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अनेकान्त
[वर्ष १३
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पाणिपात्र ताको कहो जो नागो सरवंग ।। अप्रकाशित ग्रन्थ मिल सकते हैं। जिनमें बहुमूल्य सामग्री यही एक मारग मुकत और अमारग संग। पाई जाती है।
देहलीके इसी गुच्छकमें विक्रमकी १५वीं शताब्दीके बालम्गि कोडिमत्तं परिगह गहणं ण होड साहूर्णा ।, उत्तरार्ध और १६वीं शताब्दीक पूर्वार्धके कवि रइधूकी 'साह'
जेह पाणिपत्ते दिएणणं इक्कठाणम्मि ॥१७॥ नामकी एक सुन्दर निम्न रचना प्राप्त हुई है जिसे ज्यों की बालश्रम सम वस्तुको, साधु ना राखत पास । त्यों नीचे दी जाती है :दिनमें भोजन बार इक, पानि-पात्र विधि तास ।।
मोऽहं सोऽहं सोऽहं अरण न बीयर कोई। x .
xxx पापु न पुरण न माणु न माया अलख निरंजणु सोई। संजमसंजुत्तस्स य सुज्माणजोयस्स मोक्वमग्गस्स। सिद्धोऽहं स-विसद्धोह हो परमानन्द सहाउ । खाणेण लहदि लक्खं तम्हाणाणं च णायव्वं ।।२०॥ देहा भिएणउणाणमोहं गिम्मल सासय भाउ ।
बांध पा. सण-णाणु-चरित्तणिवासो फेडिय भव-भव-पासो । संजम सम्यक ध्यानके साधे मुकतिको पंथ ।
केवलणाणु गुणेहिं अखंडो, लोरालोयपयासी । इनको कारण ज्ञान है साधत गुरु निन्थ ।।
रूपण फाण गंधु ण सहो चेयण लक्खणु णिच्चो।
पुरिसणणारिणबालुणबूढउ जम्मा जासुण मिच्ची। देहादिचत्तसगा माणकसारण कलुसिओ धार। काय वसंतु वि काय विहीणउ, भुजंता विणभजइ । अन्नावणेण जादो वाहुबली कित्तियं काले ॥४४ सामि ण किंकर ईसु न रको के भुवि एहु निवज्जइ ।
भाव पा० जणणो जणण जि पुत्तु जि मित्त भामिणि सयलकुडंबा देह आदि सब संग्रह तज्यौ छुट्यो मान कषाय ।
कोइ न दीसइ तुझ सहाई एहु जि मोहविडंबो। बाहुबलि कछु काल तक लियो न ज्ञान अघाय।।
हउं संकप्प-वियप्प-विवज्जिउ सहजसरूपसलीणउ । महुपिंगो णाम मुणी देहाहारादि चत्त वावारो।
परम अतींदिय सम-सुख-मंदिरुसयल विभाउ-विहीण। सवणतणं ण पत्तो णियाणमित्तण भवियगुव ।।४५ सिद्धहं मज्झिजि कोइ म अंतर णिच्छयणय जियजाणी
भाकपाल
ववहारें बहुभाव मुणिज्जइ इम मणि झावहुणाणी। मधपिंग मुनिने तजि दिये तनु आहार व्यापार । चिणिराहति इंदिय जंतउ झाबहि अंतरि अप्पा । श्रमण भावना विन सतो भटक्यौ भव संसार ।।
'रइधू' अक्खइ कम्मदलेरिणु जिमि तुझु होहि परमप्पा ___ ऊपर जिन पद्योंका दोहानुवाद बतौर नमूनेक दिया गया मोहं नामको एक दूसरी जयमाला भी गुटक्में अवित है है उससे पाठक दोहानुवादके पद्योंकी भाषादिका परिज्ञान जिसके कर्ताका नामादिक उपलब्ध नहीं है । रचना सहज कर सकते हैं । इस तरहके गद्य पद्य रूप अनेक ग्रंथ माधारण है। अभी अन्य भंडारोंमें उपलब्ध होते हैं।
स्वप्नावली (रामा)-इम ग्रन्थका विषय उसके दिल्लीके पंचायती मन्दिरके शास्त्र भंडारका अवलोकन आया अथवा रास परम्परा बहुत पुरानी है। जैन करते हुए एक गुच्छमें जिसकी पत्र संख्या १६६ है, गुटक्की समाजमें गमा साहित्य अधिक तादाद में पाया जाता है। मरम्मत करके जिल्द बंधाई गई है। गुटकेमें १९६ पत्रके नृत्य वादित्र, ताल और उच्च लयकं माथ जो गाया जाता था दूसरी लिपिसे अपनश भाषाकी एक रचना खण्डित पाई उसे राम अथवा रासक कहा जाता है विक्रमकी १०वीं सदीमें जाती है। इस गुटकेमें ५८ ग्रन्थोंका संग्रह पाया जाता है दिगम्बर कवि देवदत्त ने जो वीर कविक पिता थे 'अम्बा जिनमें से प्रायः प्राधी रचनाएं नई हैं। इनमेंसे यहाँ कुछ देवीरास' नामकी रचना रची थी जिसका उल्लेख सं० १०७६ रचनाओंका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है और शेष में निर्माण होने वाले 'जम्बूसामीचरिउ' में वीर कविने किया रचनाओंका केवल नामोल्लेख किया गया है ।इसी तरह अन्य है। विक्रमकी १२वीं तथा १३वीं से १६वीं तक रासाका अनेक ज्ञानभंडारोंमें उपलब्ध गुच्छकोंमें सैकड़ों अज्ञात एवं बहुत प्रचार रहा है। श्वेताम्बर सम्प्रदायमें १२वीं शताब्दीसे