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________________ किरण ११-१२] जैन समाजके सामने एक प्रस्ताव [२८५ हैं या तो वह उन आक्षेपोंका उत्तर दे या उनका होकर रहे।' खाली अदब कायदों में ही नहीं किंतु रुचि, वेष, विन्यास -६० लालबहादुर जैन और जीवनकी छोटी-छोटी बातों में भी वे उसके पीछे चलें। वर्तमानका वैज्ञानिक मानव धर्मकी तरफ इस दृष्टिले भागे हों न बराबरीमें किन्तु एक हम पीछे । फौजी अनुदेखना चाहता है कि उसकी शंकाएं और कठिनताएं मिट शाशनकी तरह एक सीधी कतारमें और सावधान रहे कि जाय । यदि धर्मको अपना स्थान बनाए रखना है तो नाना जिधर उसका पैर मुद्दे उनका भी उधर मुदे और जिधर प्रकारके उत्तम सुफल धर्मसे प्राप्त होते हैं यह बात उसे उसकी जितनी गर्दन मुके वे भी उधर उतनी ही गर्दन आरिमक-वैज्ञानिक ढंगसे समझना होगा । 'वर्तमानका मुकावें ।-कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकरकी एक कहानीसे वैज्ञानिक मानव हर एक बातको जांच करके मानना चाहता "युवक गण खुशामद नहीं चाहते परन्तु निखालसत्ता है यदि वह धर्मको पालना चाहेगा तो वह पूछेगा कि इससे चाहते हैं। अपनी भूलें छिपानेकी उन्हें कभी जरूरत नहीं उसे इस संसारमें क्या क्या लाभ मिलेंगे। केवल निर्वाणके मालूम होती। उनकी उम्र ही भूलें करके प्रक्वमन्दी भरोसे पर ही उसे कौन पालेगा। -लार्ड लेथियन सीखनेकी होती है। भूल करनेसे और उसे सुधारनेमें उन्हें 'माज हम अपने धर्मके विकाशको केवल परलोक एकसा अानन्द मिलता है। युवकोंको इस बातका ज्ञान सुधारनेका साधन समझ रहे हैं। जहां हमारे प्राचार्योंने होता है कि वे स्खलनशील हैं। इसीलिए तो वे विश्वासइने आत्मोन्नतिके साथ साथ इहलोक और परलोक सफल पूर्वक बड़ोंका अंकुश स्वीकार करते हैं । परन्तु जब यह बनानेका साधन बतलाया है।' -40 देवकीनन्दन जैन अंकुश दवावका रूप ग्रहण करता है तब वे उसका सामना बड़े-बूढ़ोंकी धर्म ठेकेदारी करते है। परन्तु दबाव निकल जाने पर वे फौरन ही अपने जिस प्रकार पुरुष वर्ग स्त्रियोंको साथमें न रखनेसे स्वभावके अनुसार अंकुश हूँढते हुए नजर पाते हैं।' सभात्रोंमें पाप किए गये समाजसुधारक प्रस्तावोंका अमल 'बहते हुए प्रवाहके समान बालक चालाक और कोमल नहीं करा सका, उसी प्रकार बड़े-बूढ़ोंने धर्मको ठेकेदारी होते हैं, यह बात भूलकर हम लोग, बदी अवस्था पाले खुद लेली, नव शिक्षितोंके माथे धार्मिक (मंदिर व्यवस्था प्रादमियोंकी कसौटीसे बालकोंके भले बुरे व्यवहारकी परीक्षा आदि) जवाबदारियों नहीं मदी। करते हैं। पर यह भ्रम है और इसलिए बालचरित्रमें कुछ (४) पिताओंका अनादर्श जीवन कमी होनेपर आकाश-पाताल एक करनेकी कोई जरूरत नहीं मंदिरों में लड़ाई मारपीट खून खच्चर तक करना। है। प्रवाहका जोर ही सुधारका-दोष दूर करनेका उत्कृष्ठ पंच पांपोंमें लग्नता। माधन बन जाता है। जब प्रवाह बंध होकर पानीके छोटे २ पर्व (स्याग) के दिनोंमें त्योहार (भोग) सरीरखा जीवन डबके बन जाते हैं तब वास्तवमें बहुत अड़चन पड़ती।' बिताना। -रवीन्द्रनाथ ठाकुर सत्त्वेषु मैत्री आदि चार भावनाओंका अभाव । (५) पिताओंका अनुचित दबाव-ज्यादती आजकलका पिता अपने परिवारका संरक्षक और पूज्य इस प्रकार गुमराह होनेके कारणोंपर न कुछ प्रकाश अभिभावक बनने मानसे संतुष्ट नहीं है। वह तो जेलर डाला गया है। असल में कारण अनेक हैं। जो जांच के वक्र होना चाहता है। उसकी खुशी इससे नहीं है कि परिवारके नवशिक्षितोंके द्वारा सामने पायेंगे। लोग अपने-अपने ढंग पर फले फूले, बल्कि इससे है कि आशा है, जैन समाज इस निवेदन पर-प्रस्ताव-पर वे उसके उठाये उठे, बैठाये बैठें। यदि वह धार्मिक है तो वे ध्यान देकर नवशिक्षित किंतु धार्मिक पांच सज्जनोंकी एक भी धार्मिक हों और वह नास्तिक है तो वे भी नास्तिक हों। समिति शीघ्र ही कायम करेगी।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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