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किरण ५ ]
केशरियाजी आदिनाथ मन्दिरका जीर्णोद्वार भी उग्रवंश प्रतिष्ठित जनों द्वारा हुआ है। यह यहांके लेखों परसे प्रकट है । हो सकता है कि सम्वत् ११०३स भी पुरातन मन्दिर हम वंशके द्वारा निर्मित रहे हों, पर इस समय इससे पुरातनमदिरा उल्लेख मेरी जानकारीमें नहीं है। क्योंकि उन मन्दिर निर्माता पीपा साहूका कुटुम्ब ११वीं शताब्दीका था ।
हुवड या हूमडवंश और उसके महत्वपूर्ण कार्य
हमके द्वारा प्रतिष्ठित अनेक मन्दिर और मूति] मूर्तियों बागढ़ और गुजरातमें पाई जाती है। इस वंश ने वैभव ! वंशमें अनेक सम्पन्न पुरुष हुए हैं जिन्हा उपनेता धार्मिक कार्यो में लगाया है। मटशन कवल मन्दिर धार मूर्तियां हा निर्माण नहा कराया किन्तु अनेक ग्रन्थाका निर्माण और उनकी प्रतिया लिखा-लिखाकर मुनियों महारको और विद्वानो को भेंट दी हैं। जिन अनेक प्रशस्ति-उल्लम्ब श्राज भी पाये जाते है । इनके द्वारा लिखाये गये ग्रंथो में सबसे पुरातन प्रति 'धर्मशर्माभ्युदय' की संकाक द्वारा लिखित प्रति संघवीपाडावे श्वेताम्बरीय भंडारमें पाई जाती है। यद्यपि उसमें उसका लिपिकाल दिया हुआ नहीं है किन्तु उनमें कुन्दकुन्द के वंश में होने वाले मुनिरामचन्द्र उनके राज्य शुभकीर्ति चोर शुभकीर्तिके शिष्य विशालकीर्तिका और उनके शिष्य विजय सिंहका उल्लेख किया गया है। ये मुनिरामचन्द्र वे हा प्रतीन होते है जिनका उल्लेख 'वृक्षगिरी' के सम्वत् १२२२ ख किया गया है। इससे कीर्ति और विशाल कीर्तिका समय यदि ५० वर्ष मानलिया जाय तो भी विशालकीर्तिका अस्तित्व मं० १२७२ या १२८४ में पाया जाना असम्भव नहीं है। इससे उक्त प्रति सं० १२६४के लगभगकी लिखी हुई होना चाहिए | दूसरी प्रति सं० १२८ की लिखी हुई उम्र भण्डारमें मौजूद ही है।
इस जानिमें अनेक विद्वान और महारक भी हो गए हैं। यह जाति काष्ठासंघ मूल संघ दोनोंकी अनुगामी रही है । सरस्वति गच्छ दोनोंमें पाया जाता है। विक्रम की १७वीं शताब्दी पूर्वका कोई ग्रन्थकार इनमें हुआ हो ऐसा मुझे शात नहीं हुआ हो, शादी दो तीन कां
का संक्षिप्त परिचय यहा दिया जाता है।
१ ब्रह्म रायमल हमडवंश भूषण थे। इनके पिताका
X देखो, अनेकान्त वर्ष १२ किरण में प्रकाशित 'हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण' नामका लेख पृ० १६२
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नाम 'मा' और माताका नाम चम्पा था । यह जिन चरणोंके उपासक थे। इन्होंने महासागर के तटभागमें समाश्रित 'ग्रीवापुर के चन्द्रप्रभजिनालय वर्षी कर्मसीके वचनोंसे भक्तामरस्त्रोत्र वृत्तिकी रचना वि० सं० १६६७ में आषाढ शुक्ला पंचमी दिन की थी । ब्रह्म रायमल मुनि अनन्तकीर्तिके शिष्य थे जो रत्न कीर्ति पट्टधर थे । भक्रामरस्तोत्रवृत्तिके अतिरिक इनकी निम्न रचानाएँ और उपलब्ध हैं। नेमिश्वराम ( सम्बत १६२२) हनुवन्तका (१६१६) प्ररित (१६२८) ), सुदर्शनराय (१६२०), श्रीपालराम (१६३०) और भविष् दत्तकथा ( १६३३ में बनाकर समाप्त किये है। ये सब रचना हिन्दी गुजराती भाषाको लिए हुए है
२ - भट्टारकरतन चन्द्र हुंबडजातिकं महीपाल वैश्य और चम्पादेवी पुत्र थे। यह मूल निगमहारक पद्मनन्दीक अन्यमें होनेवाले सकलचन्द्र भट्टारकके शिव्य I इन्होंने सम्बत १६८३ में 'सुभीमपचरित' की रचना बुध तेजपालकी सहायता से की थी ।
३- भट्टारक गुणचन्द्र मूलम'घ सरस्वती गच्छ बलाकारगयाचे महारक रनकीतिक प्रशिष्य और उन्होंक द्वारा दीक्षित यशः कीर्तिकं शिष्य थे। इन्होंने सागवाडा निवासी हमवंशी सेठ हरखचन्द दुर्गादासकी प्रेरणा श्रनन्तव उद्यापनार्थ सं० १६३३ में अनन्तजिन पूजा' की रचना की थी।
इन सब जातिकी ममृदिका मि दिग्दर्शन हो जाता है । हूमडोंमें कुछ श्वेताम्बर सम्प्रदाय के भी अनुयायी रहे हैं। यहां उनके द्वारा प्रतिष्ठित कुछ मूर्तिलग्योंका उल्लेख किया जाना है । यद्यपि उनके द्वारा प्रतिष्टित मूर्तियोंकी संख्या सहस्रों है, फिर भी यहां पाठकोंकी जानकारीके लिए कुछ मूर्ति-लेग्बों तथा पुस्तक प्रशस्ति लेखोंकी दिया जाता है
मूर्तिलेख
'संवत् १३०४ वर्ष चैत्र सुदी स्त्री सूरततीथवास्तव्य प्रसादी हुम्बडव्यानां श्राल्हाशाहका जूरा सेगल"
कर्तव्या
यह लेख धातुको पद्मावतीकी मूर्ति सूरतका है । 'सम्वत १३३० वर्षे माव सुदी १३ सोमे श्री काष्ठामधे श्री लाडवागड गणे श्रीमत् श्राचार्यतिहु (च) कीर्ति गुरूपदेशे हुम्बज्ञातीय व्या० बाइड भार्या लच्छी, सुत व्या। वोमा भार्या राजूदेवी श्रेयोधं सुत दिवा भार्या सम्भवदेवी नित्यं प्रणमति ॥ ' - जैनलेखमंग्रह ॥१३५॥