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श्रीमान राजकुलदीपक जिनवाणीभक्त धर्मनिष्ठ श्रीधर्मसाम्राज्यजी मूडबिद्री ।
के करकमलों में
अभिनन्दन-पत्र . श्रीमन्महोदय अन्तिम तीथङ्कर भगवान महावीरके विश्वहितङ्कर वाङ्मयको सुदीर्घ कालतक सुरक्षित रखने के लिये लोकहितकारी सद्भावनासे श्रीधरसेनाचार्यने परममेधावी श्रीपुष्पदन्त । तथा भूतवली प्राचार्यको सिद्धान्तग्रन्थ पढ़ाया और उन दोनों प्राचार्याने उस सिद्धान्तको । पट्खएडगमके रूपमें प्रथित किया तथा श्रीगुणधर आचार्यने श्री कषायपाहुड़की रचना की, उन्हीं! आगम ग्रंथों पर बीवीरसेनाचार्य ने क्रमश: धवला, जयधवला नामक विशाल टीकाएं लिखीं, और महाबन्धका, जिसे महायवल भी कहा जाता है, सत्कर्मनामक पंजिकाके साथ सुरक्षित रखा। तीनों आगमग्रन्थ महविद्री-स्थित गुरुगल सिद्धान्तवसदिमें लगभग एक हजार वर्षसे सुरक्षित रहे हैं उस सिद्धान्तभण्डारके भाप प्रमुख ट्रष्टी हैं. अतः इन सिद्धान्त ग्रन्थोंकी सुरक्षामें आपका प्रमुख हाथ रहा है इसके लिये आपको कोटिशः धन्यवाद है ।
जिनधर्मप्रभावक ! श्री वीरसेवामन्दिरकी ओरसे उसके अध्यक्ष श्री बा० छोटेलालजी कलकचानिवासोकी प्रमुखतामें जब आपकी सेवामें दिल्ली से एक शिष्टमण्डल पहुँचा तब आपने बाबू छोटेलालजी की विशेष प्रेरणाको पाकर उक्त तीनों सिद्धान्तग्रंथोंका फोटो लेनेकी अनुमति प्रदान कर उक्त ग्रंथोंका मूलरूप दीर्घकालके लिए सुरक्षित बना दिया । और धवलग्रंथका आधुनिक । ढंगसे जीर्णोद्धार करानेकी कृपा की, यह आपकी जिनवाणी भक्तिका उच्च आदर्श है।
राजकुल दीपक ! आप मचिद्रीक शासक राजकुलके वर्तमान उत्तराधिकारी है। जिस प्रकार आपके पूर्व वंशधर शासकोंने मूडबिद्रीके रत्नमय जिनविम्बों तथा सिद्धान्तग्रन्थों की सुरक्षा । । में उत्कट धर्मभावनासे प्रेरित हो योग दिया तदनुसार ही आप भी अपने जीवन में करते रहें।
धर्मप्रिय घोष्ठिन! आपका वंश परम्परासे परम धार्मिक रहा है। आपका मातेश्वरी॥ श्रीमती चौट्ट ( पद्मावता देवी) प्रतिदिन सिद्धान्तग्रंथोंकी नियमसे पूजा करती हैं। आपकी । स्वर्गीया धर्मपत्नी श्रीमती लक्ष्मीमती भी ऐसी ही धर्मपरायणा थीं, उनकी सदिच्छानुसार मापने धवलग्रंथका जीर्णोद्धार कराया है, जो उनकी अतमक्तिका परिचायक है। इस प्रकार भापका समस्त परिवार धर्मप्रेमी एवं जिनवाणी भक्त है।
आज आपका अभिनन्दन करते हुए हमें अपार आनन्द हो रहा है। श्राप दीर्घ समय तक | प्रसन्न जीवनके साथ धर्म-सेवा करते रहें, ऐसी हमारी भावना है। । मंगसिर वदि , )
आपका गुणानुरागी
वीरसेवा-मन्दिर वीर नि:सं० २४८०
दि.जैन लालमन्दिर, दिल्ली
२१-१-१४