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(1 .का शेषांश) संगीत, शास्त्र, छन्द, अलंकार मादिमें निपुण थे और किया है जो परमवंशके थे। प्रत्यराज नामके एक विद्वान कविता करने में उन्हें.मानन्द माता था। उनकी पत्नी पति कई प्रन्थोंके कर्ता भी हुए है क्या यही है या इनसे मिल और श्रावकोंका पोषण करने में सावधान थी। पाचक जम यह अन्वेषणीय है। उसकी कीतिका गुण गान किया करते थे । उसले दो पुत्र शाह ठाकुरने अपने इस ग्रन्थको संवत् १९१० में राजा उत्पबाए थे, गोविन्ददास और धर्मदास । उनके भी पुत्रा मानसिंह, जो उस समय भामेर (जयपुर) के शासकये। और दिक थे, इस तरह शाह ठाकुरका परिवार एक सम्पस परि. चकत्ताशके हुमायूं के पुत्र अकबर बादशाह के शासन काल में वार था। इनमें धर्मदास विशेष धर्मश और सम्पूर्ण कुटुम्ब बनाकर समाप्त किया था। कविकी बनाई हुई अन्य क्या के भारका वहन करने वाला विनयी और गुरु भक्त था। रचनाएं हैं, यह कुछ ज्ञात नहीं हुआ । प्रन्थकी अन्तिम करिने प्रशस्तिमें खैराज नामके एक व्यक्तिका भी उल्लेख प्रशस्ति अगले अंकों दी जावेगी।
वीरसेवामन्दिरके सुरुचिपूर्ण प्रकाशन
(१) पुरातन-जैनवाक्य-सूची-प्रतके प्राचीन ६४ मूबनान्योंकी पद्यानुक्रमणी, जिसके साथ ४८ टीकाविप्रन्योंमें
उद्धृत दूसरे पडोकी भी अनुक्रमणी लगी हुई है । सब मिलाकर २५३५६ पद्य-वाक्योंकी सूची । संयोजक और सम्पादक मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजी की गवेषणापूर्ण महत्वकी ७० पृष्ठको प्रस्तावनासे प्रसंकृत, डा. कालीदास नागर एम. ए,डी. लिट् के प्राथन (Foreword) और डा. ए. एन. । उपाध्याय एम. ए.डी.लिट की भूमिका (Introduction) से भूषित है, शोध-खोजके विद्वानों के लिये प्रतीष उपयोगी, बड़ा साइज,
सजिल्द (जिसकी प्रस्तावनादिका मूल्य अलगसे पांच रुपये है) (२) प्राप्त-परीक्षा-श्रीविद्यानन्दाचार्यको स्वोपज्ञ सटीक अपूर्वकृति,प्रामोंकी परीक्षा द्वारा ईश्वर-विषयके सुदर
सरस और सजीव विवेचनको लिए हुए, न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजी के हिन्दी अनुवाद तथा प्रस्तावनादिसे
बुक्क, सजिल्द । (३) न्यायदीपिका-न्याय-विद्याकी सुन्दर पोथी, भ्यापाचार्य पं.दरबारीलालजीके संस्कृतटिप्पण, हिन्दी अनुवाद,
विस्तृत प्रस्तावना और अनेक उपयोगी परिशिष्टोंसे अलंकृत, सजिल्द । .. (४) स्वयम्भूस्तात्र-समन्तभद्रभारतीका अपूर्व ग्रन्थ, मुख्तार श्रीजुगलकिशोरजीके विशिष्ट हिन्दी अनुवाद पन्दपरि
चय, समन्तभद्र-परिचय और भक्तियोग, ज्ञानयोग तथा कर्मयोगका विश्लेषण करती हुई महत्वकी गवेषणापूर्ण १०६ पृष्ठकी प्रस्तावनासे सुशोभित।
... (४) स्तुतिविद्या-स्वामी समन्तभद्रकी अनोखी कृति, पापोंके जीतनेकी कला, सटीक, सानुवाद और श्रीजुगलकिशोर
मुख्तारकी महत्वकी प्रस्तावनादिसे अलंकृत सुन्दर जिल्द-सहित। .. (६) अध्यात्मकमलमार्तण्ड-पंचाध्यायीकार कवि राजमल्लकी सुन्दर प्राध्यात्मिक रचना, हिन्दीअनुवाद-सहित
और मुख्तार श्रीजुगलकिशोरकी खोजपूर्ण ७८ पृष्ठकी विस्तृत प्रस्तावनासे भूषित । (७) युक्त्यनुशासन-तत्त्वज्ञानसे परिपूर्ण समन्तभद्रकी असाधारण कृति, जिसका अभी तक हिन्दी अनुवाद नहीं
हुमा था । मुख्तारश्रीके विशिष्ट हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावनादिसे अलंकृत, सजिल्द । " ) () श्रीपुरपार्श्वनाथस्तोत्र-आचार्य विद्यानन्दरचित, महत्वकी स्तुति, हिन्दी अनुवादादि सहित। .. ) (8) शासनचस्त्रिशिका-(तीर्थपरिचय)-मुनि मदनकीर्तिकी १३ वीं शताब्दीकी सुन्दर रचना, हिन्दी अनुवादादि-सहित ।
व्यवस्थापक 'वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला' वीरसेवामन्दिर,१ दरियागंज, देहली