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अहिंसा की युगवाणी
__ (डा. वासुदेव शरण अग्रवाल) . महावीर जयन्ती ऐसा शुभपर्व है, जो हमारी तिधिक्रम- मार्ग अहिंसाका ही है। हिंसाकी व्यापक ज्वालामोंने दो में आकर उच्चतर चिन्तनके लिए बलात् हमारा उद्बोधन बार संसारको दो विश्व युद्धोंके रूपमें इस शतीमें भस्म किया करता है। इस समय मनुष्य-जाति ऐसी कठिन स्थितिमें पद है। भागेको ज्वाला पहिलेसे कहीं अधिक भयंकर थी। गई है कि यदि उससे उसका शीघ्र निस्तार न हुभा, तो हिंसाकी वे विकरात लपटें अब भी मानवको भस्म करनेके भविष्य में क्या दशा होगी, कहना कठिन है। मनुष्यने अपनी लिए पास आती दिखाई पड़ती हैं। वास्तविक युद्ध न ही मस्तिष्ककी शकिसे सब कुछ प्राप्त किया, शायद उसने इतना होकर भी युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। यद्यपि शरीरका अधिक प्राप्त कर लिया है, जितनेकी उसमें पात्रता नहीं स्थूल नाश होता नहीं दिखाई देता, पर हिंसाकी इन है। उसकी वह उपलब्धि ही उसके लिए भयानक हो गई ज्वालामों में मनका नाश तो हो ही रहा है। इस समय जो है। विज्ञानकी नई शक्ति मानवको मिली है, किन्तु उस व्यक्ति अपना सन्तुलन रख कर सत्य और शान्तिकी बात शक्रिका संयम वह नहीं सीख पाया है। शक्ति प्रासुरी भी सोचते और कहते हैं, मानव जातिके सबसे बड़े सेवक हो सकती है, देवी भी। यदि वह भयका संचार करती है. और हितैषी हैं। तो भासुरी है । जहाँ भय रहता है, वहाँ उच्च अध्यात्म इस समय सब राष्ट्रोंके लिए यही एक कल्याणका तत्व किसी प्रकार पनप नहीं सकता। भयकी सनिधिमें मार्ग है कि वे सामूहिक रीतिसे अहिंसाकी बात सोचे। शान्तिका प्रभाव हो जाता है। भय भात्मविश्वासका विनाश अहिंसा और प्रविरोधके नये मार्ग पर चलनेका निभय करें। करता है। वह शंका और सन्देहको जन्म देता है। समस्त हिंसात्मक विचारोंको त्याग कर हिंसाके साधनोंका भी परिमानवजाति भय और सन्देहकी तिथिमें पड़ जाय तो इससे स्याग करें। जो शक्तिशाली राष्ट्र हैं, उनके ऊपर तो इस बढ़ कर शोक और क्या हो सकता है। कुछ ऐसी ही दायित्वका भार सबसे अधिक है। उन-उन राष्ट्रोंके कर्णअभव्य स्थितिमें भाज हम सब अपनेको पा रहे हैं। कोई धारोंको इस बातका भी विशेष ज्ञान है कि इस बारके भी राष्ट्र भयमुक्त नहीं है।
हिंसात्म युद्धका परिणाम कितना विनाशकारी होगा। ऐसी विचारकर देखा जाय तो भयका मूल कारण हिंसा है। स्थितिमें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिको इस प्रकारसे मोड़ना होगा शक्तिका हिंसात्मक प्रयोग-यही विश्वमें भयका हेतु है। कि वह अहिंसाको अपना ध्रुव -बिन्दु बनाये। अहिंसाके इस भयको अभी तक कोई जीत नहीं पा रहा है, और न द्वारा पारस्परिक प्रीति और न्यायका माश्रय लें। कोई ऐसी युक्ति ही निकाली जा सकी है, जिससे विश्वके मन भगवान महावीरकी जयन्ती प्रतिवर्ष भाने वाली एक पर छाई हुई यह काली घटा दूर हो । यदि हिंसाके इस नग्न तिथि है। वह पाती है और चली जाती है। किन्तु उसका ताण्डवसे वास्तविक युद्ध न भी हुधा और कुछ वर्षों तक महत्त्व मानव जातिके लिए वर्तमान क्षणमें असाधारण है। ऐसी ही भयदायी स्थितिमें मानवको रहना पड़ा, तो भी यह तिथि अहिमाके ध्रुव-बिन्दुकी ओर निश्चित संकेत मानवके मनका भारी नाश हो जायगा । स्वतन्त्र विचार, करती है, और यह बताती है कि मानव कल्याणका मार्ग प्रात्म-विश्वास, उच्च प्रानन्द इन सबसे मनुष्यका मन किस ओर है। महावीर आजसे लगभग ढाई सहस्र वर्ष पूर्व विकास प्राप्त करता है। यही वह अमर ज्योति है, जिससे हुए। अपने समयकी समस्याओं पर उन्होंने विचार किया मानव जातिका ज्ञान अधिक-प्रधिक विकसित होता है। और उसने समकालीन व्यक्रियोंके जीवन पर प्रभाव डाला,
इस समय की जो स्थिति है, उसके समाधानका यदि किन्तु अहिंसाकी जिस दृढ़ भूमि पर उन्होंने अपने दर्शनका कोई उपाय है तो वह एक ही है। हिसाके स्थानमें अहिंसा- निर्माण किया, उसका मूल्य देश और कालमें अनन्त है। को लाना होगा । हिंसाको बात छोड़कर अहिंसाको जीवनका आज भी उसका सन्देश उनके लिए सुबम है, जो उस सिद्धान्त बनाना होगा । शायद नियतिने ही मानव जातिको वाणीको सुननेका प्रयत्न करेंगे अहिंसाकी वाणी आज भी विकासकी उस स्थितिमें लाकर खड़ा कर दिया है. जहाँ सोच युगवाणी है। विचार कर भागेका मार्ग चुन लेना होगा । यह ध्रुव
(श्रमण से)