठारह अतः उसे सेना सहित लाहौर वापिस लौटना पड़ा। जहाँ दिन बतलाया है । अतएव इसका राज्य समय पर मन १०४२ (वि.सं. १०१६ ) में उसकी मृत्यु सन् १०१ ( वि० सं० १९०८) मे सन् १०८५ हो गई । (वि सं०11३८) के करीब पाया जाता है। यदि इसके तोमरवंशी गजा महीपालने मुमलमानांस हॉमी और राज्यका उक्त समय सुनिश्चित है तब उसके पश्चात् दिल्ली थानेश्वरक किल्ले पुनः वापिस ले लिये। इतना ही नहीं, पर अन्य किसने शासन किया, यह कुछ ज्ञात नहीं होता। किन्नु उसने काँगड़े पर भी कब्जा कर लिया २ । वह लाहार पर तोमर वंशका शासन उस समय तक दिल्लीमें रहा है। पर भी करना करना चाहता था. पर उपमें सफलता
भारतीय इतिहासका अवलोकन करनेसे तो यह मिलती न देख कर वह दिल्ली वापिस लौट आया। ज्ञात होता है कि सन् १०१० से सन् १०४२ या इस तोमरवंशी राजाओंको केवन यवनामे ही युद्ध नहीं करना समयके १०-२० वर्ष पूर्वोत्तरवर्ती समयमें भारतीय राजाश्रांकी संगठन-शक्कि शिथिल हो चली थी और पडे और हानि उठानी पड़ी। यह सब घटनाचक्र. विदेशी यवन लोग भारतकी समृद्धिको विनष्ट कर उस ..
. बंगाल एलियाटिक सोसाइटी पत्रिका भाग ४२ पृ. पर छा जाना चाहते थे । ग़जनीके सुलतान महमूदने सन्
५०४ स ११। १०१० से पूर्व भारत पर अनेक आक्रमण किये थे और सन १.११ में उसने थानेश्वर पर भी भाक्रमण करने का
x कैम्ब्रिज हिस्टरी श्राफ इंडिया, भाग ३ पृ. ३० इगदा किया था। थानेश्वर उस समय सम्भवतः दिल्ली
स नी कैम्ब्रिज हिस्टरी आफ इंडिया भाग ३.-पृ० ३० राज्यका ही एक भाग था। वहाँ के शासकने इधर उधर २ देखो, डा० दशरथ शर्मा एम. ए. का 'दिल्लीका दौड़ धूप कर सहायता प्राप्त करनेका भारी प्रयत्न किया,
तामर राज्य' नामका लेख। परन्तु उसके पूर्व ही उस पर महमूदने अाक्रमण कर दिया ३ जैसा कि सन् १७३ (वि० सं० १.१.) की
और उसे बुरी तरह लूट खसोट कर अपने खजानकी उत्कीर्ण की हुई हर्षनाथ मन्दिर-प्रशस्तिके निम्न श्रीवृद्धि की । उसके बाद वह इतना बलशाली बन गया पद्यसे प्रकट है :कि कन्नौज के सम्राट को भी उसकी अधीनता स्वीकार कर- . . . . . 'तोमरनायक सलवणं सैन्याधिपत्योद्धतं, नेके लिये बाध्य होना पड़ा।
युद्धे येन नरेश्वराः प्रतिदिशं निर्णाशिता जिष्णुना। देखो, राड-रामस्थान पृ. २२७ अोझाजी द्वारा कारावश्मनि भूर्यरश्च विस्तास्ताद्धि यावद्गृहे, सम्पादित तथा राजपूतानेका इतिहास प्रथम जिल्द तन्मुक्त्यर्थमुपानतो रघुकुले भूचक्रवर्ती स्वयं ॥ पृष्ठ २३४
इसमें सन् १७३ भाषाढसुदि १५ को सांभरके राजा