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________________ दिल्ली और उसके पाँच नाम (पं० परमानन्द जैन शास्त्री) भारतीय इतिहासमें दिल्लीका महत्वपूर्ण स्थान रहा पाल नामके एक तोमर सरदार द्वारा दिल्लीके संस्थापित . है और वर्तमानमें भी उसकी महत्ता कम नहीं है, क्योंकि होनेका समुल्लेख करते हैं। दिल्लीको भारतवर्षकी राजधानी होने का अनेक बार गौरव देहली म्यूजियममें सं० १३८४ का एक शिलालेख प्राप्त हुआ है और वर्तमान में भी वह स्वतन्त्र भारतकी उसके निम्न वाक्यमें तोमर या तम्बरशियों द्वारा दिल्लीक राजधानी है। दिल्लीने अनेक बार उस्थान और पतनकी निर्माण किये जानेका स्पष्ट उल्लेख अंकित है:पराकाष्ठांक वे नंगे-चिन्न दख है-दिल्ली उजाड़ने और 'देशोस्ति हरियानाख्या प्रथिव्यां स्वर्गनिमः। पुनः बसाने तथा कस्लेभामके वे भीषणतम दृश्य देखे और ढिल्लिकाख्या पुरो तत्र तोमरैररित निर्मिता ॥' सुने है जिनका चिन्तन और स्मरण भी प्राज अत्यन्त लाम- उक्त पद्य-गत तोमर यातम्बर शब्द एक प्रसिद्ध त्रिय हर्पक है । जब हम इसकी समृद्धि और अमद्धिका विचार जातिका सूचक है। जो तामरवंशके नामसं लोकमें प्रसिद्ध करते हैं तब हमें संसारको परिवर्तन-शीलताका स्वयं अनु- है। इस वंशके गजा अनंगपाल (प्रथम) ने दिल्लीको बयाभव होने लगता है। या और द्वितीय अनंगपालने इसका समुद्धार किया। दिल्लीको कब और किसने बसाया यह एक प्रश्न है, द्वितीय अनंगपालको दिल्लीका बसानेवाला या संस्थापक जिम पर ऐतिहासिक विद्वान अभी तक एकमत नहीं है। मानने पर अनेक आपत्तियाँ पाती हैं। और नहीं तो दिल्लीकी महत्ता की उसके विविध नामांकी मूचिका है। कमसेकम मसरातो मसउदीके इस कथमका तो गलत ठहजनसाहित्यमें दिल्लीके विविध नामांका उपयोग किया राना ही पड़ेगा कि सालारमसऊदने सन् २०१७ से मन गया है। खासकर हिल्लो', जोइणिपुर' (योगिनीपुर) १०३. के मध्य में दिल्ली पर चढ़ाई की थी, उस समय दिल्ली और जहानाबाद नामोंका उल्लेख जैनसाहित्यमें वहांका राजा महीपाल था जिसके पास उस समय भारी अन्य-गत प्रशस्तियों, मूर्तिलखों और शि वालेखों में पाया सैन्य और बहुतसे हाथी भी थे और जिसका पुत्र गोपाल जाता है जिनका परिचय दिल्लीक नामर-कालीन कुछ लड़ाई में मारा गया था। ऐतिहासिक कथनके बाद किया जायगा। जनरल कनिंघमके समान ही पं० लक्ष्मीधर वाजपेयी अबुलफजल सं० ४२६ में और फरिस्ता सन् ६२० भी नामरवंशक अनंगपाल प्रथमको दिल्लीका मूल संस्थामें दिल्लीका बसाया जाना मानना है ।। परन्तु प्रायः सभी पक लिखते हैं जिसका राज्याभिषेक मन् ७३६ में हुधा ऐतिहासिक विद्वान् दिल्लीको सामरवंश द्वारा बसाए जानेका माना जाता है। उसने सबसे प्रथम दिल्ली में राज्य किया उल्लेख करते हुए पाए जाते हैं। कनिंघम साहब सन् ७३६ और उसके बाद उसके वंशज कन्नोज चले गए, वहाँसे उन्हें में अनंगपाल (प्रथम) द्वारा दिल्जीके बसाए जानेका उल्लेख चन्द्रदेव राठौरन भगा दिया था। इसके बाद दूसरा करते हैं। प्रसिद्ध पुरातत्वत्ता वोर्गीय मामाजी भी अनंगपाल दिल्ली में पाया और वहां उसने अपनी राजद्वितीय अनंगपालको उसका बसाने वाला मानते हैं। धानी बनाई X । पुनः नूतन शहर बसाया और उसकी, और पण्डित जयचन्द्र विद्यालंकार सन् २०१० में अनंग- मुरक्षाके लिए कोट भी बनवाया था। कुनबमीनारके प्रास- .--. - - --- . -~ पास प्राचीन इमारताक जो पुरातन अवशेष एवं चिन्ह देखे देखो, टाड राजस्थान पृ० २२७, प्रोमाजी द्वारा जाते हैं वे सब अनंगपाल द्वितीयकी राजधानीक माने जातं सम्पादित। २ देखो, भाकिंवोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया By इतिहास प्रवेश प्रथम भाग पृ० २२० जनरल कनिंघम पृष्ट १४६ । ५ टाहराजस्थान हिन्दी सं० पृ. २३. १देखो, टार राजस्थान हिन्दी पृ. २१.। x देखो, दिल्ली अथवा इन्द्रप्रस्थ पृ.६
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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