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किरण ६]
रोपड़की खुदाईमें महत्वपूर्व ऐतिहासिक वस्तुओंकी उपलब्धि
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जैन अनाथाश्रमकी ओरसे भी कई दर्शनीय वस्तु- जनताने किया होगा। इसी तरह रथोत्सव पहाड़ोसे ओंका आयोजन किया गया था, सब छात्र भी शामिल वापिस पाने में भी जनताका पूर्ववत उत्साह बना रहा थे। उत्सव में कई बैण्डवाजे भी अपनी स्वर-लहरी और मारा कार्य व्यवस्थित और सुन्दर रहा। बखेर रहे थे। उक्त रथोत्सव ठीक ८ बजेसे प्रारम्भ सरस्वती मन्दिरका सारा प्रायोजन, उसका निर्माण हा गया था और एक बजेके लगभग पहाड़ी पहुंचा। और सजाना आदि सब कार्य लाला रघुवीरसिंह जी दरीबासे लेकर पहाड़ी धीरज तक जनताका अपूर्व जैनावाचकी स्वाभाविक कल्पनाका परिणाम है, उनका समारोह था, रविवारकी छुट्टी पड़ जानेसे जनता और उत्साह और लगन प्रशंसनीय है। रथोत्सव कमेटीकी भी अधिकाधिक रूपमें उपस्थित थी। अनुमानतः व्यवस्था भी सराहनीय थी। सरस्वती मन्दिर में विराज मन्थराजोंका दर्शन दो लाख
-परमानन्द जैन, शास्त्री
रोपड़की खुदाई में महत्वपूर्ण ऐतिहासिकवस्तुओंकी उपलब्धि
पंजाबमें सतलजके उपरकी ओर रोपड़में भारत सरकारके विशेष प्रकारके वर्तन पुरानव विभाग द्वारा हुई खुदाईसे हड़पा सभ्यता तथा ये वर्तन पंजाब और उत्तरप्रदेशके प्राचीन ऐतिहासिक बौद्धकालके बीचके अंध युगपर निश्चित रूपसे प्रकाश पड़ा है। स्थानोंमें प्राप्त हुए है और कुछ अगामें पूर्वमें बंगाल में स्थित
इम खुदाईसे ईमासे २ सहस्रब्दी पूर्वसे लगभग श्राज गौड़ नक तथा दक्षिणमें अमरावती तक पाये गये हैं। इस तकके मारे राज्याधिकारोंमें तारतम्य स्थापित हो गया है तथा स्तर पर छेद वाले सिक्के बहुतायतसे मिलते हैं। शुग, उत्तरी भाग्नमें सभ्यताको विकास श्रृंखलाकी मोटी रूप रेखा कुशन तथा गुप्त कालीन कलाका प्रभाव यहां. सिक्कों तैयार हो गई है। अब पुरातत्व विभाग उन व्यौरोंपर विचार तथा वर्तनों पर हो नहीं २०० ईसा पूर्वसे ६०० ईस्वी तक कर रहा है।
के मुन्दर देश कोटा पर भी अवलोकित होता है। ___ कहते हैं सिन्धु लिपिमें लिखी हुई एक छोटीसी मुहरके खुदाई करने वालोंको यहां बहुतसे भारत-यूनानी तथा मिलनेस इन विषयमें कोई सन्देह नहीं रहा है कि सांस्कृ- कवायली पिकं ६०० कुशन कानके तांबे के सिक्के तथा एक निक रूपमे बलू चम्नान ऊपरी मतलज • तकका प्रदेश एक चन्द्रगुप्तकी स्वर्ण मुद्रा भी मिली है। था। हडप्पा निवासियों के प्रारम्भिक मकान कंकड़ी तथा ऐसा जान पड़ना कि मध्यकाल के प्रारंभमें बस्ती इस कच्ची ईटोंसे बनते ये, पर उसके कुछ समय बाद ही पकाई स्थान पर एक जगहसे दूसरी जगह हटती रही हैं। क्योंकि हुई इंटे काममें लाई जाने लगी।
बर्तमान नगरके स्थान पर ऐसे मिट्टीके वर्तन तथा इंटोंक मकान ईमासे पूर्व दुसरी सहस्राब्दीक अन्तमें हड़प्पा निवा- निकले हैं जो पाठवीं तथा दसवीं ईस्त्रीके हैं। यहां मुगलसियों विनाशक बाद ईमासे पूर्व पहली सहस्राब्दी के प्रारंभ कालको मुद्राएं भी प्राप्त हुई हैं। में एक नयी सभ्यताके लोग यहां आकर बसे । काली रेवाओं कहा जाता है कि पुरातत्व विभाग कुछ समयसे मतलज तथा बिन्दुओंसे चित्रित भूरे रंगके मिटीके वर्तन इस सभ्यनाके के ऊपरी भाग पर अधिक ध्यान दे रहा है । इन वोजोसे अवशेष हैं। सम्भवतः ये लोग प्राय थे । तथा ३००-४००वर्ष रूपडके अतिरिक्र और भी हड़प्पा युगके स्थानोंका पता लगा तक ये रोपड़में रहे भी हैं परन्तु पाश्चर्य यह है कि अभी है। शिवालिक में कुछ स्थानों पर भी पथरके औजार श्रादि तक इनके द्वारा बनाया हुश्रा कोई भवन नहीं मिला है। भी मिले हैं ये ऐतिहासिक युगसे पूर्वके जान पड़ते हैं परन्तु ___ कुछ समय बाद बुद्धकालमें रोपड़में एक नयी सभ्यता इनका गम्भीर अध्ययन एवं मननके पश्चात् ही किसी हदित हुई जो ईसाके बाद दूसरी सदी तक वर्तमान रही। निश्चित परिणाम पर पहुंचा जा सकेगा। इस समय तक लोहा काममें आने लगा था परंतु इस सब मारनमें अनेक स्थानों पर ऊँचे टीले विद्यमान हैं जिनके का मुख्य उद्योग एक प्रकारके चमकदार वर्तन होते थे तथा नीचे बहुत ही मूल्य तिहासिक अवशेष दोपो है। परातत्ववेत्ता जिन्हें उत्तरी काले पालिशके वर्तन कहते हैं। आशा है भारत कोई बालक बोगा देगी। -(नव भारतसे)