________________
पूज्य वर्णीजीके प्रति श्रद्धांजलि
(विनम्र जैन) "भारतके आध्यात्मिक योगिन ! स्वीकारी जगतीका प्रणाम ।।"
हे पूज्यवर्य, हे गुण निधान, हो गई धन्य यह वसुन्धरा । नुमने अपने मज्ज्ञान-मूर्यने, अज्ञान निमिरको, अहो. हटा॥ शिक्षासे ही मानव बढतं. शिक्षा ही जीवन-दायक है। तुमने सदैव यह सिम्बलाया, शिक्षा विवेक उन्नायक है। बम एक अमिट यह चाह पाक तुम बन सदासे हो अकाम ! भारत याध्यामिक योगिन. याकारी जगतीका प्रणाम ॥१॥
तू परम मधुर भाषण कर्ता, अंतर बाहर द्वयसे निर्मल । तेरी वाणी शुचि गंगाजल, गुजिन सुरभित जिससे नभ-थत्व ॥ है क्षमा-दविके चिर मुहाग, तुमको वरकर वह हुई अमर । तेरे पवित्र हृदयाम्बरमें, बहता रहता करुणा सागर ।। अधरोंपर शिशु मुस्कानधार, कर्तव्य निरत तुम अनविराम भारतके आध्यात्मिक योगन, स्वीकारो जगीतका प्रणाम ॥श
'मेरे जिनवरका नाम गम, हे संत ! तुम्हें मादर प्रणाम ।' युगकवि की इस श्रद्धांजलिस, श्रद्धाका सार्थक हुअा नाम ।। निदा मनुनि दोनोंमे ही ना, अपनको चिर निलिप रखा । बस वही कर्मरि क्षय करनं तुमने तपको वर लिया मग्या ।। निज तपश्चरणसे हे मुनीश, पाागे वह कंवल्यधाम । भारत प्राध्यामिक योगिन, म्बीकागे जगतीका प्रणाम ॥३॥
हो अगम ज्ञान जाना तुम, विद्या-वारधि ! युग नमस्कार । वह पुण्य : दिवम जब गया मध्य.तुमम ऋपि भावे स्वयं मिले। वह ग्रमचयं दीपित मुग्व-रवि, कर रहा अहियाका प्रसार ॥ व भूमिदानके अन्येपक. जिमसं लिप्या उर-तार हिले ॥ मानवका हित साधन करने, पावन पगसे चिरकाल चले। तुम श्राध्यात्मिक दु.खक त्राता, कर रहे मलिन अंतर पवित्र । हे द्रव्यदानक उन्नं रक, लग्वि तंज हृदय-पापाण गले ॥ वे भौनिक क्लेशोंक नाशक, कर रहे शुद्ध माना-चरित्र । मुम्ब मौन मात्र हो हे ऋषिवर ! रचनामानव विधि-लिपि ललाम तुम दोनों दो युग पुरुपमान्य, ज्यानित करने भाग्न मुनाम। भारतक आध्यात्मिक यागिन, स्वीकारी जगतीका प्रणाम ॥॥ भारतके प्राध्यामिक योगिन,म्वीकारो जगीका प्रणाम ॥२॥
एकामी जन्म दिवमपर कवि, भावोंका अर्घ चढाता है। छंदोंकी छोटीमी माला, पहिनाने हाथ बढ़ाना है । तुम मौन शांत सम्मित बैटे, क्या श्रद्धा-सुमन न थे मुम्बकर ? यद्यपि वाणी मुखरित न हुई. मम्बांधा दिव्याभा ने पर ॥६॥
आचरण करो मन्तोंके गुण, गुण-गानमात्र है मार्ग वाम ।
भारतके प्राध्यामिक योगिन्, स्वीकारो जगतीका प्रणाम ॥६॥ १ राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरणजी गुप्त
३४ अगस्त सन १३