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________________ अनेकान्त 1 वर्षे १३ कवि श्रोचरने अपने अपन भाषाके पार्श्वनाथ चरित्र में हरियाना देशको असंख्य ग्रामांसे युक्त, जन-धन से परिपूर्ण बतलाया है। उमी दरियामा देशको राजधानी दिल्लीबाई गई है जो यमुना नदी के किनारे पर बसी हुई थी, उसका प्रशासक अनंगपाल नामका एक राजा था, नहल माहू नामक एक दिगम्बर श्रावक उसका प्रधान मन्त्री था और उसकी प्रेरणा से कविवर श्रीधरने उक्त चरित ग्रन्थकी रचना की थी । हमसे स्पष्ट है कि 'दिल्ली' शब्दका प्रयोग सं० १९८६ से पूर्व किया जाने लगा इसमे पूर्वके साहित्य में उक शब्दा प्रयोग मेरे देखने नहीं चाया हटके साहित्य में इस में शब्दका प्रयोग अवश्य देखने में आता है। उदाहरण के लिये सवत् १२८४ के देहली म्यूजियम में स्थित शिला'डिल्लिकाया पुरी व सोमरस निमिता वाक्यमे उपलब्ध होता है | १४वीं शताब्दी के रामा मादित्य और गुवाद भी दिल्ली और '' जैसे शब्दों का प्रयोग देखनेको मिलता है । ०२] ऐश्वर्या भी संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दिया हुआ है:"असंख्य गांववाले हरियाना देशमें दिल्ली नामक एक नगर था, वह सुरद चाकार वाले उच्च गोपुरी, आनन्द दायक मन्दिरों और सुन्दर उपवनोंसे था उसमें घोड़े हाथों और सैनिक थे, वह अनेक नाटकों और प्रेक्षागृहांसे सम्पन्न था, वहाँ उत्तम तलवारों शत्रु कपालोंको भग्न करने वाला अनंगपाल नामका एक राजा था । उसने वीर हम्मीर के दलको बढ़ाया था और बन्दो जनोंको वस्त्र प्रदान किये थे ।” , इससे स्पष्ट है की दिली पर तोमरवंशक राजाओंाँका ही शासन रहा है । तृतीय पाके बाद सोमवंशके अन्य किन किन शासकों कब तक दिल्ली पर शासन किया है यह अन्वेषी है। दूसरे से यह जानने में आता है कि मदनपालका सं १२२३ में खर्गवास हुआ हैं, जो दिल्लीका शासक था । दिल्ली पर अधिकार होने पर भी शासक तोमर ही रहे जान पड़ते है। उसके बाद कुछ वर्ष चौहान राजाभोने भी राज्य किया है इस तरह दिल्लोका तोमरवंश-सम्बन्धी इतिहास अभी बहुत कुछ अन्धकारमें है । दिल्लीका सबसे प्राचीन नाम 'इन्द्रप्रस्थ' है। कहा जाता है कि दिल्लीका यह नाम उस समयका है जब पाडवांका राज्य दिल्ली में था। दिल्ली में पाण्डवोंके राज्य होनेका उल्लेख महाभारतमे पाया जाता है उस समय उसका नाम इन्द्रप्रस्थ' या 'इन्द्रपुरंरी' था। पर उसके वाद दिल्लीके अन्य नामोंका प्रचार कब और किसने किया यह अभी तक की ही है। प्राचीन उल्लेखोंसे पता चलता है कि दिल्ली 'हरियाना' नामके देश में भी और चात्र भी दिलोके ग्रामपासके प्रदेशका हरियाना नामसे उल्लेख किया जाता विक्रमी १वीं शताब्दी (सं० ११८) के विद्वान् हरिया देखगाम गामिययय. अप्रिय काम परचक्क विणु सिरिसंघदगु जो सुरवइणा परिगयिं । रि हिराबविलुप दिल्ली X उम * कहा जाता है कि राजा समुद्रगुप्तने जो लोहेकी एक विशाल गवई पो बादकी उसकी स्थिरता अपने राज्यकी स्थिरताकी बात किसी ब्राह्मण विद्वान्से ज्ञात कर राजा अनंगपालने उसकी परीक्षाके लिये उसे उखड़वाया और देखा तो मालूम हुआ कि नाटके किनार पर खून लगा हुआ है अतः राजाने उस विद्वान्की बात को सच मानकर उसको पुनः गढ़वाया, परन्तु अबकी बार वह कीली उतनी नीचे तक नहीं जा सकी जितनी कि पहले चलो गई थी । अतएव उम कीलीक ढाली रह जानेसे इसका नाम ढोली' या दिल्ली पड़ा है। इस लोकोक्तिमें क्या कुछ रहस्य है और वह सत्यकं कितने नजदीक है, यह अवश्य विचारणीय है फरिश्ता कहता है कि 'वहां की मिट्टी नरम है उसमें * देखो, ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित सत् श्र०११ और १३ में मसूरियो 'ढिलिय और ढोलिय' शब्दों का प्रयोग हुआ मिलता है। की पिन शाखाको 'गुरु के सपथका प्रयोग है। इन X X अविर डिडरिज कपातु पराहु पसिद्ध अगवालु से स्पष्ट है कि दिल्ली शब्दका प्रयोग भी जैन साहित्यमे free हम्मीर वो दिवं पविच चीर अधिक मिलता है, परन्तु वह [सं० [१८] से पूर्वका पार्श्व नहीं मिलता है। 1
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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