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________________ श्रीरायचन्द्रजैनशास्त्रमाला । परिचय और निवेदन--स्वर्गवासी तत्वज्ञानी गता- शा. मा० का नहीं है। जो द्रव्य आता है, वह ग्रन्थोद्धारवधानी कविवर, महात्मा गान्धीजीके गुरुतुल्य श्रीराय- कार्य में लगाया जाता है। हमारा यह उद्देश्य तभी सफल चन्द्रजीके स्मारकमें यह प्रथमाला उनके स्थापित किये हो मकना है, जब पाठक अधिकसे अधिक द्रव्य भेजे, हुए, परमश्रुत प्रभावकमंडलके तत्वावधानमें ५५ वर्षसे अथवा शास्त्रमालाके ग्रंथ खरीदकर जैनमाहित्योद्धारके निकल रहो है, इसमे श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य, श्रीउमा- काममें हमारी मदद करें, क्योकि तत्वज्ञान के प्रसारमे म्यामो, श्रीसिद्धसेनदिवाकर, श्रीपूज्यपादस्वामी, श्रीअमृत- बढ़कर दूसरा कोई प्रभावनाका पुण्य-कार्य नहीं है। चन्द्रसूरि, श्रीशुभचन्द्राचार्य,श्र नेमिचन्द्र सिद्वान्तनक्रवती, आगामी प्रकाशन-श्रीकुन्दकुन्दस्वामीके सभी प्रय, थीयोगीन्दुदेव श्रीविमलदाम, श्रीहेमचन्द्रमूरि, थोमल्लिषेण स्वाभिकार्तिकेयानुप्रेक्षा मूलगाथायें भ. शुभचन्द्रकृत सूरि आदि आचायाँके अतिशय उपयोगी ग्रंथ सुसम्पादित संस्कृतटीका और पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीकृत नई हिन्दी कराके मूल, संस्कृ टीकाएँ और मरल हिन्दीटीका सहित टीका, समाधिशतक और आममीमांसा आदि कई निकाले गए हैं। सर्वसाधारणमें सुलभ मूल्यमें ग्रन्थोंका मुसम्पादन हो रहा है और कई छप रहे हैं, जो नत्त्वज्ञानपूर्ण ग्रन्थोंका प्रचार करना इसका मुख्य समयानुमार निकलेंगे। शास्त्रमाला के सभी ग्रंथ सुन्दर उद्देश्य है । ग्रंथ छपाकर कमाई करने का उद्देश्य इस मजवून जिन्दोंसे मडित हैं, बहुत शुद्ध और सस्ते हैं। प्रकाशित ग्रन्थोंकी सूची १ पुरुषार्थसिद्धयुपाय-अमृतच-द्रसूनिकृत मूल इलोक कायें, श्रीमल्लिपणसूरिकृत संस्कृतटीका, डॉ. पं. और पं० नाथूगम जीप्रीतहिन्दीटीका । इस ग्रन्यमें जगदीशचन्द्रजी शास्त्री एम० ए०, पी० एच०डी. श्रावक-धर्मका विस्तृत वर्णन है। चाथी आवृत्ति कृत हिन्दीटीका सहित, न्यायका महत्वपूर्ण ग्रन्थ । सशोधित होके छपा है। अबकी बार ग्रयकाका मू० ६) पो०१) परिचय, विषय-सूची और २ अनुक्रमणिकायें लगा १४ सभाप्यतत्वाधिगमसूत्र-मोक्षशास्त्रदी हैं । २) पो. /-) श्र उमास्त्रातिकृत मूलसूत्र संस्कृतटीका, प० म्यूब२पंचास्तिकाय-अप्राप्य है । छ पेगा चन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीकृत हिन्दी टीका। इसमें ३ सानार्णव-श्रीशुभचन्द्राचार्यकृत मून्ट और स्व. ५० तमाम जैन तत्वों का वर्णन है, सागरको गागरमें पन्नालालजी बाकलीवाल कृत हिन्दीटीका, योगका आचार्यश्रीने भर दिया है। पृष्ठ ५०० मू०३) पो०१) महत्वपूर्ण ग्रंथ । मृ. ६) पो. १) १५ पुष्पमाला मोक्षमाला और भावनाबोधसप्तभंगीतरंगिणी--अप्राग्य । श्राद्राजचन्द्रकृत, अप्राप्य है। ५ हद्दव्यसंग्रह-अप्राप्य १६ उपदेशछाया और आत्मसिद्धि-अप्राप्य है। ६ गोम्मटसार कर्मकांड-श्रीनमिचन्द्र सिद्वान्तचक्रवर्ती १७ योगसार-अपाय है। कृत मूल गाथाय और० ब. प. मनोहरलालजीकृत १८ योगीन्द्र-हिज परमात्मप्रकाश-अंग्रेजी अप्राप्य । हिन्दीटीका । सिद्धान्त-ग्रन्थ । मू. ३)पा. 1) १९ श्रीमदराजचन्द्र-श्रामदाजचन्द्रजीके पत्रों और ७ गोम्मटसार जीवकांड-अप्राप्य है, जल्दी छपेगा। रचनाओका अपूर्व सग्रह, अध्यात्मका अपूर्व और ८ लाब्धसार-हिन्दीटीका महित, अप्राप्य । विशाल ग्रंथ है। म. गाधीजीकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना ९ प्रवचनसार-अप्राप्य है, पुनः छपगा। है। पृष्टमख्या ९.० स्वदेशी कागजपर कलापूर्ण १० परमात्मप्रकाश और योगसार-अप्राप्य है। मुन्दर छपाई हुई है । मूल्य मिर्फ १०) पो०२) ११ समयसार-- श्राकुन्दकुन्दस्वामोकृत, अप्राप्य है। २० न्यायावतार-श्रीमिद्धमनदिवाकरकृत। ५) पो. ॥) पुनः सपादन मशोधन हो रहा है, जल्दी ठपेगा। १ प्रशमरतिप्रकरण-श्राउमाम्बातिकृत ६) पो.11%) १२ द्रव्यानुयोगतकेणा-अप्राप्य है। २२ टोपदेश-जेनोपनिषद-आचार्य पूज्यपादरवामी१३ स्याद्वादमंजरा-श्रीहेमचन्द्राचार्यकृत मूल कारि- कृ11 मू० २१) पो01-) अंग्रजीटीका ।।) पो.-) सूचना-शास्त्रमालाके सभी ग्रंथ दिगम्बर जैन पुस्तकालय, कापड़िया भवन, गान्धी चौक मृग्नसे भी मिलेंगे। मैनेजर-परमश्रुतप्रभावक मंडल, (रायचन्द्र जैनशास्त्रमाला) ठि० चौकसी चेम्बर, खाराकुवा, जौहरी बाजार, बम्बई नं० २.
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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