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किरण ३]
[ ३ कर अजितनावका जीवन परिचय दिया हुमा है। जिसकी .चौवीस ठाणा-(पाकृत) यह ग्रंथ सिरसेनसूरी पत्र संख्या और संधियोंकी रखोक संख्या १२०. इसमें चौबीस तीर्थंकरों जन्मादिकापन गामारखोक जितनी है। इस ग्रन्थ कर्ता कवि विजयसिंह है, पर दिया हमा है। यह कृति भी एक गुटके में संनिहित है। परन्तु इनका परिचय मुझे अभी ज्ञात नहीं हो सका। १०. अहोरात्रिकाचार-यह प्रन्थ पं० माशापरजी यह ग्रंथ भव्य कामीरायके पुत्र देवपासके बिये विखा कृजिसकी खोक संख्या बनाई गई और गया है।
जो एक गुहकमें संग्रहीत है। ५. मागोपदेश श्रावकाचार-यह संकृत भाषाका ११.हसा अनुप्रक्षास प्रमा
११.हंसा अनुप्रेक्षा-इस प्रन्यके कर्ता अजितना। सात संध्यात्मक ग्रन्थ है जिसकी पत्र संख्या १७, १२. नेमिचरित-(अपनश) महाकवि पुष्पदन्त १५वाँ पत्र इसका अनुपलब्ध है, लोक संख्या ३६ कृन यह ग्रन्थ भी एक गुरुङ्गको संकलित है। इसरित जिनमेंसे ३.१ श्लोक मूलप्रम्यक है, शेष पद्य प्रस्थकतकि ग्रन्थको देखकर यह निश्चय करना चाहिये कि यह पुष्पपरिचयको बिबे हुए है इस प्रन्यके कर्ता जिनदेव हैं। दन्तकी स्वतन्त्र कृति है पा महापुराणन्तर्गत ही नेमिनाययह अन्य भट्टारक जिनचन्द के नामांकित किया हुआ है। का चरित । प्रस्थका मंगलपय निम्न प्रकार है:
१३. अमृतमार-यह प्रय, संधियोंको जिये नत्वा वीरं त्रिभुवनगुरं देवराजाधिवंद्य, कर्माराति जयति सकलां मूलसंघे दयालु ।
१४. षद् द्रव्यनिर्णयविवरण ज्ञानः कृत्वा निखिलजगतां तत्त्वमादीषु वेत्ता,
१५. गोम्मटसार पंजिका-यह जीवकाम
कारबकी एक संस्कृत माकृत मिश्रित पंजिका टीका है धर्माधर्म कथयति इह भारते तीर्थराजः ॥११॥
जिसके कर्ता मुनि गिरिकीर्ति हैं। इस प्रन्यका विशेष ६. अपभ्रंश कथा संग्रह-इसमें तीन कथायें दी
परिचयबादको दिया जायगा। हुई हैं जिनमें प्रथम कथा रोहिणी व्रत की है, जिसके कर्ता
१६. श्रुतभवनदीपक-यह भहारक देवसेन कृत मुनि देवनंदी है। यह अन्य भामेर भंडारादिके गुण्डकोंमें
संस्कृत भाषाका ग्रंथ है। भी है। दूसरी कथा, दुधारसिनरक उतारी नाम की
१७. रावण-दोहा-प्राकृत (गुडकमें) है जिसके कर्ता विनयचन्द मुनि हैं। वीसरी कथा सुगन्ध
१८. कल्याणविहाण-(अपनश) इस अन्य दशमी नामकी है जिसके कर्ता सुबमाचार्य है।
भण्डारमें वे सबप्रय भी विद्यमान है जो दूसरे भंडारों में ७.योगप्रदीप-यह संस्कृत भाषाका प्रन्य है जिसके पाये जाते हैं। कुछ प्रन्योंकी मूब प्रतियाँ भी उपलब्ध कर्ता संभवतः सोमदेव जान पड़ते हैं। इसका विशेष है, यया-सोमदेवाचार्यका यशतिलकचम्पू मूल, विचार ग्रंथ देख कर किया जा सकता है।
गोम्मटसारकर्मकाण्ड मूब, (यन्त्र रचना सहित) ___८.अज्ञात न्याय ग्रन्थ-यह न्याय शास्त्रका एक सिद्धान्तसार प्रा० (यन्त्र रचना सहित) छोटा सा ग्रंन्य है जो परीक्षामुखके बादकी रचना है, रानवार्तिकमूल, और अमरकोशकी टीका र रचना सरल और तर्कणा शैलीको लिये हुए है। स्वामिकृत मौजूर है। -परमानन्द जैन
मंगल पद्य
सबैया इकतीसा वंदू वद्धमान जाको ज्ञान है समन्तभद्र, गुण अकलंक रूप विद्यानन्द धाम है। जाको अनेकान्तरूप वचन अबाध सिद्ध, मिथ्या अन्धकारहारी दीप ज्यों ललाम है ।। भव्यजीव जासके प्रकाश तें विलोके सब, जीवादिक वस्तुके समस्त परिणाम हैं। वर्ता जयवन्त सो अनन्तकाल लोक मांहि, जाको ध्यान मंगल स्वरूप अभिराम हैं।
-कविवर भागचन्द