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हुंबड या हूमडवंश और उसके महत्वपूर्ण कार्य
( परमानन्द जैन शास्त्री )
जैनसमाजमें खंडेलवाल, अग्रवाल जैसवाल, पद्मावतीपुरवाल, वघेरवाल परवार और गोलापूर्व श्रादि ८४ उप जातियोंका उल्लेख मिलता है। इन जातियोंमें कुछ जातियाँ ऐसी भी हैं जिनमें जैनधर्म और वैष्णवधर्मकी मान्यता है, ये जातियां किसी समय जैनधर्मसे ही विभूषित थी; किन्तु परिस्थितिवश वे आज हमसे दूर पड़ी हुई हैं। बुन्देलखण्ड में फूलमालाकी बोली बोलते समय एक जयमाला पढ़ी जाती है जिसे 'फूलमाल पच्चीसी' कहा जाता है, उसमें जैनियोंकी उन चौरासी उपजातियों के नामोंका उल्लेख किया गया है। इन जातियोंका क्या इतिवृत्त है और वे थ और कैसे उदय को प्राप्त हुई ? इसका कोई इतिहास नहीं मिलता। इन्ही ज. तियोंमें एक जाति 'हुम्बड' या 'हूमड' कहलाती है। इस जातिका उदय कब और कैसे हुआ और उसका 'हुड' या 'हमड' नाम लोकमें कैसे प्रथित 'हुधा इसका प्राचीनतम कोई प्रामाणिक उल्लेख मेरे देखने में नहीं आया। हो सकता है कि जिस तरह खण्डेलवाल, जैसवाल, श्रादि जातियोंका नामकरण ग्राम और नगरोंके आधार पर हुआ है । उसी तरह हुम्बड जातिका नामकरण भी किसी ग्राम या नगरक कारण हुआ हो । अतः सामग्री प्रभावसे उसके सम्बन्धमें विशेष विचार करना इस समय संभव नहीं है ।
इस जातिका निवासस्थान गुजरात और बम्बई प्रान्त रहा है किन्तु ईडरमें मुसलमानों के श्रा जाने और राज्यमत्ता राष्ट्रकूटों (राठों के पास चली जाने पर हम प्रतिष्ठित जन वहांसे वागड़ प्रान्त और राज थानमें भी बस गए थे। प्रतापगडमें इनकी संख्या अधिक है। यह जति दो विभागो में बटी हुई है दस्मा और बीमा । यह दस्मा बीसा भेद केवल हुम्बड जातिमें नहीं है किन्तु श्रग्रवालोंमें भी उसका प्रचार है । इम जाति इन दोनों नाम वाले विभागोका कब प्रचलन हुआ. यह विचारणीय है। इस जातिमें अनेक प्रतिष्ठित और धर्मनिष्ठ व्यक्ति हुए हैं और उन्होंने राजनीतिमें भाग लेकर अनेक राज्याश्रयों को प्राप्त कर महामात्य और कोपाध्यक्ष शादिकं उच्चतम पड़ोंको पाकर जनताकी सेवा की हैx | यह धन-जनसे जैसे सम्पन्न x ईडरके राठौर राजा भानुभूपांत ( रावभाण जी) जो रावपु'जोजीके प्रथमपुत्र और राव नारायणदासके भाई थे ।
रहे हैं वैसे ही वे उदार भी रहे हैं। इनके द्वारा प्रतिष्ठित एवं सम्पन्न धार्मिक कार्यो को देखकर इनकी महत्ताके और उनके बाद राज्य गद्दी पर श्रासीन हुए थे। इनके दो पुत्र हुए थे सूरजमल और भीमसिंह । इन्होंने सम्वत् १५०२ से १५५२ तक राज्य किया है। इनके राज्यसमय में हुबंडवंशी भोजराज उनके महामात्य थे, उनकी पत्नीका नाम विनयदेवी था, उससे चार पुत्र उत्पन्न हुए थे, कर्मसिंह, कुलभूपण, श्रीघोपर और गङ्ग । इनकी एक बहिन भी थी, जो सीता के समान शीलवती थी। उसने ब्रह्म श्रुतसागरके साथ गजपंथ और तुरंगीगिरकी यात्रा की थी । जैसा कि पल्ल 'विधान कथाके निम्न पद्योंसे स्पस्ट है:--- श्री भानुभूपतिभुजाऽसि जलप्रवाह
निर्मग्नशत्रु-कुलजात ततः प्रभावः । सद्वृद्धहुम्बडकुले वृहतील दुर्गे
श्री भोजराज इति मंत्रिवरो वभूव ॥ ४४ ॥ भार्याऽस्य सा विनयदेव्यभिवा सुधोपसोद्गार वाककमलकांतमुखी सखीव । लक्ष्म्याः प्रभोजिनवरस्य पदाब्जभृंगी, साध्वीपतित्रतगुणा मणिवन्महार्घ्या ||४५|| सासूत भूरिगुणरत्नविभूषितांगं श्री कर्मसिंहमित पुत्रमनू करत्नम् । कालं च शत्रु-कुल- कालमनूनपुण्यं श्री घोषरं घनतरार्घागरींद्रवज्रम् ॥ ४६ ॥ गंगाजल प्रविमलोचचमनोनिकेतं तुय च वर्यंतर मंगजमत्र गंगम् । जातापुरस्तदनु पुतलिकास्वमैषां वक्त्र सज्जनवरस्य सरस्वतीव ।। ४७ ।। सम्यक्त्ववदाकलिता किल रेवतीव सीतेव शीलसलिलांक्षितभूरिभूमिः । राजीमतीव सुभगा गुण रत्नराशिलासरस्वति इवांचति पचली ॥ ४८ ॥ यात्रां चकार गजपन्थ गिरौ ससंघाहो तत्तपो विदधती सुहाना सा । सच्छान्तिकं गणसमचं नमर्हदीश नित्यार्चनं सकल संघ मनु त्तदानम् ॥ ४६ ॥ ( देखो जैनमंथप्रशस्ति संग्रह पृ० २१६ )