SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 198
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ करण ६ ] I विवाह हुआ, और करोड़ों उनके अंगारक थे, जो उन्हें बाहर नहीं जाने देने नगरी चारव सुनियोंसे अपने पूर्व जन्मका वृतान्त सुनकर देश-भोगों चिरक हो मुनि दीक्षा ले ली और प्रयोदश प्रकार परियका अनुष्ठान करते हुए ये भाईको सम्बोधित करने भीतशोका नगरीमें पधारे। शिवकुमारने अपने महलोंके ऊपरसे मुनियोंको देखा, उसे पूर्वजन्मका स्मरण हो थाया, उसके मनमें देह-से निभाव उत्पन्न हुआ उससे राजमालाइ कोलह मच गया और उसने अपने माताI पदने अनुमति माँगी पिताने बहुत समझाया और कहा कि घरमें ही तप और व्रतोंका अनुष्ठान हो सकता है, दीक्षा लेनेकी श्रावश्यकता नहीं, पिता के अनुरोधवश कुमारने तरुणीजन मध्यमे रहते हुए भी विर मानव का महान किया और दूसरोंसे भि लेकर तपका आचरण किया और आयुके में विन्माली नामका देव हुआ। वहाँ दस सागरकी धत्यु तक चार देवांगन और साथ सुख भोगता रहा। अब यही विम्माली यहाँ पाया था जो मातवें दिन मनुष्य रूप अवतरित होगा। राजा विद्यमालीकी उन चार देवांगनाओंके विषयमें भी पूछा। तब गौतम स्वामीने बताया कि चंपानगरी में सूरसेन नामक सेठकी चार स्त्रियाँ थीं जिनके नाम थे जयभद्रा, सुभद्रा धारिणी और यशोमती । वह सेठ पूर्वसंचित पापक "के उदय कुष्टरोगले पीड़ित होकर मर गया, उसकी चारों स्त्रियों अर्जिकाएँ हो गईं और तपके प्रभावसे वे स्वर्गमं वियन्मालीकी चार देवियों हुई । 1 । पश्चात् राजा श्रेणिक विद्युच्चरके विषय में जानने की इच्छाकी सब म स्वामीने कहा कि मगध देश में दस्तिमपुर ननक नगर राज सिन्वर और नारानीका पुत्र विद्युच्चर नामका था। वह सत्र विद्याओं और कवायांमें पारंगत था एक और विद्या हो ऐसी रह गई थी जिसे उसने नखा था राजाने विशुध्वरको बहुत समझाया, पर उसने चोरी करना नहीं छोड़ा। वह अपने पिताके घरमें ही पहुँच कर चोरी करता था और राजाको करके सुषुप्त उसके कटिहार आदि आभूषण उतार लेता था और विद्या बलसे चोरी किया करता था । श्रब वह अपने राज्यको छोड़कर राजगृह नगर था गारा, धीर वहाँ कामलता नामक वेश्या के साथ रमण करता हुआ समय व्यतीत करने लगा । गौतम गणधरने बतलाया कि उक्त विद्युन्माली देव राजगृह अपभ्रंश भाषाका जंबूमामिचरिउ और महाकवि वीर [ १५५ नगर में घास नाम अटिका पुत्र होगा जो उमी भवसे मोच श्रेष्ठिका प्राप्त करेगा। यह कथन हो ही रहा था कि इतने में एक यक्ष वहाँ आकर नृत्य करने लगा । राजा श्रेणिकने उस पक्षके नृत्य करनेका कारण पूछा। तब गौतम स्वामीने बतलाया कि यह यह डास सेठका लघु भ्राता था। वह सप्तम्यसनमें रत था। एक दिन जुए में सब द्रव्य हार गया और उस द्रव्यको न दे सकनेके कारण दूसरे धारियोंने उसे मार मार कर अधमरा कर दिया। सेठ दासने इसे अन्य समय नमस्कार मन्त्र सुनाया, जिसके प्रभावसे वह मर कर प हुआ । यक्ष यह सुन कर इसे नृत्य कर रहा है कि उसके भाई सेठ धईदासके अन्तिम केवलीका जन्म होगा । अन्य मेर इस ग्रन्थकी रचनाएँ जिनकी में रणाकी पाकर कवि प्रवृत्त हुआ है, उसका परिचय ग्रंथकारने निम्न रूपसे दिया है : मालवदेशमें धरूड या धर्कट वंशके तिलक महासूदनकै पुत्र ताखहु श्रेष्ठी रहते थे । यह अन्धकारके पिता महाकवि देवदत्तके परम मित्र थे । इन्होंने ही वीर कविसे जंबूस्वामीतवड श्रेष्ठीके श्वरितके निर्माण करने प्रेरणा की थी और कनिष्ठ भ्राता भरतने उसे अधिक संक्षिप्त और अधिक रूपसे न कहकर सामान्य कथा वस्तुको ही कहने का आग्रह अथवा अनुरोध किया था और नक्सले टीने भर कथनका समर्थन किया और इस तरह ग्रन्थकर्ताने ग्रन्थ बनानेका उद्यम किया । ग्रन्थकार इस अन्य कर्ता महाकवि चोर हैं, जो चिनपशीख यह वंश १०वीं 11वीं और १२वीं १३वीं शताब्दियोंमें खूब प्रसिद्ध रहा। इस वंश में दिगम्बर श्वेताम्बर दोनों हो संप्रदायोंकी मान्यता वाले लोग थे। दिगम्बर सम्प्रदायके कई दिगम्बर विद्वान् ग्रंथकार इस वंशमें हुए हैं जैसे भविष्यदूध पचमीका कर्ता कवि धनपाल, और धर्मपरीचा कर्ता हरिवेने अपनी धर्मपरीचा वि० सं० १०५४में बनाकर समाप्त की थी। अतः यह धर्कट या धक्कड़ वंश इससे भी प्राचीन जान पड़ता है। देलवाडा वि० सं० १२८० के तेजपाल वाले शिलालेखमें भी धर्कट या धड जातिका उल्लेख है ।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy