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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालाके नवीन तीन ग्रन्थ-रत्न । आचार्यसिद्धसेनदिवाकरकृत सम्राट विक्रमादित्यकी सभाके ९ रत्नों से क्षपणक नामक रस्न १ न्यायावतार-थीसिद्धर्षिगणिकी संस्कृतटीकाका हिन्दी भाषानुवाद । अनुवादकत्ता-पं.विजयमूर्ति शास्त्राचार्य (जैनदर्शन) एम्. ए. (दर्शन, संस्कृत)। यह न्यायका सुप्रसिद्ध ग्रंथ है । इसमें ३२ कारिकाओं (श्लोको) मे न्याय-शास्त्र के मुख्य मुख्य सिद्धान्तोंका सरल भाषामें विस्तृत विवेचन है। इसमे न्यायावतारका अर्थ, प्रमाणका लक्षण, प्रमाणके लक्षण कहनेका प्रयोजन, प्रमाणके प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष भेद, अनुमानका लक्षण, प्रत्यक्षका अभ्रान्तत्व, सकल ज्ञानोंके भ्रान्तत्वकी असिद्धि, शाब्द-प्रमाणका, लक्षण-कथन, परार्थानुमान और परार्थप्रत्यक्षका सामान्य लक्षण, प्रत्यक्षका परार्थत्यरूपसे निरूपण, परार्थप्रत्यक्षका स्वरूप, परार्थानुमानका लक्षण, पक्षका लक्षण, पक्षका प्रयोग स्वीकार न करनेपर दोष, असिद्ध, विरुद्ध और अनेकान्तिक हेत्वाभासोका लक्षण, साधर्म्यदृष्टान्ताभासांके लक्षण और उसके भेदोका प्रनिपादन, वैधयदृष्टान्ताभासका लक्षण, दूषण और दूषणाभासका लक्षण, पारमार्थिक प्रत्यक्षका निरूपण, प्रमाणके फलका प्रतिपादन, प्रमाण और नयके विषयका निरूपण, स्याद्वादश्रुतनिदेश, प्रमाणका लक्षण, ग्रन्थोपसहार आदि सैकड़ो विषयोंका वर्णन है। अन्नमें श्ल.कोंकी वर्णानुक्रमणिका, टीकामे उद्धृत श्लोकों और गाथाओकी वर्णानुक्रमणिका, न्यायावतार सूत्रोंकी शब्द-सूची है। पृष्ठसख्या १४४, सुन्दर मजबूत जिल्द बॅधी है। मूल्य ५) पोष्टेज ॥) २ प्रशमरतिप्रकरण-मोक्षशास्त्र-तत्त्वार्थसत्रके कर्ता श्रीउमास्वामि (ति)कृत | श्रीहरिभद्रसूरिकृत संस्कृनटीका और साहित्याचार्य पं. राजकुमारजी शास्त्री एम० ए०, प्रोफेसर जैन कॉलेज बदौत (मेरठ) कृत सरल हिन्दी-टीका । यह बहुत प्राचीन ग्रंथ है। श्रीउमास्वामी आचार्य ने जैम मोक्षशास्त्रके सूत्रोंमे मंक्षेपमें सारे जैन तत्वीका वर्णन किया है, वैसे ही ३१३ कारिकाओमे वैराग्य-अध्यात्मका मुन्दर सरल स्पष्ट विवेचन इस प्रथमें किया है, इसमें १ पीठबन्ध, २ कषाय, ३ रागादि, ४ आठ कर्म, ५ पंचन्द्रिय-विषय, ६ आठ मदस्थान, ७ आचार, ८ भावना, ९ दशविधि धनं, १० धर्म-कथा, ११ जोवादि नवतत्व, १२ उपयोग, १३ भाव, १४ घद्रव्य, १५ चारित्र, १६ शीलके अंग, १७ ध्यान, १८ क्षकगी, १९ समुद्धात, २० योग निरोध, २१ मोक्षगमन-विधान, २२ अन्तफल एमे २२ अधिकारोमें सैकड़ों विषयों का हृदयग्रही वणन है। आचार्षने जैनागमका सार इसमें भर दिया है। ग्रथके अन्तमें श्रावक के व्रतो का वर्णन है। मबस अन्तम अवचूरि अर्थात् मूल ग्रन्यपर टिप्पणी, कारिकाओंकी अनुक्रमणिका, सस्कृतटीकाम उद्धृत पद्योंकी वर्णानुक्रमणिका है। पृष्ठसख्या २४० मूल्य सिर्फ ६) पोष्टेज |) ३ इष्टोपदेश-आचार्यपूज्यपाद-देवनन्दिकृत मूलश्लोक, ५. प्रवर आशाधर कृत संस्कृतटीका, जैनदर्शनाचार्य प. धन्यकुमारजी शास्त्री एम. ए. साहित्यग्लन मरल हिन्दी अनुवाद, स्व० बैरिष्टर चम्पतरायजी विद्यावारिधिकृत अंग्रेजीटीका, स्व. व्र. शीतलप्रसादजीकृत हिन्दी दोहानुवाद, अज्ञातकविकृत मराठी पद्यानुवाद, रामजीभाई देसाईकृत गुजराती पद्यानुवाद, जयभगवानजी बी. ए. एल एल. बी. एडवोकेटकृत विस्तृत अंग्रेजी पद्यानबादरे अलंकृत । इस ग्रन्थको जैनोपनिषद ही कहना चाहिए । ससारसे दुःखित प्रणियोके लिए तो इमका उपदेश परमोपव है । इस ग्रन्थमे जिन बातोंका वर्णन है, उनका प्रचार और प्रसार होनेमे जगती-तलका बडा कल्याण होगा। छः परिशिष्टों सहित । पृष्टसख्या ९६. इतने सुन्दर ग्रन्थका मूल्य सिर्फ 1) पो०/-) लाभकी बात--२०) के ग्रन्थ मेंगानेपर ३) का प्रय सभाध्यतत्त्वाधिगमसूत्र-मोक्षशास्त्र-तत्त्वार्थमूत्र भेट मिलेगा, पर ग्रन्थोंका मूल्य पोष्टेज रजिष्ट्री खर्च निम्न पतेसे पहले आ जाना चाहिए । सूचना-बी० पी० से अन्य नहीं भेजे जायेंगे | जिन भाइयोंको अथ चाहिये, वे ग्रन्थों का मूल्य, पोष्टेज और रजिस्ट्री के छह आने मनिआर्डरसे पेशगी भेजनेकी कृपा करे। एसा करनेसे बडे हुए भारी पोष्ट जखर्चमे आट दस आनेको बचत होगी। रेलपासलसे मैंगानेवाले भाई चौथाई दाम पेशगी भेजे । इकट्ठी मँगानेवाले, प्रभावनामें वितरण करनेवाले भाई पत्र-व्यवहार कर, हम उन्हें यथोचित् कमीशन देगे । दाम भेजनेका वर्तमानका पता--
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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