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मुगलकालीन सरकारी कागज संग्रहालयमें सुरक्षित डा० जी० एन० सालेतोरने हाल में 'इंडियन सूचना प्रणाली भारकाईब्ज' पत्रमें मुगलोंके जमानेके कागजातके सूबेकी सभी खबरें वकिया-नवीस, खुफिया नवीस बारे में एक लेख प्रकाशित किया है मुगलोंके जमाने में और हरकारोंके जरिये बादशाहके पास पहुँचती थी। सभी सरकारी कार्रवाई कागजों पर लिखी जाती थी बादशाह स्वयं अखबार नवीसोंकी नियुक्ति करता था। और उनकी जिल्द बंधवाकर केन्द्र तथा सुबोंके संग्रहा- ये अखबार नवीस किसी वजीरके मातहत नहीं होते लयों में रखवा दी जाती थी। सभी कागज विधिवत थे। सूबोंके शासनकी सारी खबर बादशाहके पास गिनकर बमसे लगाकर, बंडलोंमें रखे जाते थे। पहुँचाई जाती थीं। हफ्ते में दो बार सवाना निगार, कागजोंको नत्थी करके, बंडलोंके दोनों तरफ लकड़ीकी और हफ्तेवारी खबर वाक्या नवीस लिखकर भेजते तख्ती लगा दी जाती थी। फिर उन्हें कपड़ोंके बस्तोंमें थे। महीनेवारी रिपोर्टको "अखबार' कहा जाता लपेटकर रख दिया जाता था। इन सब कागजोंसे था और उन्हें "हरकारे' तैयार करते थे। बादशाही व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। वकिया-नवीस या वकिया-निगार शासनके सरमुगल अभिलेख
कारी सम्वाददाता होते थे। ये हर फौज हर बड़े मुगल बादशाहोंके अभिलेख संग्रहमें सरकारी नगर और हर सूबे में तैनात किये जाते थे । इनके कार्रवाईके अभिलेख, सरकारी चिट्ठी-पत्री, माल, फाज आदमी परगने और अफसरोंकी खबरें इन्हें रोज देते और अदालतोंके कागजात तथा हुक्म, दरबारके फरमान थे। विदेश-स्थित दूतावासोंमें वकिया-नवीस और और सूचनाएं, सरकारी वकिया नवीसोंकी भेजी खबरें खुफिया-नवीस भेजे जाते थे। कभी-कभी एक ही व्यक्ति तथा हिसाब-किताब सम्बन्धी अन्य फुटकर आलेख, बक्शी और वकिया-नवीस होता था। वसीयतनामे आदि कागजात सुरक्षित हैं। इन अभि- सवाने-निगार या खुफिया-नवीस गुप्त भेषमें रहते लेखोंमें खास तरहकी स्याही और कागजात इस्तेमाल थे । महत्वपूर्ण मामलों में ये विशेष अफसरका काम किये गये हैं। इनका आकार प्रकार, लिखावट मुहर करते थे और ये वकिया-नवीसके गुप्त वरका काम भी
और लिफाफे भी खास किस्मके हैं। मुगल बादशाह करते थे। इन अभिलेखोंको अपने पास ही रखते थे। अकबर- वकिया नवीसके नाचे, कुछ उसी तरहका पदाधिने जब काबुल पर चढ़ाई की तो अपने साथ कागजात
कारी हरकारा होता था। हरकारेके अखबार में कहाभी ले गया था। सन् १६६२ में काश्मीर पर चढ़ाई
सुनी या हुई सभी बातें झूठी या सच्ची, कामकी चाहे करते समय औरंगजेब ने भी ऐसा ही किया।
बकार, सब दर्ज की जाती थीं। वह खबरोंको मुलायम अभिलेखोंके दफ्तर
कलमसे लिखता था। हरकारेस ऊँचा अफसर दरोगा
ए-हरकारा होता था। दफ्तरखानेकी व्यवस्था एक दरोगाके अधीन रहती थी, जो दीवान ए-आला (वजीर) को खास मात
डाकखाने हतोमें रहता था। कभी-कभी दफ्तर खाना वजीरके दरबारको सब खबर डाकखानेके अध्यक्ष, रोगा महलमें ही रखा जाता था। सूबोंके कागजात इसी ए-डाक-चौकीके मार्फत भेजी जाती थी । बाबरने १५प्रकार सुबोंके दीवानोंके अधीन रहते थे। २८में यामों (डाकघरों) की व्यवस्था की थी, जहाँ घोड़े
कभी कभी दूसरे देशोंके कागजोंकी प्रतियां भी और हरकारे रखे जाते थे। अकबरके १०.. डाक मुगल दफ्तरखानों में रखी जाती थी। ऐसे ही कागजातों- मेवरा थे। खफी खां के अनुसार ऐसे डाकिये सब में अकबरके श्रागरा स्थित संग्रहालयमें ईरानके शाह जगह नियुक्त थे। ताहमस्पके स्मार्च १५४४ के एक फरमानकी प्रति विदेशी यात्री पेलसर्टक कथनानुसार १६२७ में भी है।
हर ४-५ कोसके बाद ऐसे डाकिये थे जो हाथों हाथ