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[ वर्ष १३
में और भी अधिक प्रयत्नशील होने की चेष्टा करेंगे।
पुलकीने मौजमाबादके शास्त्र भण्डारकी जो सूची भेजी है इसके लिए हम उनके आभारी हैं। उस सूची में से जिन अप्रकाशित महत्वपूर्ण अन्य प्रन्थभवडारोंमें अनुपलब्ध ग्रन्थोंके नाम जान पड़े उनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है:
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अनेकान्त
अधिकांश कार्य बोलेल सकता है और उससे समाज बहुत सी दिक्कतोंसे भी बच सकता है। चतुर्मास में स्वागीगण एक ही स्थान पर चार महीना व्यतीत करते हैं। यदि वे प्रात्मकल्याणके साथ जैनसंस्कृति और उसके साहित्यकी ओर अपनी रुचि व्यक्त करें तो उससे सेकड़ों प्राचीन ग्रन्थोंका पता चल सकता है और दीमक कीटकादिले उनका संरक्षया भी हो सकता है। माथा है मुनि, महाचारी और त्यागीगण साहित्यसेवाके इस पुनीत कार्यमें अपना सक्रिय सहयोग प्रदान करेंगे।
खेद है आज समाज निवासी प्रति भारी उपेक्षा रही है उसकी और न अनिका ध्यान है, न स्यागि मोंका और न विद्वानोंका है। ऐसी स्थिति जिनवाणीका में संरक्षण कैसे हो सकता है ? आज हम जिनवाणीकी महचाका सूक्ष्यांकन नहीं कर रहे है और न उसकी सुखाका ही प्रयत्न कर रहे हैं, यह बड़े भारी खेदका विषय है। समाजमें जनवादी माताकी भक्ति केवल हाथ जोड़ने अथवा नमस्कार करने तक सीमित है, जबकि जिनवाणी और जिनदेवमें कुछ भी असर नहीं नहि किं माहुराप्ता हि अ तदेवयो: श्री जैनधर्मके गौरव साथ हमारे उत्थान-पतनको यथार्थ मार्गोपदेशिका है।
समाज मन्दिरों में चाँदी खांनेके उपकरण टाइल और संगमर्मरके फर्श लगवाने, नूतन मन्दिर बनवाने, मूर्ति-निर्माण, करमे, वेदी प्रतिष्ठा और रथमहोत्सवादि कार्योंके सम्पादन में लगे हुए है। जब कि दूसरी समाजे अपने शास्त्रोंकी सहाय बालों कपया जगा रही है। एक बाश्मीकि रामा
के पाठ संशोधन के लिए साढ़े आठ लाख रुपये लगानेका समाचार भी नवभारत में प्रकाशित हो चुका है। इतना सब होते हुए भी दिगम्बर समाजके नेतागयोंका ध्यान इस तरफ नहीं जा रहा है वे अब भी अर्धसंचय और अपारनुष्याकी पूर्ति हुए है। उनका जनसाहित्यका इतिहास में लगे जैम शब्दकोष, जैन प्रम्थसूची आदि महत्वके कार्योंको सम्पन्न करानेकी शोर ध्यान भी नहीं है। ऐसी स्थिति में जिनवाणीके संरचय उदार और प्रसारका भारी कार्य, जो बहु अर्थ व्ययको लिए हुए है कैसे सम्पन्न हो सकता है ? भाया है समाजके नेतागण, और विज्ञान तथा त्यागीगय अब भी इस दिशा में जागरुक होकर प्रयत्न करेंगे, तो यह कार्य किसी तरह सम्पन हो सकते हैं। सुक्नक सिद्धिसागरजीसे हमारा सानुरोध निवेदन है कि वे जैसाहित्यके समुद्धार
१. नागकुमार चरित-यह प्रन्थ संस्कृत भाषाका है और इसके कर्ता मा मिस है जो विकमकी १५० शादी के विद्वान थे।
२. बुद्धिरसायन - इस प्रथमे ३०३ दोहे है ? पुरानी हिन्दीमें लिखे गये हैं। इसके कर्ता कवि जिगर है दोहा श्राचरय-सम्बन्धि सुन्दर शिक्षाओंसे है। उसके अलंकृत आदि अन्त दो नीचे दिये जाते हैं-
पढम (पढमि) कार बुध, भासइ जिरणवरूदेउ । भास" वेद पुराण सिरु, सिव सुहकारण हे उ || १ ||
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पढत सुरांत जेवियर, लिहवि लिहाइवि देश । ते सुद्द भुजदि विविध परि, जिवर एम भोइ ॥ ३७६ ॥ यह कसं १६ का खिला हुआ है जो नकोसं नामके मुनिराजको समर्पण किया गया है। इससे स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ उक्त सवत् से पूर्व बनाया गया है, कब बनाया गया ? यह विचारणीय है ।
३. इस गुच्छकमें ६ प्रन्थ हैं- कोफिलापंचमीकथा २ मुकुट सप्तमीकथा ३ दुधारसिकथा ४ आदित्यवारकथा, ५ तीनचडवीसीकथा, ६ पुष्पांजलि कथा ७ निर्दुखसप्तमीकथा, ८ निर्भरपंचमीकथा अनुप्रेक्षा । इन सब ग्रन्थोंके कर्ता ब्रह्म साधारण हैं जो भट्टार क मरेन्द्र कीर्तिके शिष्य थे यह गुक संवत् १२० का खिला हुआ है, जिसकी पत्र संख्या २० है जिससे मालूम होता है कि ये सब कयादि प्रन्य उक संवत् मे के र हुये हैं।
४. यदुचरित --(सुनिकामर ) यह ग्रन्थ अपभ्रंश भाषामें रचा गया है। यह मुनि कनकामरकी दूसरी कृति जान पड़ती है परन्तु वह अपूर्ण है, इसके ४५ से ७० तक कुल २४ पत्र ही उपलब्ध हैं। शेष आदिके पत्र प्रयत्न करने पर शायद उक्त भंडार में उपलब्ध हो जॉय, ऐसी सम्भावना है।
५. अजितपुराण समन्धमें जैनियोंके दूसरे तीर्थं
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