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________________ ८६7 भनेकान्त [वर्ष १३ २-चतुर्थ महाराजा शांति वर्मा, जो पृथ्वी रामके समान ही पुण्यात्मा महापुरुषों के उत्पन्न करनेका भी सौभाग्य प्राप्त जैन धर्मके उपासक थे इनकी रानी चांदकन्वे भी जिना हुआ है, जिन्होंने संसारके दुःखी जीवोंके दुःखोंको दूर करनेधर्मकी परम उपासिका थी। शांति वर्माने सन् ८ के लिये भोग-विलास और राज्यादि विभूतियोंको छोड़कर (वि० सं० १०३८) में सोन्दत्तिमें जिममन्दिरका आत्म-साधना द्वारा स्वतन्त्रता प्राप्त करनेका प्रयत्न किया निर्माण कराया था और १५० महत्तर भूमि राजाने है। अनेक स्त्रियोंने प्राधिकाओंके व्रतोंको धारणकर प्रारम और उतनी ही भूमि रानी चांदकव्वेने बाहुबली देवको माधनाकी उस कठोर तपश्चर्याको अपनाया है और आत्माप्रदान की थी, जो व्याकरणाचार्य थे। नुष्ठान करते हुए मन और इन्द्रियोंको वशमें करनेका भी -देखो, सोन्दत्ति शिला ले. नं. १६०। प्रयत्न किया है। साथ ही, धागत उपसर्ग परीषहोंको भी ३-विप्यु वर्धनकी भार्या शान्तलदेवीने सन् १९२३ (वि० समभावसे महन किया है और अन्त समयमें समाधि पूर्वक पं०१२३० में) गन्ध वारण वस्ति बनवाई। यह मार- शरीर छोड़ा। उन धर्म-सेविका नारियोंके कुछ उदाहरण इस सिंह माचिकव्वे की पुत्री थी और जैन-धर्ममें सुद और प्रकार हैं:गान नृत्य विद्यामें अत्यन्त चतुर थी। (१) भगवान महावीरके शामनमें जीवंधर स्वामीकी पाठों -सोदेके राजा की रानीने, कारणवश पतिके धर्म-परिवर्तन __ पत्नियोंने जो विभिन्न देशोंके राजाओंकी राजपुत्रियाँ थीं, कर लेनेके बाद भी पतिकी असाध्य बीमारीके दर होने पतिक दीक्षा लेने पर अार्थिकाके व्रत धारण किये थे। तथा अपने सौभाग्यके अक्षुण्ण बने रहने पर अपने (२) वीरशासनमें जम्बू स्वामी अपनी तात्कालिक परिणाई नासिका भूषण (नथ) को, जो मोतियोंका बना हुमा हुई पाठों स्त्रियोंके हृदयों पर विजय प्राप्तकर प्रातःकाल था, बेचकर एक जैन-मन्दिर बनवाया था और सामने दीक्षित हो गए। तब उनकी उन स्त्रियोंने भी जनएक तालाब भी जो इस समय 'मुत्तिन फेरे के नामसे दोता धारण की। प्रसिद्ध है। ५-प्राइव मल्ल राजाके सेनापति मल्लयकी पुत्री प्रतिमन्वेने, (९) चंदना सतीने, जो वैशाली गणतंत्रके राजा चेटककी पुत्री जो जैनधर्मको विशेष श्रद्धालु और दानशीला थी, उसने थी, आजीवन ब्रह्मचारिणी रहकर, भगवान् महावीरसे चांदी सोनेको हजारों जिन प्रतिमाएं स्थापित की और दीक्षित होकर प्रायिकाके व्रतोंका अनुष्ठान करती हुई लाखों रुपयेका दान किया था। महावीरके तीर्थमें छत्तीस हजार प्रायिकाओंमें गणिनीका -"होयसल नरेश बल्लाल, बल्लाल द्वितीयके मन्त्री पढ़ प्राप्त किया था। चन्द्रमौली वेदानुयायो ब्राह्मण थे। परन्तु उनकी पत्नी (४) मयूर ग्राम मंघकी आर्यिका दमितामतीने कटवप्र गिरि 'प्राचियक्क' जिनधर्म परायणा थी और वीरोचित पर समाधिमरण किया। शान-धर्ममें निष्ठ थी, उसने बेलगोलमें पार्श्वनाथ वस्ति- (१) नविलूरकी अनंतमती-गतिने द्वादश तपोंका यथाविधि का निर्माण कराया था। अनुष्ठान करते हुए अन्तमें कटवा पर्वत पर स्वर्गलोक-देखो, श्रवण बेखगोल लेख नं. ४६४ का सुख प्राप्त किया। जबलपुरमें 'पिसनहारीकी मडिया' के नामसे एक जैन (६) दण्ड नायक गणराजकी धर्म-पत्नी लक्ष्मी मतिने, जो मन्दिर प्रसिद्ध है जिसे एक महिलाने पाटा पीस-पीसकर बड़े सती, साध्वी, धर्मनिष्ठा और दानशीला थी, और भारी परिश्रमसे पैसा जोड़ कर भत्रिवश अपने द्रव्यको सत्कार्यमें लगाया था। आज भी अनेक मंदिर और मूर्तियाँ मूलसंघ देशीगण पुस्तकगच्छके शुभचन्द्राचार्यकी शिप्या तथा धर्मशालाएँ अनेक नारियोंके द्वारा बनवाई गई हैं, थी, उसने शक सं०१०४४ (वि.सं०११७६) में जिनका उल्लेख लेख वृद्धिके भयसे नहीं किया है। सन्यास विधिसे देहोत्सर्ग किया था। इस प्रकारके सैकड़ों उदाहरण शिलालेखों और पुराणनारियोंके धर्माचरण और उनके सन्यास लेनक ग्रंथों में उपलब्ध होते है. जिन सबका संकलन करनेसे एक कुछ उन्लेख पुस्तकका सहज ही निर्माण हो सकता है। अस्तु, यहां लेख नारीको तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलभद्र और अन्य अनेक वृद्धिके भयस उन सभीको छोड़ा जाता है।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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