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________________ श्रनकान्तु . in. २८२] वर्ष १३ + T की ११वीं शताब्दीक मध्य भागम बनाकर समाप्त किया है। सूरिक शिष्य और नमिणक प्रशिध्यानामत गति मुजकी आचार्य महासेन बाड बागडसंघके पूर्णचन्द्र, प्राचार्य स्वामसेन । के शिष्य और गुणाकर सेनरिके शिष्य थे।.संभव है अमितगतिनं अपना पंचसंग्रह..वि० सं० २०७३ में Pris F 5 .15 MER # 1 FRIR FER F95, THIEF TO HIF I CITE महासेनाचार्य गुरुजनोंक विहारसे भी धारा-नगरी पूत हुई मसूतिकापुर (वर्तमान मसूद विलीदा) में जो धाराक समीप TERTAITRIFLEEEEEE TENSIBI.पा हमहासन सिद्धान्तावादी, वारमी कवि और.शब्द है, बनाया था। इन सब उल्लेखसिधर्मितगति धारा नगरीक TRAFFIT- THI जाREpiatimATorrey iPHERE ब्रह्मकेचित्र धामथे। यशस्वियों द्वारा संमान्य, सज्जना निवासी थे। उन्होंने प्रायः अपनी सभी रचनाएं धारामें नमोFEELERatin+TAFEIndLIEr.plthy अप्पणी और पाप रहिताय परमार वंशी राजा मुञ्ज या उनके समीपवंती नगरोम बनाई है। बहुत संभव है कि 1975 EFTER DETTE. 75+ F5.132_ 116FPN. ZIETEIS P EP हमा पूजित थे। सम्यग्दशन ज्ञान, चारित्र.रि तप्का वाचायें अमितगतिक गुरुजन भी धारार्या उसके समीपवती TFIED IFFEAFRIASISATESUPSUPEThes INTRinTHRITHVANI...IFROFIपर सामास्वरूप प्ररि भव्यरूपी कमलाक विकसित करने स्थानाम रहा। अमितगतिनस468से 1 A PUS IR Pornst ENTIS FI . बारवान्धव थे-सूयथ-तथा मिन्धुराज महामात्यं श्री २३ वषोंमें अनेक ग्रंथोंकी रचना वहां की है। FFFFEMAITRIFTESHEET IF AJEFERIFIE पटकारा जिनके चरण कमल पूजे जाते थे और उन्हींक ) मुनि श्रीचन्द्रने जी लालबागसंघ और बलाTRIP IFFI SHIJIFIETEFFE IFERENESEART अनुरोध वश उन ग्रन्थको रचना हुई है। स्कारगणके प्राचार्य श्रीनदीक शिष्य महासेन सूरिका समय विक्रमी । वो 'शतीब्दीकी वि० सं० १०८०में की संवसायिहरविषेणके समाधिकिामदादा - वि० पनचरितकी टोकाकोली महोंनेविसंक में धारा माम और साक्षांक प्राप्त हुए है। नगरी में रहा मोजलेलो राज्यों जाकर सास किया आंचा प्रतिगाम इन्ही नदेयक दाव्यकालमावि तीसरी कृति महाकवि पुष्पदन्तके इत्तरपुयणका दिपाया APHY भाषाशुली धमाके दिन "भुमाफ्ति एम जिसे उन्होंने, सागरसेन नामके सैकान्त्रिक विद्वानसे महा; सन्दाहकी है। जैसा पाउस अन्य के अन्तिम प्रशस्ति पय असा विषम पदों का विवरण, जानकर और मूल दिपणा REP aip ! HATE TRE HEr. FF IFF स्वलोकून, कर, वि० सं राजाभाजद्वक HEETTEशवमति विना FIm पालकालमें चासोथी, कृति 'शिवकोटिको भावती सहस्त्रे वारण प्रभवति हि दिशाधिक (१४) सो असाधना का सा-टिया है जिसका उल्लेख - In समाप्त पञ्चम्या भवति धरिणी मज्जपता, PIR सिंत पापाष बुध हित मिद शास्त्रमनधम् ३२ टीका करते हुए किया है। मुनि श्रीचंद्रकी ने बीचमा इससे हराया PF ,तक तो धार की रची गई हैं। इन्होंने सागरसेन और प्रवचनसेन सुनिश्चित हो और कितने समय तक हमिह निश्चित नामके दो, विद्वानों का उल्लेख किया है ... runt नहाकहाँजोमकती पर यहाहाता है कलपदेयमे 18) दर्शनाखातलदृष्टा., महाविद्वान आचार्य 'या'. मध्यवर्ती किमी समय में मुजका माणिक्युनन्दी ब्रैलोक्यनन्दीके शिष्य थे....नयनन्दीने, थों। चूकि महामने मुज द्वारा पुनित श्रे, श्रीर अपहे. समाजविधिविधान' नामक काव्यमें, महापहिड्द त: akt हो निवास करते थे। श्रतएवं यह प्रन्थ भी बतलान, के..माथ साथ, . उन्हें प्रत्यक्ष-परोक्षरूप प्रमाण उन्हींक गज्य कालमें रचा गया है। . . जलसे-भरे और नयरूप... चंचलतरंगसमूहसे गम्भीर, नाकं माथुरामवावाबार्य समितगतिमाहोमासनः सतम सातभंगरूप कल्लोलमालासे भूषिता जिनशासन सरियो विदिनाखिलोरुसमायोवादीच काही कविः। रूप निर्मल सरोवरले युक्त मौर. दिवोंका, चूडामणि प्रकट शयाविधिप्रयास यशो मान्यां सता. मपणी: 1:। किला है, ५. उन्होंने न्यायशास्त्रका, दोहन करके परीक्षा श्रामीत्श्रीमहोणसूहिनघाली मुनार्चित:, . . . . मुख' नामका सूत्रप्रस्थ बनाया था, जिसे न्याय विद्यामृत सीमादर्शनयोधवृदयसम्भवाब्जनी बांधवः .. . कहा जाता है। जिसपर उनके शिष्य प्राचन्द्र जैसे, तार्किक श्री सिन्धुसजस्वमालनपटेवाचित : पादपदमः ।.. विद्वान द्वारा प्रमेयकमनामातंर्ड' नामका टीका-अंथ लिखा चकार नेनाभि हितः प्रबंध स पावनं निPिठन मङ्गजस्य गया है, तथा लघुः अन्तवीर की 'प्रमेयरत्नमाला' नामको .. - 'FTF FAIR 1.1 -HARमचरित प्रशस्ति एक टीका मी उपलब्ध है और एक टिप्पण भी अज्ञातकर्तृक
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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