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अतिशय क्षेत्र खजुराहा
भारतीय पुरातत्त्वमें 'खजुराहा'का नाम विशेष उल्लेख- में वर्तमानमें पाई जाती है जिनसे पता चलता है कि इसमीय है। वहां जानेके झांसीसे दो मार्ग हैं एक मार्ग झांसी कालमें खजुराहा और उसके पास-पासवतीं प्रदेशों में जैनधर्म मानिकपुर रेलवे लाइन पर हरपालपुर या महोवासे छतरपुर अपनी ज्योतिचमका रहा था। जाना पड़ता है, और दूसरा मार्ग झांसीसे बीना-सागर होते खजुराहा और महोवामें चन्देलवंशी राज्यकालीन उत्कृष्ट हुए मोटर द्वारा छतपुर जाया जाता है। और छतरपुरसं सत- शिल्प कलासे परिपूर्ण मन्दिर मिलते हैं। खजुराहा किसी मा वाली सड़कपरसे बीस मील दूर बमीठामें एक पुलिस समय जेजाहूति की राजधानी था । यह नाम राजा गंडके थाना है वहाँसे राजनगरको जो दशमील मार्ग जाताहै उसके सं० १०५६ के लेखमें उपलब्ध होता है। ७ मील पर खजुराहा अवस्थित है। मोटर हरपालपुरसे इस क्षेत्रका 'खजूर पुर' नाम होनेका कारण वहां खजूरके तीस मील छतरपुर और वहांसे खजुराहा होती हुई राजनगर वृक्षोंका पाया जाना है । भारतको उत्कर्ष संस्कृति स्थापत्य और जाती है। इस स्थानका प्राचीन नाम 'स्वर' पुर था । महोवा वस्तुकलाके क्षेत्रमें चन्देलसमयकी दैदीप्पमान कलाअपना स्थिर छतरपुर राज्यकी राजधानी थी, महोवाका प्राचीन नाम 'जेजा- प्रभाव अंकित किये हुये है। चन्दल राजाओंकी भारतको हनि' जेजाभुक्ति' जुझौति या जुझाउती कहा जाता है । यह यह असाधारण देन है । इनराजाओंके समयमें हिन्दू संस्कृतिके नाम क्यों और कब पड़ा? यह विचारणीय है। चीनीयात्री साथ जैनसंस्कृतिको भी फलने फूलनेका पर्याप्त अवसर मिला । हुएनसांगने भी अपनी यात्रा विवरणमें इसका उल्लेख है। उसकाल में संस्कृति, कला और साहित्यके विकासको किया है।
प्रश्रय मिला जान पड़ता है। यही कारण है कि उसकालके महोवा भी किसी समय जैन संस्कृतिका केन्द्र रहा है। कला-प्रतीकोंका यदि संकलन किया जाय, जो यत्र तत्र विखरा फलस्वरूप वहाँ अनेक प्राचीन जैन मूर्तियाँ उपलब्ध होती हुश्रा पड़ा है, उससे न केवल प्राचीन कलाकी ही रक्षा होगी हैं धंग, गंड, जयवर्मा, मदनवर्मा और परमाल या पर- बल्कि उस कालकी कलाकं महत्व पर भी प्रकाश पड़ेगा। मादिदेव इन पांच चन्दलवंशी राजाओंके राज्यकालमें निर्मित
नोकराज्यकाल में निर्मित और प्राचीन कलाके प्रति जनताका अभिनव अाकर्षण भो मन्दिर और अनेक प्रतिष्ठित मूर्तियां खण्डित-अखण्डित दशा- होगा । क्योंकि कला कलकारक जीवनका सजीव चित्रण है
--- उसकी अन्म-मधना और कठोर छेनी तत्स्वरूपके निखारनेका महोवा या महोत्सवपुरमें २० फुट उंचा एक टोला है
दायित्व हो उनकी कर्तव्य निष्ठा एवं एकाग्रताका प्रतीक है। वहां से अनेक खण्डित जन मूर्तियों मिली हैं। महोवाके
उसके भावांकी अभिव्यंजना ही कलाकारक जीवनका मौलिक प्रास-पास ग्रामों व नगरमि अनेक थ्स जनमन्दिर और रूप है, उससे ही जीवन में स्फूर्ति और आकर्षक शक्तिकी मूर्तियों पाई जाती हैं । महोवामें उपलब्ध खण्डित उनमृनि- जागृति होती है। उच्चतम कलाका विकास प्रात्म-साधन.का योंक- आमनोंपर छोटेछोटे बहुतसे उन्कीर्ण हुयं लेख मिलते विशिष्ट रूप है। उसके विकाससे तत्कालीन इतिहासके हैं। उनमें से कुछका सार निम्नप्रकार है:
निर्माणमें पर्याप्त महायता मिल सकती है। १-संवत् ११६६ गजा जयवर्मा, २-पवन १२.३, बुन्देलखण्उमें चन्दल कलचूरि प्रादि राजवंशोंके शासन ३–श्रीमन मदनवदिवराज्ये, सम्बत् १२१॥ अषाढ सुदि कालमें जैनधर्मका प्रभाव सर्वत्र व्याप्त रहा है और उस समय ३ गुरौ । ५-सम्बत् १२२० जेठसुदी ८ रवी माधु देवगण अनेक कलापूर्ण मूनियां तथा सं कड़ों मन्दिरोंका निर्माणभी तस्य पुत्ररत्नपाल प्रणमति निन्यम् । ६-पुत्राः साधु श्री हुआ है । खजुराहेकी कला तो इतिहासमें अपना विशिष्ट रत्नपाल तथा वस्तुपाल तथा त्रिभुवनपाल जिननाथाय प्रण- . स्थान रखती ही है । यद्यपि खजुराहामें कितनी ही खण्डित मति नित्यम् । -सं० १२२४ प्राषाढ सुदी २ रखौ, काल मूर्तियों पाई जाती हैं, जो साम्प्रदायिक विद्वं षका परिणाम पाराधियोति श्रीमत् परमाद्धिदेवपाद नाम प्रबर्द्धमान कल्या- जान पड़ती हैं। ण विजय गज्ये ... इस लेखमें चन्देलवंशी राजाओंके यहाँ मन्दिरोंके तीन विभाग हैं, पश्चिमीय समूह शिवनाम मयसमयादिके अंकित हैं, जिन्हें वृद्धिक भयसे यहां विष्णु मन्दिरोंका है। इनमें महादेव का मन्दिरही सबसे प्रधान नहीं दिया है।
है। और उत्तरीय समूह में भी विष्णुके छोटे बड़े मन्दिर हैं।