SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थानमें दासी प्रथा राजस्थान स्वतन्त्र भारतका एक प्रान्न है। उसमें दामी हुई जान पड़ती है। जब अंग्रेजी शासनमें 'सती' जैसी प्रथाका होना राजस्थानके लिये कलंक की वस्तु है । जब भारत प्रथाका अस्तित्व नहीं रहा तब राजस्थानकी यह दासी प्रथा अपनी सदियोंकी गुलामीसे उन्मुक्त हो चुका है तब उसमें कैस पनपती रही, यह कुछ ममयझमें नहीं पाता। राजस्थानदासी प्रथा जैसी जघन्य प्रथाका अस्तित्व उसके लिये अभि के रजवाड़ोंमें राजा, महाराजा, सामन्त और राज्य मन्त्री शाप रूप है। पादिके लड़के लड़कियोंकी शादीमें दहेजकी अन्य वस्तुओं के __यद्यपि प्राचीन भारतमें दाम्मी-दास प्रथाका श्राम ग्विाज साथ सीमित दासियोंके देनेका रिवाज है जिनकी संख्या था। जब किसी लड़के या लड़कीकी शादी होती थी तब कभी कभी सैकड़ों तक पहुँच जाती है जिन्हें आजन्म लड़की दहेजके रूपमें हाथी घोड़ा, रथ श्रादि अन्य वस्तुओं के साथ की ससुराल में रहना पड़ता है । और एक गुलामकी तरह कुछ दासी-दास भी दिये जाते थे। इनके सिवाय, क्रीतदास, मालिक मालकिनकी सेवा करते हुए उनकी झिड़कियाँ गाली ग्रहदाम (दासीपुत्र) पैत्रिकदास दण्डदाम, भुदास आदि गलौज तथा मारपीटकी भीषण वेदना उठाना पड़ती है और सात प्रकारके दास होते थे। चाणिक्वक अर्थशास्त्र में इस अमानवीय अत्याचारोंको चुपचाप महना पड़ता है। इस प्रथाका समुल्लेख पाया जाता है । जैन-ग्रन्थ गत परिग्रह परि- तरह उन अपनाका तमाम जीवन 'रावलें (निवास) की माणयतमें दासी-दास रखनेक परिमाण करनेका उल्लेख चहार दीवारीम सिमकता हुआ व्यतीत होता है। जिसमें किया जाता है । गुलाम रखनकी यह प्रथा जन-समाजमें से उनकी भावनाए' और इच्छाएं उत्पन्न होती और निराशाकी तो सर्वथा चली गई है, भारतमें भी प्रायः नहीं जान पड़ती, अमंत गादमें विलीन हो जाती हैं । मालिक मालकिनकी सेवा किन्तु राजस्थानमें दामी प्रथाका बने रहना शोभा नहीं देना। उनका जीवन है। उनके अमानवीय अत्याचार एवं अनाचारोंमे वहां मानवता विहीन अबला नारीका सिसकना एक अभि- पीड़ित राजस्थानकी लाखों अबलाएँ अपना जीवन राजशाप है । आजके 'हिन्दुम्नान' नामक दैनिक पत्रमें इस प्रथा स्थानक रनिवामोंमें पशुसे भी बदतर स्थितिमें रहकर श्रांमू का अवलोकन कर हृदयमं एक टीस उत्पन्न हुई कि भारत बहाती हुई व्यतीत करती हैं । हमें खेद हैं कि म्वनन्त्र जैसे स्वतन्त्र देशमं मी निद्य प्रथाका होना चाम्नबमें भारतकी सरकारका ध्यान इस प्रथाके बन्द करनेकी ओर उसके लिये भारी कलंक है। नहीं गया । श्राशा हे भारत सरकार शीघ्रही राजस्थानके इस राजस्थानमें यह प्रथा सामन्तशाहीके समयसे प्रचलित कलंकको धोनेका यन्न करेगी। -परमानन्द जैन साहित्य-परिचय और समालोचन इप्टोपदेश (टीकात्रय और पद्यानुवादस युक्र) ग्रंथ-कर्ता तरह दिया गया है। यह संम्करण अंग्रेजी जानने वालोंके देवनन्दी, प्रकाशक रायचन्द्र जैन शास्त्रमाला, वम्बई । पत्र लिये विशेष उपयोगी है। मंच्या ८८ मूल्य ॥) रुण्या। प्राची-एक माप्ताहिक पत्र है जिसके दो अङ्क मेरे सामने प्रस्तुत ग्रन्थ प्राचार्य देवनन्दी (पूज्यपाद ) की सुन्दर हैं। पत्रका वार्षिक मूल्य १०) रुपया है और एक प्रतिका मृन्य श्राध्यात्मिक कृति है। इसमें पं० श्राशाधरजी की संस्कृति चार पाना । यह हिन्दीका अच्छा पत्र है जिसमें सुन्दर लेखटीका भी साथमें दी हुई है, और पं० धन्यकुमारजी का हिंदी सामग्रीका चयन रहता है । पत्रका प्रकाशन 'प्राची अनुवाद दिया हुआ है। बरिस्टर चम्पतरायजीकी अंग्रेजी प्रकाशन' ११ स्क्वायर कलकत्ता' से होता है । यदि सहयोगी टीका, ब्रह्मचारी शीतलप्रमादजीका दोहानुवाद, रावजी भाई इसी प्रकारकी उपयोगी पाठ्य सामग्री देता रहे तो पत्रका देशाईका गुजराती पद्यानुवाद और बाबू जयभगवानजी एडवो- भविष्य उज्ज्वल और क्षेत्र विस्तृत हो जायगा, श्राशा है केटका अंग्रेजी पद्यानुवाद दिया हुश्रा है। जिससे पुस्तक और प्राचीके संपादक महानुभाव अत्युपयोगी लेख सामग्रीसे भी उपयोगी हो गई है । इप्टोपदेशको संस्कृतटीकाको बिना किसी पत्रको बराबर विभूषित करते रहेंगे। मंशोधनके छापा गया । उद्धत पद्योंको रनिंग रूपमें पहलेकी -परमानन्द जैन
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy