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________________ किरण ] महापुराण कालका और कवि ठाकुर (१८९ भीर प्रतिपादन दृष्टिविकारको लिए हुए एकान्तका द्योतक है। निम्न गाथासे जाना जाता हैक्योंकि पवहार-मोक्षमार्गमें जिस सम्यकचारित्रका प्रहण है असुहादो विनिवित्ती सहे पवित्तीय जाण चारित्त। वह अशुभसे निवृत्ति और शुभमें प्रवृत्तिको लिए हुए प्रायः वद-समिदि-गुत्तिरूवं व्यवहारणया दुजियमणियं ४५ अहिंसादिब्रतों, ईर्यादि-समतियों और सम्यग्योग-निग्रह इस गाथामें स्पष्ट रूपसे यह भी बतलाया गया है कि लच्या-गुप्तियोंके रूपमें होता है । जैसा कि द्रव्यसंग्रहकी चारित्रका यह स्वरूप व्यवहारनयकी दृष्टिले जिनंद भगवानन * इस सम्यक्त्वारित्रको 'सरागचारित्र' भी कहते हैं और कहा है। जब जिनेन्द्रका कहा हुआ है तब जिनशासनसे उसे निश्चयमोक्षमार्गमें परग्रहीत 'वीतरागचारिखका उमो अलग कैसे किया जा सकता है ? अतः कानजी स्वामीके ऐसे प्रकार साधन है जिस प्रकार कांटको कांटेसे निकाला जाता। वचनोंको प्रमाणमें उद्धृत करनेसे क्या नतीजा, जो जिनअथवा विषको विषसे मारा जाता है। परागचारित्रका भूमि शासनको दृष्टिस बाह्य एकान्तके पोषक हैं अथवा अनेकान्ताकामें पहुंचे बिना वीतरागचारित्र तक कोई पहुँच भी नहीं भासके रूपमें स्थित हैं और साथही कानजीस्वामी पर घटित सकता । वीतरागचारित्र यदि मोक्षका मासात साल होने वाले आरोपोंकी कोई सफाई नहीं करते। (क्रमशः) सरागचारित्र परम्पग साधक है। जैसा कि द्रव्यसंग्रहके टीका- "स्त्रशुद्धात्मानुभूतिरूप-शुद्धोपयोगलक्षण-वीतरागचारित्रकार ब्रह्मदेवके निम्न वाक्यसे भी प्रकट है स्य पारम्पर्येण साधकं सरागचारित्रम् ।" महापुराण-कलिका और कवि ठाकुर (परमानन्द जैन शास्त्री) हिन्दी जैन साहित्यमें अनेक कवि हुए हैं । परन्तु अभी अनेक कवियोंके विजेता थे। और जिनका पट्टाभिषेक सम्मेद तक उनका एक मुकम्मिन परिचयात्मक कोई इतिहास नहीं शिखर पर सुवर्ण कलशोंसे किया गया था। इन्हीं प्रभाचन्द्र लिखा जा सका, जो कुछ लिखा गया है वह बहुत कुछ के पट्टधर भ० चन्द्रकीर्ति थे इनका पट्टाभिषेक भी सम्मेद अपूर्ण और अनेक स्थूल भूलोंको लिये हुए है। उसमें किसने शिखर पर हया था | और उन्हींके समसामयिक भ. ही हिन्दी के गद्य-पद्य लेखक विद्वानों और कवियों के नाम विशालकीर्ति थे, जिनका कविने गुरु रूपसे उल्लेखित किया छूटे हुए हैं। जिनके सम्बन्धमें विद्वानोंको अभी कोई जान- -- कारी नहीं है । आज ऐसे ही एक अन्य और ग्रन्थकारका ॐ तत्पहोदयभूधरेजनि मुनिः श्रीमत्प्रभेन्दुवंशी, परिचय नीचे दिया जा रहा है। आशा है अन्वेषक विद्वान हेयादयविचारणकचतुरो देवागमालंकृतौ। अन्य विद्वान कवियोंका परिचय खोज कर प्रकाशमें लानेका मेयाम्भोज-दिवाकरादिविविध तक्कै च चचुश्चयो, प्रयत्न करेंगे। जैनेन्द्रादिकलक्षयाप्रणयने वक्षोऽनुयोगेषु च ॥१२ प्रस्तुत प्रन्थका नाम 'महापुराण कलिका' वा 'उपदेश- त्यक्त्वा सांसारिकी भूतिं किंपाकफलसलिभाम् । रत्न माला' है जिसके कर्ता कवि शाह ठाकुर हैं जो मूलसंघ चिन्तारत्ननिभा जैनी दीवां संप्राप्य तत्त्ववित् ॥३३ सरस्वतिगच्छके भट्टारक प्रभाचन्द्र पद्मनन्दी, शुभचन्द्र जिन- शब्दब्रह्मसरित्पति स्मृतिबालदुत्तीर्य यो लीलया, चन्द्र, प्रभाचन्द्र, चन्द्रकीर्ति और विशालकीर्तिके शिष्य थे। पटतर्कावगमार्ककर्कशगिरा जिस्वाखिलान-वादिनः । इनमेंसे भ० जिनचन्द्रका पट्टाभिषेक सं० १९०७ में दिल्लीमें प्राच्यां दिविजयी भव व विभुजैनप्रतिष्ठां कृते, हुना था। ये बड़े प्रभावशाली और विद्वान थे। इनके द्वारा श्रीसम्मेदगिरी सुवर्णकलशैः पहाभिषेकः कृतः ३५ प्रतिष्ठित भनेक मूर्तियां सं० १९४१, ११४५ और संवत्- श्रीमाभाचन्द्रगणीन्द्रपट्टे भहारकश्रीमुनिचंद्रकीर्तिः। १५४८ की मौजूद मिलती हैं। उनके पट्टपर प्रभाचन्द्र प्रति- संस्नापितो योऽवनिनाथवृन्दैः सम्मेवनाम्नीह गिरीद मूनि ॥ ष्ठित हुए थे। जो षट्तर्कमें निपुण तथा कर्कश वाग्गिराके द्वारा -मूलसंघ द्वितीय पहावली भास्कर भाग 1,कि. ३-४,
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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