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अनेकान्त
[वर्ष १३ था ये फैले थे) उस समय ये स्वतन्त्र थे। जब इनमें परस्पर मुग्व-शान्तिसे जीवन यापन करते हुए राज्य कर रहे थे तब मतभेद और द्वन्द होने लगे तब इन्होंने यह उचित समझा चोख और पाण्ड्य राजा इनपर बार-बार आक्रमण करने कि किसी प्रधानका निर्वाचन कर लिया जाय, जो उनमें बगे किन्तु वे कुरुम्बोंको परास्त करने में श्रममर्थ रहे; क्योंकि ऐक्य स्थापित कर सके । अतः अपनेमें से एक बुद्धिमान नेता- कुरुम्ब गण वीर थे और रहाणमें प्राण विसर्जन करने की को उन्होंने कुरुम्ब-भूमिका राजा मनोनीत किया, जो कमण्ड पर्वाह नहीं करते थे। अपनी स्वतन्त्रताको वे अपने प्राणोंसे कुरुम्ब-प्रभु या पुलल राजा कहलाने लगा।
अधिक मूल्यवान समझते थे। कई बार तो ऐसा हुआ है कि कुरुम्ब-भूमि (जो टोएडमण्डलम्कं नामसे प्रसिद्ध है) आक्रमणकारी राजा पकड़े जाकर पुरलदुर्गक सामने पद्: प्रदेशमें वह क्षेत्र सम्मिलित है, जो नेल्लोरमें प्रवाहित नदी खलामोंसे काराबद्ध कर दिये गये। पेवार और दक्षिण भारकटकी नदी पेचारके मध्यकी भूमिका इन वीर कुरुम्बोंक इतिहासका अभी तक आवश्यक है। उस कुरुम्ब प्रभुने अपने राज्यको चौवीस कोट्टम् या अनुसंधान नहीं हुआ है और इनके सम्बन्धमें अनेक विवरण जिलों में विभाजित किया, जिनमें प्रत्येकके मध्य एक-एक दुर्ग तामिल संगम माहिन्य और विशेषकर शवमतके तामिल था और जो एक-एक राज्यपालक अधिकारमें था । इन ग्रंथों में उपलब्ध होते हैं। यद्यपि ये शैवग्रन्थ अपने मतकी कोहम् ( जिलों ) में 1 नादु या नाल्लुके ('Taluks) अतिशयोकियोंस श्रोत-प्रोत हैं तो भी इनमें ऐसी अनेक बनाए गए। एक-एक जिलेमें एकसं पांच तक नाडु थे। बात मिलती हैं जिनसे इतिहासको किसी अंश तक पूर्ति नाडुओंके भी नागरिक विभाग किये गए, जिनकी कुल संख्या होती हैं। अब हम पाठकोंको उम साहित्यक उपलब्ध एक हजार नौ सौ था। कुरुम्ब प्रभुने 'पुरलूर' (पुलल या विवरणोंस प्राप्त संक्षिप्त तथ्यक अनुपार कुरुम्बोंकी आगेकी पुन्हलरदुर्ग) को अपनी राजधानी बनाई । मदरामपटम् वात बताते हैं :ग्राम (माधुनिक मद्राम) और अनेक अन्य प्राम इसी कोट्टम् । चाल और पात्य राजाओंक बार-बारके आक्रमण अमफन या जिलेमें थे।
होने रहनेस द्वेषाग्नि और ईर्षा उत्तरोत्तर बढ़ती गई और उपरोक्त कोहम् या जिलोंमेंस कुछके नाम ये हैं :- शवमनक धर्मान्ध प्राचार्योन जैन कुरुम्बाके विरुद्ध पुरलूर (राजकीय दुर्ग,) कालदर, प्रायूर, पुलियूर, चम्बूर, द्वेषाग्निमें ग्राहृति प्रदान करना प्रारम्भ कर दिया। उनके उतरीकाहु, कलियम् , वेनगुन, हकथूकोर्ट, पडुबर, पट्टि- कथनसे अन्तमें 'प्राडोन्दई' नामक चोलनृपति, जो कुलोपुलम् , सालकुपम् , सालपाकम्, मेयूर, कालूर, अलपार, तुग चोलराजाका औरसपुत्र था, उसने कुरुम्बराजधानी मरकानम् इत्यादि।
_ 'पुरलूर' पर एक बहुत बड़ी सेना लेकर आक्रमण किया । उस समय देश-विदेशक वाणज्य पर विशेष ध्यान दोनों ओरसे घमासान युद्ध हुआ और अनेक वीर आहतदिया गया और विशेषकर पोतायन (जहाजों) द्वारा व्यवसाय निहत हुए, किन्तु प्राडोम्बई राजाकी तीन चाथाई सेनाके की अभिवृद्धि बहुत की गई, जिससे कुरुम्ब अति ममृद्धि- खेत पाजानस उसके पाँव उखड़ गए और उसने अवशिष्ट शाली हो गए।
सेनाक साथ भागकर निकटकं स्थानमें पाश्रय लिया (यह पुरलूर राजनगरीमें एक दि. जैन मुनिके पधारने और स्थान अब भी 'चोलनपे' के नामसं पुकारा जाता है)। उनके द्वारा धर्मप्रचार करनेकी स्मृतिमें एक जैन वसति शोकाभिभूत होकर उसने दूसरे दिन प्रात:काल तंजोर लौट (मंदिर) उन कुरुम्बप्रभुने वहाँ बनवाई थी । सन् १८६० जानेका विचार किया। किन्तु रात्रिके एक स्वप्नमें शिवजीने के लगभग टेलर साहबन (ग्रन्थ ३) पुरलूरमें जाकर प्रगट होकर उन्हें आश्वासन दिया कि कुरुम्बापर तुम्हारी इस प्राचीन वसति और कई मन्दिरोंक भग्नावशेष देखे थे। पूर्ण विजय होगी। इस स्वप्नस प्रोस्माहित हो वह पुनः उन्होंने लिखा है कि समय-समय पर अब भी जनमूनियाँ रणक्षेत्रपर लौटा और कुरुम्बाको परास्त कर कुरुम्ब नृपतिको धानके खेतोंसे उपलब्ध होती रहती हैं किन्तु जैनोंके विपक्षी तलवारके घाट उतार दिया और पुरलदुर्गके बहुमूल्य धातुके हिन्न या तो उन्हें नष्ट कर देते हैं या उन्हें जमीन में पुनः कपाटोको उखाड़कर तंजोर भेजकर वहांक शैवमन्दिरके गाड़ देते हैं।
गर्भगृहमें उन्हें लगवा दिया गया। इसके बाद क्रमसे अन्य जब कुरुम्ब लोग उत्तरोत्तर समृद्धि प्राप्त करते तथा अवशिष्ट तेईस दुर्गोको भी जीतकर और उनके शासकोंका