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किरण६]
अतिशय क्षेत्र खजुराहा
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दक्षिण पूर्वीयभाग जैनमन्दिरोंकेसमूहसे अलंकृत है। यहाँ डाल देतो है, इन अलंकरण और स्थापत्य-कलाके नमूनोंमें महादेवजीकी एक विशाल मूर्ति ८ फुट ऊँची और ३ फुटसे मन्दिरोंका बह्य और अन्तर्भागविभूषित है । जहां कल्पनामें अधिक मोटी होगी। वराह अवतार भो सुन्दर है उसको सजीवता, भावनामें विचित्रता तथा सूचम-विचारोंका चित्रण ऊँचाई सम्भवतः ३ हाथ होगी। वंगेश्वरका मन्दिर भी सुन्दर इन तानोंका एकत्र संचित समूह ही मूर्तिकलाके प्रादर्शका
और उन्नत है कालीका मन्दिर भी रमणीय है, पर मूर्तिमें नमूना है । जिननाथ मन्दिरके बाएं द्वार पर सम्बत् १०॥ माँकी ममताकाः अभाव दृष्टिगत होता है। उस भयंकरतासे का एक शिलालेख अंकित है जिससे ज्ञात होता है कि यह आच्छादित जो कर दिया है जिससे उसमें जगदम्बाको मन्दिर राजा धंगके राज्यकालसे पूर्व बना है। उस समय कल्पनाका वह मातृत्व रूप नहीं रहा । और न दया क्षमता ही मुनि वासवचन्दके समयमें पाहिलवंशके एक व्यक्ति पहिलेने को कोई स्थान प्रात है, जो मानवजीवनके खास अंग हैं। यहाँके जो घंग राजाक द्वारा मान्य था उसने मन्दिरको एक बाग हिन्दू मन्दिर पर जो निरावरण देवियों के चित्र उत्कीर्णित दखे भेंट किया था, जिसमें अनेक वाटिकाएं बनी हुई थी। वह जाते हैं उनसे ज्ञात होता है कि उस समय विलास प्रियताका लेख निम्न प्रकार है:अत्यधिक प्रवाह वह रहा था, इसीसे शिल्पियोंकी कलामें भी
भी १ओंऽ [ux] संवत् १०११-समय।।निजकुल धवलोयंदि
me ओ. ययेप्ट प्रश्रय मिला है। बजुराहक नन्दोकी मूर्ति ,
२ व्यमूर्तिस्वसी (शी) ल म श) मदमगुणयुक्तसर्वदक्षिण के मन्दिरों में अंकित नन्दी मूर्तियोंस बहुत कुछ साम्य
३ सत्वा (त्त्वा) नुकंपो [ix] स्वजनिततोषो धांगराजेन रखती है । यद्यपि दक्षिण को मूर्तियाँ श्राकार-प्रकारमें उससे
४ मान्यः प्रणमति जिननाथा यं भव्य पाहिल (ल्ज) कहीं बड़ी हैं।
५ नामा । (11) १।। पाहेल वाटिका १ चन्द्रवाटिकर ___वर्तमानमें यहां तीन हिन्दू मन्दिर और तीन ही जैन- ६ लघुचन्द्रवाटिका ३ स (शं) करवाटिका ४ पंचाइमन्दिोंमें सबसे प्रथम मंदिर घण्टाई का है। यह मन्दिर खजु- ७ तलुवाटिका ५ आम्रवाटिका ६ घ(धं)गवाडी [ux] राहा ग्रामकी ओर दक्षिण-पूर्व की और अवस्थित है इसके पाहिलवंसे(शे)तु क्षये क्षोणे अपरवेसी (शा) यःकोपि स्तम्भोंमें घण्टियोंकी बेल बनी हुई है। इसाम यह घंटाईका तिष्ठिति[rx]तस्य दासस्य दासायं ममदत्तिस्तु पालमन्दिर कहा जाता है। इस मन्दिरको शोभा अपूर्व है। १०येत् ॥ महाराज गुरु स्त्री (श्री) वासचन्द्र [ax] दूसरा मन्दिर आदिनाथ का है यह मन्दिर घटाई मन्दिरके चैप (शा) प (ख) सुदि ७ सोमदिने ॥ हाते में दक्षिण उत्तर पूर्व की ओर स्थित है। यह मन्दिर भी
स्थित है। यह मान्दर भा शान्तिनाथका मन्दिर-इम मन्दिरमें एक विशाल दर्शनीय और रमणीय है । इस मन्दिरमें मूल नायकको जो मति जनियाक १६ ताथकर भगवान शान्तिनाथ की है, जो मूर्ति स्थापित थी वह कहां गई, यह कुछ ज्ञान नहीं होता। १४ फुट ऊंची है । यह मति शान्तिका प्रतीक है, इसकी नीसरा मन्दिर पाश्वनायका है। यह मन्दिर पत्र मन्दिरोंसे कला देखते ही बनता है। मूनि मांगोपांग अपने दिव्य विशाल है, इस मन्दिरमें पहले आदिनाथकी मूर्ति स्थापित था, रूपमें स्थित है। और एमी ज्ञात होती है कि शिल्पीने उसे उसके गायब हो जानपर इसमें पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की अभी बनाकर तैयार किया हो । मृति कितनी चित्ताकर्षक है गई है। इस मन्दिरकी दीवालोंक अलंकरणाम वैदिक देवी- यह लेखनीस परकी बात है। दर्शक उसे देख कर चकित देवताको मूर्तियां भा उकाणित की गई हैं । यह मन्दिर हा अपनी ओर दखनका इंगित प्राप्त करता है। अगलअत्यन्त दर्शनीय है। और मम्भवतः दशवीं शताब्दीका पना बगल में अनेक सुन्दर मूतियाँ विराजित हैं जिनकी संख्या हुमा हे। इसके पास ही शान्तिन थका मन्दिर है। इन सभी अनुमानतः २५ से कम गहीं जान पड़ती। यहां सहस्त्रों मन्दिरोंके शिखर नागर शलोके बने हुए हैं। और भी जहाँ मूर्तियाँ खारडत है । महस्त्रकूट चैत्यालयका निर्माण बहुत तहाँ बुन्देलखएइक मन्दिरोंके शिखरमा नागर शैलोके बने ही बारीकोंके साथ किया गया है। इस मन्दिरके दरवाजे हुए मिलते हैं । ये मन्दिर अपनी स्थापन्य कजा नूतनता और पर एक चौंतीसा यन्त्र है जिसमें सब तरफसे अंकोंको विचित्रताके कारण प्राषिक बने हुए हैं। यहांको मूर्ति-कला जोड़ने पर उनका योग चौंतोस होता है। यह यन्त्र बड़ा अलंकरण और अतुलरूप-राशि मानवकल्पनाको आश्चर्यमें ही उपयोगी है। जब कोई बालक बीमार होता है तब उम