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________________ १२४] अनेकान्त [वर्ष १३ - सम्बन्धमें कोई सन्देह नहीं रहता। इनके द्वारा निर्मित भट्टारक सकलचन्द्रकं द्वारा दीक्षित थी, उसने संवत् १६६८ विशाल मन्दिर-मूर्तियाँ और शास्त्रभण्डार इनकी धर्म- में सागपत्तन (सागवाडा) में उन सकलचन्द्रक उपदेशसे प्रियताके ज्वलन्त उदाहरण हैं। बागड़ प्रान्तमें तीन म. सकलकोनिक वर्धमानपुराणकी प्रति लिखवा कर उन्हीं जातियोंके अस्तित्वका पता चलता है, नरसिंहपुरा, नागदा सकलचन्द्रको भेंट की थी। और हुम्बड। हुम्बड़ोंमें काप्ठासंघी और मुलसघी पाये जाते हम वंश द्वारा निर्मित मन्दिरों में सबसे प्राचीन मन्दिर हैं । परन्तु मूलसंघियों की संख्या कम पाई जाती है । नागदा झालावाडस्टेटमें निर्मित झालरापाटनका प्रसिद्ध वह शान्ति जिस नागदह भी कहा जाता है और जो 'नन्दियड' का नाथका मन्दिर है जिसे हुमडवंशी शाहपीपान बनवाया था अपभ्रंश है। हमडों में शाग्वा और गच्छ भी पाये जाते हैं। और जिसकी प्रतिष्ठा विक्रम सम्बत् ११०३में भावदेवसूरिके इनमें लघुशाखा, बृहन्शाखा और वर्षावतशाखा आदिक द्वारा सम्पन्न हुई थी। यह मन्दिर बहुत विशाल है और नौ उल्लेख भी मिलते हैं । परन्तु गच्छ मबका प्रायः 'परस्वति' मी वर्षका समय व्यतीत हो जाने पर भी दर्शकोंक हृदयमें कहा जाता है। इनमें १८ गोत्र प्रर्चालन है। परन्तु उनमें धर्म संवनकी भावनाको उल्लासित कर रहा है । इस मन्दिरमंत्रेश्वर, कमलेश्वर, बुद्ध श्वर और काकडेश्वर आदि गोत्र में जो मूलनायककी मूर्ति है वह बड़ी ही चित्ताकर्षक है। वाले अधिक संख्यामें पाए जाने हैं। कारोबारक अनुसार कहा जाता है कि साह पीपाने इस मन्दिरके निर्माण करनमें इन्हें कोटड़िया, शाह और गांधी आदि नामोंसे भी पुकारा विपुल द्रव्य म्वर्च किया था। और उसकी प्रतिष्ठाम तो उमस जाता है। दस्सा हमड़ोंका बीसा हुमड़ोंसे कोई सम्बन्ध भी अधिक व्यय हुआ था | शाहपीपा जितने वैभवशाली नहीं है। इनके १८ गोत्रोंक नाम इस प्रकार है थे उतने ही वे धर्मनिष्ठ और उदारमना भी थे। इनकी १. खेरजू, २. कमलेश्वर, ३. काकडेश्वर. ४. उत्तर- समाधि उसी मन्दिरके पापके अहातेमें बनी हुई है। श्वर, ५. मंत्रेश्वर, ६. भीमेश्वर, ७. भद्रेश्वर, 5. गंगेश्वर, इस मंदिरमें एकपुराना शास्त्रभण्डार है जिसमें । क १. विश्वेश्वर, १०. संखेश्वर, ११. प्राम्बेश्वर, १२. चाचन हजार हस्तलिम्वित ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह पाया जाता है। श्वर, १३. सोमेश्वर, १४. राजियानो, १५. ललितश्वर, चूकि यह मन्दिर नौ सौ वर्ष जितना प्राचीन है अतः हुम्बद्ध १६. काशवेश्वर, १७. बुद्ध श्वर और १८. संघेश्वर । जातिका अस्तित्व भी नी मौ वर्ष से पूर्वका है कितन पूर्वका इन गायोंक अनावा एक 'वजीयान' गोत्रका उल्लेख यह अभी विचारणीय है। पर सम्भवतः उसकी मीमा १५० और भी पाया जाता है। इस गोत्रधारी बाई हीरोने, जो वर्ष तो और है ही। एमडवंश द्वारा प्रतिष्ठित मन्दिर और मूर्तियाँ बागड प्रान्त और गुजरातमें पाई जाती हैं । सुप्रसिद्ध * हुमड़ोंकी वर्षावन शाखाका उद्गम वर्षाशाहके नामसे हुआ जान पड़ता है। वर्षाशाह महारावल हरिसिंहक समय उनका सवत १६६८ वर्षे भाद्रपदमास शुक्लपक्ष द्वादस्यां रविवासरे मन्त्री था। उसने महारावतकी आज्ञानुसार एक हजार एमड श्रीमद्बागडमहादेश श्रीसागपत्तनं श्रीमूलसंधे प्राचार्य श्री कुटुम्बोंको मागबाडास जाकर कांठल में श्राबाद किया था यह कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भहारक श्रीपद्मनन्दिदेवास्तत्प भट्टारक बात शिलालेखों, दान-पत्रों और पुस्तकोंसे ज्ञात होती है। श्रीपकलकीर्तिदेवास्तत्प? भट्टारकश्रीभुवनकीतिदेवास्तत्पट्टे वर्षाशाहने धर्मभावनाम प्रेरित होकर देवलियामें एक भट्टारक श्रीज्ञानभूषणदेवास्तत्पपर्ट मण्डलाचार्य श्रीज्ञानदिगम्बरमन्दिर बनवाना प्रारम्भ किया था जो उसकी कीर्तिदेवाम्तत्प? मण्डलाचार्य श्रीरत्नातिदवास्तत्पट्टे मृत्युक बाद पूर्ण हुआ और उसकी प्रतिष्ठाका कार्य उसके मण्डलाचार्य श्रीयश:कीर्तिदेवास्तत्पर्ट मण्डलाचार्य श्रीपुत्र वद्धमान और पौत्र दयालन सं० १७७४ माघ सुदी श्रीगुणचन्द्रदेवास्तस्प? मण्डलाचार्यजिनचन्द्रर्दवास्तत्प? १३ को सम्पन्न किया था । वद्ध मान और उसका छोटा भाई मण्डलाचार्य श्रीसकलचन्द्रदेवोपदेशात हुम्बडजातीय वजीयाण. उदयभान प्रतापसिंहक समय मन्त्री थे। बाद में उदयभान- गोत्रे पासडोतमाह जीवा भार्या जीवादे मुत शाह नाका भार्या ने मन्त्री पद छोड दिया था किन्तु वर्द्धमान महारावत वाई श्रीतइनायके तया इदं शास्त्रं (बद्ध मानपुराणं) पृथ्वीसिंहके समय तक प्रधान मन्त्री पद पर रहा था। स्वज्ञानावरणी कर्मक्षयाय सत्पात्राय श्रीसकलचन्द्राय तद्दी (देखो प्रतापगढका इतिहास पृ० ३८३) क्षिता बाई हीग लिग्वाप्य दत्तं ।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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