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अनेकान्त
। वर्ष १३ है। विशावकीर्ति नामके कई भहारक हो गये हैं। उनमेंसे ये पालइ पंच महाव्रतं समितियों पंचैव गुप्तित्रयो, “ कौनसे विशालकीर्ति हैं यह जानना आवश्यक है। अन्धकारने मूलं मूलगुणा सुसाधनपरो श्रीनेमिचन्द्रो जयो॥" अपनी प्रशस्तिमें विशालकीतिके साथ एक मेमचन्द्र यतिका इस ग्रन्थमें २७ संघियां हैं, उनमेंसे अन्तिम संधिमें भी मामोल्लेख किया है जो विशालकीर्तिके शिष्य जान पड़ते कविने अपनी वंश परिचयास्मिका विस्तृत प्रशस्ति दी है हैं उनमें प्रथम म० विशालकीर्ति के हैं जिनका उल्लेख भट्टा- जिसमें वरा परिचयके साथ-साथ उस समयको परिस्थिति स्क-शुमचन्द्रकी गुर्वावलीमें .वें नम्बर पर पाया जाता है और राज्यादिके समयका उल्लेख करते हुए तत्कालीन कुछ
और जो असन्तकीर्तिके शिष्य प्रख्यातकी के पद पर प्रतिष्ठित नगरोंके नामोंका-आगरा, फतेपुर-गदगुलेर, रुहितासगढ़, हुए थे. विविद्याधीश्वर और बादी थे और शुभकीर्तिके पटना-हाजीपुर, दुढाहर, अवेर,दी, टोडा, अजमेर, दौसा, गुरु थे ।
मेवति, वैराट, अलवर, और नारनौर आदिका-उल्लेख मनोभाक पसनदी किया है । इन नगरोंमें अधिकांश नगर राजपूताना (राजके पदृश्वर थे, और जिनके द्वारा सं 0 में प्रतिधित स्थान) में पाये जाते हैं।
उक्त कलिका ग्रन्थका महत्व बतलाते हुए कविने ५वीं २६ मूर्तियों ज्येष्ठ सुदि एकादशीको टोंकमें प्राप्त हुई थी और जिनमेंसे अधिकांश मूर्तियों पर लेख भी उत्कीर्णित थे।
संधिके शुरूमें निम्न संस्कृत पद्य दिया है जिससे प्रन्थमें
चर्चिन कथाको-सठ शलाका पुरुषोंकी पुराण कथानोतीसरे विशालकीर्ति वे हैं जिनका उल्लेख नागौरके
अज्ञानका नाशक, शुभारी और पवित्र उदघोषित किया है। भट्टारकोंको नामावलीमें दिया हया है और जो धर्मकीर्तिके पट्टधर थे। जिनका पहाभिषेक सं० १६०१ में हुआ था x
या जन्माभवछेदनिर्णयकरी, या ब्रह्मब्रह्मश्वरी, इनमेंसे प्रथम दो विशालकीर्ति शाह ठाकुरके गुरु रहे हों।
या संसारविभावभावनपरा, या धर्मकामा परी। या ये कोई जुदे ही विशालकीर्ति हों।
अज्ञानाढथ ध्वंसिनी शुभकरी, झेयासदा पावनो. .: शाह ठाकुरने महापुराण कलिका नामक ग्रन्थकी संधियों
या तेसट्ठिपुराणउत्तमकथा भव्या सदा पातु नः ।।"
ग्रन्थमें जैनियों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देवका तो मांगोंमें जो संस्कृत पद्य दिये हुए है, उनसे कई पथों में विशाल
पांग परिचय दिया हुआ है, उसमें उनके ज्येष्ठ पुत्र भरत, कीर्ति, और एक पचमें नेमिचन्द्रका आदर पूर्वक स्मरण किया है। जैसा कि २३वीं सैधिके २ प्रारम्भिक पद्योंसे स्पष्ट है :
जिनके नामसे इस देशका नाम भारतवर्ष पड़ा है, उनका
और उनके सेनापति जयकुमार और उनकी धर्मपत्नी सुलोकल्याणं कोर्तिलोके जसुभवतिजगे मंडलाचार्यपट्टे,
चना तथा भरतके लघुभ्राता बाहुबलीके साथ होने वाली नंद्याम्नाये सुगच्छे सुभगश्रुतमते भारतीकारमूर्त। युद्ध-घटना और उममें विजय लाभके अनन्तर दीक्षा लेकर मान्यो श्रीमलसंघे प्रभवतु भुवनो सार सौरव्याधिकारी, कठोर तपश्चर्या करनेका सुन्दर कथानक दिया हुआ है। सोऽयं मे वैश्यवंशे ठकुरगुरुयते कीर्तिनामा विशालो॥" किन्तु अवशिष्ट तेईस तीर्थकरों, चक्रवर्तिवों, नारायणों, "पट्ट श्री भुविनाधिकारि भुवनो कीर्तिविशालायते,
बलभद्रों और प्रतिनारायणों उनके नगर ग्राम, माता पिता,
राज्य काल और तपश्चरणादिका भी संक्षिप्त परिचय अंकित तस्याम्नायमहीतले सुदिनी चारित्रडामणे ।
किया गया है। सम्भव है इस प्रन्थमें पुष्पदन्त कविके महातस्य श्रीवनभसिनस्त्रिभुवन प्रख्यातकीर्तेरभूत् । पुराणसे कुछ कथानक लिया गया हो, दोनों ग्रन्थोंके मिलान । शिष्योऽनेकगुणालयः समयमध्याना प्रगासागर । करने पर यह जाना जा सकेगा। । वादीन्द्रः परवादि-वारणगण-प्रागल्भ-विद्राविणः
कवि ठाकुर शाहने प्रन्थके अन्तमें अपने वंशका परिचय सिंहः श्रीमति मवेति विदितस्त्रविचविचास्पदम् ॥ देते हुए लिखा है कि उनकी जाति खंडेलवाल और गोत्र विशालकीर्तिः ................ ...................॥ लुहादिया था, यह पंश राज्यमान्य रहा है शाह ठाकर सीहा
-शुभचन्द्र गुर्वावली के प्रपुत्र और साहू खेताके पुत्र थे जो देव-शास्त्र-गुरुके भक्त ४.विडयन ऐटिक्वरी में प्रकाशित नन्दिसंघके प्राचार्यों और विद्या विनोदी थे। उनका विद्वानोंसे विशेष प्रेम था, को नामावली
(शेष टाइटिव पृष्ठ ३ पर)