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________________ श्रमण संस्कृतिमें नारी बोकोपवादका वह कलङ्क जो जबर्दस्ती उसके शिर मदा कर्तव्य परावदा होती थी। वह आजकलकी नारीके समान गया था वह सदाके लिये दूर हो गया और सीताने फिर प्रबल या कायर नहीं होती थी, किन्तु निर्भय, वीरांगना संसारके इन भोग विलासोंको हेय समझकर, रामचन्द्रकी और अपने सतीत्वक संरक्षण में सावधान होती थी जिनके अभ्यर्थना और पुत्रादिकके मोहजालको उसी समय छोड़कर अनेक उद्धरण ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं। यह सभी जानते हैं पृथ्वीमती पार्यिकाके निकट अविकाके व्रत ले लिये और कि नारीमें सेवा करनेकी अपूर्व क्षमता होती है। पतिव्रता अपने केशोंको भी दुखदायी समझकर उनका भी लोच कर केवल पति के सुख-दुख में ही शामिल नहीं रहती है, किन्तु डाला। कठिन तपश्चर्या द्वारा उस स्त्री पर्यायका भी वह विवेक और धैर्यसे कार्य करना भी जानती है। पुराणमें विनाशकर स्वर्गलोकमें प्रतीन्द्र पद पाप्त किया। ऐसे कितने ही उदाहरण मिलते हैं जिनमें स्त्रीने पतिको सेवा ___ भारतीय श्रमण-परम्परामें केवल भगवान महावीरने करते हुए, उसके कार्यमें और राज्यके संरक्षणमें तथा युद्ध में नारीको सबसे पहले अपने संघमें दीक्षितकर प्रात्म-साधनाका सहायता की है अवसर पाने पर शत्रुके दांत खट्टे किये हैं। अधिकार दिया हो, यही नहीं, किन्तु जैनधर्मके अन्य २३ पतिके वियोगमें अपने राज्यकार्यकी संभाल यस्नके साथ की है। तीर्थकरोंने भी अपने-अपने संघमें ऐसाही किया है। जिससे इससे नारीकी कर्तव्यनिष्ठाका भी बोध होता है। नारी जहाँ स्पष्ट ज्ञान होता है कि श्रमणसंस्कृतिने पुरुषोंकी भांतिही कर्तव्य निष्ठ रही है। वहां वह धर्मनिष्ठा भी रही है। धर्मस्त्रियोंके धार्मिक अधिकारोंकी रक्षा की-उनके आदर्शको कर्म और बनानुष्ठानमें नारी कभी पीछे नहीं रही है। अनेक भी कायम रहने दिया, इतना ही नहीं किन्तु उनके नैतिक शिलालेखों में भारतीय जैन-नारियों द्वारा बनवाये जाने वाले जीवनके स्तरको भी ऊँचा उठानेका प्रयत्न किया है। भारतमें अनेक विशाल गगन चुम्बी मंदिरोंके निर्माण और उनकी गान्धी-युगमें गान्धीजीके प्रयत्नसे नारीके अधिकारोंकी रक्षा पूजादिके लिये स्वयं दान दिये और दिलवावाए थे। अनेक हुई है उन्होंने जो मार्ग दिखाया उससे नारी-जीवनमें उल्लाह गुफाओंका भी निर्माण कराया था, जिनके कुछ उदाहरण की एक बहर आगई है, और नारियाँ अपने उत्तरदायित्वको नीचे दिये जाते हैं :भी समझने लगी हैं। फिर भी वैदिक संस्कृतिमें धर्म-सेवन- १-कलिङ्गाधिपति राजा खारवेलकी पट्टरानीने कुमारी पर्वत का अधिकार नहीं मिला। पर एक गुफा बनवाई थी, जिस पर भाज भी निम्न नारियोंके कुछ कार्यो का दिग्दर्शन लेख अङ्कित है और जो रानी गुफाके नामले उल्लेम्बित ___ भारतीय इतिहासको दखनेसे इस बातका पता चलता की जाती है :है कि पूर्वकालीन नारी कितनी विदुषी, धर्मात्मा, और (१) 'अरहंत पसादान (म् ) कालिंगा (न) म् ममणानम् ॥ ___ लेणं कारितं राजिनो ख (1) लाक (म) 'मनसिवचसि कारे जागर स्वप्नमार्ग, (२) हथिस हंस-पपोतम धुना कलिंग-च' (खा) र वे लस मम यदि पतिभावो राघवादन्यसि । () श्राग महीपी या का लेणं ।' तदिह दह शरीरं पावके मामकीनं, xचन्द्रगिरि पर्वतके शिलालेख नं०६१ (१३९) में, जो स्वकृत विकृत नीतं देव माक्षी त्वमेव ॥" 'वीरगल' के नामसे प्रसिद्ध है उसमें गानरेश रक्कसमणिक २-इन्युक्क्त्वाऽभिनवाशोकपल्लवोपमपाणिनः । 'चीर योद्धा' 'बग' ( विद्याधर ) और उसकी पत्नी साविमू जान-स्वमुत्य पायाऽयदस्पृहा ॥६॥ यन्धका परिचय दिया हुआ है, जो अपने पतिके साथ 'वागेइन्द्रनीलघु तिच्छायान-सुकुमारन्मनोहरान् । यूर' के युद्ध में गई थी और वहां शत्रु से खड़ते हुए वीरगतिकेशान-वोच्य ययौ मोहं रामोऽयप्तश्चभूतले ॥७७॥ को प्राप्त हुई थी । लेखके ऊपर जो चित्र उत्कीर्ण हैं उसमें यावदाश्वासनं तस्य प्रारब्धं चंदनादिना । वह घोड़े पर सवार है और हाथमें तलवार लिये हर हाथी पृथ्वीमत्यार्यया तावदीक्षिता जनकात्मना ॥७॥ पर सवार हुए किसी वीर पुरुषका सामना कर रही है। ततो दिव्यानुभावेन सा विघ्न परिवर्जिता । सावयब्वे रूपवती और धर्मनिष्ठ जिनेन्द्र भनिमें तत्पर थी। संवृत्ता श्रमणा साध्वी वस्त्रमात्रपरिग्रहा ॥७॥ लेखमें उसे रेवती, सीता और अरुन्धतीके सरश बतलाया .-पद्मचरित पृ० १०५ गया है।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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