________________
वर्ष १३
क्या ग्रंथ सूचियों आदि परसे जैनसाहित्यके इतिहासका निर्माण सम्भव है। [२t
इति छत्रसेनाचार्य विरचित रुक्मणिकथानकं समाप्तम् देखे और बिना किमी जांच पड़तालके परिचय लिखना तो चन्द्रषष्ठी कथा
इतिहासका उपहास होगा, अथवा उसकी प्रामाणिकता आदि भाग
संदिग्ध हो जावेगी। क्योंकि सभी सूचियां प्रामाणिक जिन प्रणम्य चन्द्राभं कर्मोषध्वान्तभास्करम्। जांचके साथ बनाई गई हों, इसमें मुझे संदेह है । विधानं चन्दनषष्ठाद्या भव्यानां कथायाम्यहम् ।। ऐसी स्थितिमें उन ऐतिहामिक विद्वानोंको विचार
अन्त भाग ऊपरकी कथाके प्रायः समान है। एकादि करना आवश्यक है । अत: इतिहास लेखक विद्वानोंको पदमें कुछ पाठ भेद हैं । मेघमालावत कथाकी एक कथा .. प्रन्थ भण्डारोंको देखना आवश्यक है, देखते समय उन्हें श्लोकात्मक इसमें कवि ननुदासकी है जो इस प्रकार है:- और भी कई ऐतिहासिक उपयोगी बातें मिल सकती हैं। आदि मंगल
इस दृष्टिसे ग्रंथ भंडार देखकर ही इतिहासका सङ्कलन होना श्रीवर्द्धमानंत्रिदशेश्वरैनुतनत्वाधुनावच्मिसुधर्मभूषितम्। चाहिये। पापापहंधविवर्द्धनं च मुक्तिप्रदंचांबदमालिकावतमा उक सूचीमें और भी बहुत सी अशुद्धियाँ हैं, जिनका यत्पुरा मुनिभिः प्रोक्त बहुर्बुद्धचा सविस्तरम् । परिमार्जन करना इतिहास लेखक विद्वानोंका कर्तव्य है। जैसे तत्संक्षिप्य मया मंदमेधासात्र प्रकाश्यते ॥ २४
अमित गतिका प्रवचनमार । इस ग्रंथका नाम मैंने जांच करने अन्त भाग
के लिये नोट किया था कि यह अमितगतिका नया ग्रन्थ है। इति भव्यजनस्य वल्लभा कथिता या मुनिभिः प्रदर्शिता। परन्तु जब भंडारमें से ग्रन्थको निकलवाकर देखा गया तब इह सा जिनवार शासिनो ननुदासेन वृषाभिवाछया । मालूम हुथा कि यह तो विक्रमकी १०वीं शताब्दीके प्राचार्य
इस संग्रहमें ५ कथाएँ चन्द्रभूषणके शिष्य पंडित अन- अमृतचंद्रको प्रवचनपारकी 'तस्व दीपिका' नामकी टीका है। देवकी हैं । पण्डित अनदेवने श्रवण द्वादशी कथाक सम्बंध जिसे भूलसे अमृतचन्द्रकी जगह अमितगति छप गया है। में लिखा है कि मैंने उसे प्राकृतसूत्रसे संस्कृतमें बनाया है। इसी तरहकी अन्य अनेक अशुद्धियाँ हैं जिन पर अन्वेषक आकाश पंचमी कथाको भी पूर्वसूत्रानुसार रचनेका उल्लेख और इतिहास लेखक विद्वानोंका ध्यान जाना चावश्यक है। किया है। इन्होंने लब्धि विधानकथाको ब्रह्म हर्षके उपरोधस इसी तरह प्रथम ग्रन्थ-सूची और प्रशस्तिसंग्रहकी बनाया है। इन कथाओंके अध्ययनसे पता चलता है कि ये ऐतिहासिक स्थल त्रुटियों के लिये भामेर का प्रशस्ति संग्रह' मब कथाएँ अभ्रदक्की अपभ्रंशकी कथाओंसे अनूदित है। नामका मेरा लेख अनेकांत वर्ष ११ कि ३ पृ. २६३ पर पर वे किनकी कथाओं परसे अनूदित की गई हैं, यह अन्वे- देखना चाहिये। पणीय है । इनको कथाओं के नाम इस प्रकार हैं:
ऐलक पन्नालाल दि. जैन सरस्वती भवन बम्बई से षोडशकारण कथा श्लोक ७३, २ लब्धिविधानकथा जो रिपोर्टोक रूपमें ग्रन्थ-सूची और कुछ प्रशस्तियोंका मग्रह श्लोक २०६, ३ आकाशपञ्चमी कथा श्लोक ७ ४ श्रवण- प्रकाशित हुअा था उसमें भी अनेक शुद्धियों थीं। जो ऐतिद्वादशीकथा श्लोक ८०,५ त्रिकालचउवासीकथा श्लोक ७६ । हासिक विद्वानोंसे छिपी हुई नहीं हैं। जैसे धक्कड़ वंशीय ___ इस तरह यह कथा संग्रह ३१ कथायोंके समूहको लिये कविवर धनपालकी 'भविष्यदत्त पंचमी कहा' को बिना किसी हए है । अब यदि इतिहास लेखक विद्वान उक्र सूची प्रमाणक श्वेताम्बरीय ग्रन्थ-सूची में शामिल कर लिया है परसे अभ्रदेवका इतिहास लिखता है जिसमें उसके गुरु जब कि वह सुनिश्चित दिगम्बर ग्रन्थ है । इसी तरह भट्ठा आदिका भी उल्लेख नहीं है। और न पूरी कृतियोंका ही रक मकलकार्तिका १४४४ समय भी पद्रहवीं शताब्दी नहीं उल्लेख है । और जो अन्य विद्वानोंकी कथाओं का है। चूंकि मेरी नोट बुक यही सामने नहीं है इसलिये उन उल्लेख किया गया है। उनका तो भला इतिहाममें नाम पर फिर किसी समय अवकाश मिलने पर प्रकाश डाला कैसे उल्लिखित हो सकता है । यह उन विद्वानोंके लिये जायगा। विचारणीय है । जो उपलक सूची श्रादि ग्रन्थों परसे जैन मारा जैन सिद्धांत भवनसे प्रकाशित प्रशस्ति संग्रहमें साहित्यके इतिहासकी सृष्टि करना चाहते हैं । इतिहास लेखक भी अनेक अशुद्धियां साहित्य इतिहास सम्बंधी रष्टिगत के लिये पूर्वापर ग्रंथोंको देखना अत्यंत आवश्यक है। विना होती है। जिनका परिमार्जन आज तक न तो सम्पादक