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________________ किरण ४] साहित्य परिचय और समालोचना [१३३ इसमें जैन परम्परा सम्मत सामायिकका स्वरूप, वह कब ज्ञान तथा आदिनाथके अन्तिम दो कल्याणकोंका सुन्दर और कैसे की जाती है, सामायिकके कितने दोष है उन्हें विवेचन दिया है। अन्यकी भाषा सरल और मुहावरेदार है। किस तरह टालना चाहिए आदिका संक्षिप्त विवेचन दिया अन्तमें भागवतमें उपलब्ध अषभ चरितको भी दे दिया गया हुआ है। अलोचना, वन्दना प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान, कृति- है। जिससे पुस्तक उपयोगी हो गई है। यदि इस ग्रंथकी कर्म भादि क्रियाओंका स्वरूप निर्दिष्ट करते हुए उनके करने प्रस्तावना भी ऐतिहासिक दृष्टिसे लिखी जाती, तो पुस्तकमें का यथास्थान निर्देश किया गया है। कुछ स्तोत्र और भकि चार चांद लग जाते । अस्तु, इस उत्तम प्रयासके लिये लेखक पाठ आदिका हिन्दीमें अनुवाद भी दे दिया गया है। जिससे महानुभाव धन्यवादके पात्र हैं। ' पुस्तक उपयोगी बन पड़ी है। इसके संकलन और प्रकाशन- ३-बनारसी विलास-लेखक, कविवर बनारसीदास, का एक ही अभिप्राय ज्ञात होता है और वह यह कि गृहस्थ सम्पादक पं. भंवरलाल न्यायतीर्थ, और पं० कस्तूरचन्द्रजी जैनोंमें विस्मृत हुई सामायिककी वास्तविक विधिका प्रचार कासली वाध एम. ए. । प्रकाशक केशरवाल बख्शी मंत्री हो, वे उसकी महत्ता और आवश्यकताका अनुभव करे। नान स्मारक ग्रन्थमाला न्यू कालोनी, जयपुर । पृष्ठ संख्या क्योंकि सामायिक ही ऐसी वस्तु है जिसका समुचित आचरण सब मिलाकर ३१७, मूल्य सवा रुपमा। . करने पर प्रान्मा अपने स्वरूपको पिछाननेका उपक्रम करता इस ग्रन्थमें कविवर बनारसीदास द्वारा समय-समय पर हुआ अपनेको कर्म-कलंकसे बचानेका उपाय करता है, वैर, रची गई फुटकर कविताओंका एकत्र.सग्रह है। जिसे 'बनाविरोध दूर करने वाला तथा मैत्री और निर्भयताका मसूञ्चक रसी विलास' नामसे उल्लेखित किया जाता है। कविवर है, शम-सुखमें मग्न करने वाला इसके बिना अन्य साधन बनारसीदास उच्चकोटिके आध्यात्मिक कवि थे। उनमें नहीं हैं। कविताका प्रवाह स्वाभाविक था। यही कारण है कि उनकी जाप जपना, या माला फेरना सामायिक नहीं है। सामा-कविता उच्चकोटि की होते हुए भी सर्व साधारण लिये यिक करने वालोंको पार्त-रौद्ररूप कुध्यानोंके परित्यागपूर्वक प्रिय बनी हुई है। वे तुलसीदासके समकह कवि थे। इनकी मात्मामें समताभावोंके लाने और बाह्यअभ्यम्तर जल्पों द्वारा कविताओं में अध्यात्मवादकी पुटके साथ रहम्यवादका विचलित होने वाली मनः परिणतिको सुस्थित करनेका उपक्रम मौलिक रूप भी अन्तनिहित है। जिस पर प्रस्तावनामें करना है। इसीलिए सामायिक करनेवाले सद्गृहस्थको साम्य- विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता थी। भावमें निष्ठ रहनेकी ओर विशेष ध्यान दिया गया है। इस प्रारम्भमें ४६ पृष्ठोंकी प्रस्तावनामें कस्तूरचन्द्रजी ने उपयोगी पुस्तकका घरघरमें प्रचार होना चाहिए। इसके कविवर की कृतियोंका सामान्य परिचय कराते हुए उनका लिए संग्राहक महानुभाव धन्यवादाई है। संक्षिप्त जीवन-परिचय भी दे दिया है। इस संस्करण को २. भगवानऋषभदेव-लेखक पं. कैलाशचन्द्रजी यदि कोई विशेषता है तो वह यह है कि अन्तमें कठिन सिद्धान्तशास्त्री, प्राचार्य स्याद्वादमहाविद्यालय, बनारस, प्रका- शब्दोंका संक्षिप्त अर्थ भी परिशिष्टके रूपमें दे दिया है। शक भारतवर्षीय दि. जैन सङ्घ । पृष्ठ संख्या १४२ मूल्य किन्तु छपाई साधारण है। ऐसी महत्वपूर्ण कृतिमें न्यूजसजिल्द प्रतिका सवा रुपया। प्रन्ट जैसा घटिया कागज लगाया गया है, जो उस प्रन्थके इस पुस्तक के विद्वानलेखकसे जैन समाज भली भांति परिचित योग्य नहीं है । प्रस्तावनामें अन्य लेखकों की भांति स्वयंभूको है। प्रस्तुत पुस्तकका विषय उसके नामसे प्रकट है। इसमें प्रथम कवि लिखा गया है जबकि उनसे पूर्ववर्ती कवि 'चउजैनियोंके प्रथम तीर्थकर श्री श्रादि ब्रह्मा ऋषभदेवका जीवन- मुह' हुए हैं। जिनकी कृतियोंका उल्लेख स्वयंभूने स्वयं परिचय दिया हुआ है। जिसमें उनकी जीवन घटनागोंके किया है। प्रस्तु, ग्रन्थ उत्तम है, और इसके लिये सम्पादकसाथ उनके पुत्र भरतकी दिग्विजय, जीवन-घटनाओं, भरत प्रकाशक महानुभाव धन्यवादके पात्र है। बाहुबली युद्ध, बाहुबलीका बैराग्य, तपश्चर्या और केवल -परमानन्द जैन
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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