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________________ किरण २] निसीहिया या नशियां धातुका प्राज्ञाके मध्यम पुरुष एक बचनका बिगड़ा रूप मान क्षित स्थानमें प्रवेश करके सम्यग्दर्शनादिमें स्थिर होमेका कर लोगोंने वैसी कल्पना कर डाली है । अथवा दूसरा नाम निमर्माहिया' और पाप क्रियाओंसे मनके निवर्तनका कारण यह भी हो सकता है कि माधुको किसी नवीन नाम 'पासिया' है। प्राचारसारके कर्ता प्रा. वीरनन्दिने स्थानमें प्रवेश करने या वहांसे जानेके ममय निमीहिया और उक्त दोनों समाचारोंका इस प्रकार वर्णन किया है :प्रासिया करनेका विधान है। उपकी नकल करके लोगोंने जीवानां व्यन्तरादीनां बाधाय यन्त्रिपंधनम् । मन्दिर प्रवेशक समय बोले जाने वाले 'निसीहिया' पदका अस्माभिः स्थीयते युष्मद्दिष्टेयवेति निषिद्धिकां ।।११।। भी वही अर्थ लगा लिया है। प्रवासावसरे कन्दरावासा देनिषिद्धका । साधुनोंक १० प्रकारके - समाचारोंमें निसीहिया और तम्मानिर्गने कार्या स्यादाशीवैरहारिणी ॥१२॥ श्रासिया नामक दो समाचार हैं और उनका वर्णन मूलाचाग्में (आचारसार द्वि. १०) इस प्रकार किया गया है: अर्थात्-व्यन्तरादिक जीवोंको बाधा दूर करने के लिए कंदर-पुलिण-गुहादिसु पवेसकाले णिसिद्धियं कुजा। जो निषेधात्मक बचन कहे जाते हैं कि भो क्षेत्रपाल यक्ष, तेहिंतो रिणग्गमणे तहामिया होदि कायवा ॥१३४।। हम लोग तुम्हारी श्राज्ञासे यहां निवास करते हैं, तुम लोग -समा० अधि०) रुष्ट मत होना, इत्यादि व्यवहारको निषिद्धिका समाचार अर्थात्-गिरि-कंदरा, नदी श्रादिक पुलिन-मध्यवर्ती कहते है और वहां से जाते समय उन्हें वैर दूर करने वाला जलरहित स्थान और गुफा आदिमें प्रवेश करते हुए निषि- आशीर्वाद देना यह श्राशिका समाचार है। द्विका समाचारको करे और वहांस निकलते या जाने समयमा मालूम होता है कि लोगोंने साधुओंके लिए श्राशिका समाचारको करे । इन दोनों समाचारोंका अर्थ विधान किये गये समाचारोंका अनुसरण किया और टीकाकार श्रा. वसुनन्दिने इस प्रकार किया है:- "व्यन्तरादीनां बाधायै यनिषेधनम्" पदका अथ मन्दिरटोका-पविसंतय प्रविति च प्रवेशकाले सिही प्रवेशक समय लगा लिया कि यदि कोई व्यन्तरादिक दव निषधिका तत्रस्थानमभ्युपगम्य स्थानकरणं, सम्यग्दर्श- दर्शनादिक कर रहा हो तो वह दूर हो जाय और हमें बाधा नादिषु स्थिरभावो वा, णिग्गमण-निर्गमनकाले आमि- न दे। पर वास्तवमें 'निम्पही' पद बोलने का अर्थ 'निषीया देव-गृहस्थादीन परिपृच्छय यानं, पापक्रियादिभ्यो धिका अर्थात जिनदवका स्मरण कराने वाले स्थान या उनक मनोनिवर्ननं वा ।" प्रतिबिब लिए नमस्कार अभिमेन रहा है। अर्थात्-पाधु जिम स्थानमें प्रवेश करें, उस स्थानके उपमंहार स्वामीसे आज्ञा लेकर प्रवेश करें। यदि उस स्थानका स्वामी मूलमें 'निसीहिया पद मृत माधु-शरारक परिप्ठापनकोई मनुष्य है तो उससे पूछे और यदि मनुष्य नहीं है तो स्थानके लिए प्रयुक्त किया जाता था। पीछे उस स्थानपर उस स्थानके अधिष्ठाना देवताको सम्बोधन कर उससे पूछे जो स्वस्तिक या चबूतरा-छनरी आदि बनाये जाने लगे, इसीका नाम निसीहिक समाचार है। इसी प्रकार उम्म उनके लिए भी उसका प्रयोग किया जाने लगा। मध्य युगमें स्थानसे जाते समय भी उसके मालिक मनुष्य या क्षेत्रपालको साधु ओंके समाधिमरण करनेके लिए जो खाम स्थान बनाये पूछकर और उसका स्थान उसे संभलवा करके जावें। यह जात थे उन्हें भी नियिधि या निमीहिया कहा जाता था । उनका मासिकासमाचार है अथवा करके इन दोनों पदोंका कालान्तरमें वहां जो उम माधुकी चरण-पादुका या मूर्ति टीकाकारने एक दूसरा भी अर्थ किया है। वह यह कि विव प्रादि बनाई जाने लगी उसके लिए भी 'निपीहिया' शब्द साधुनोंका अपने गुरुत्रोंके साथ तथा अन्य माधुओंक प्रयुक्त होने लगा। आजकल उमीका अपभ्रंश या विकृत साथ जो पारस्परिक शिष्टाचारका व्यवहार होता है, उसे रूप निशि, निमिधि और नशियां प्रादिक रूपमे दृष्टिगोचर समाचार कहते हैं। होता है। नहार
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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