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________________ किरण ] पृथ्वी गोल नहीं चपटी है [१५१ स्वेजकी नहर लीजिये दोनों ओर समुद्र है, लेवल समान होती है। इसके विपरीत उत्तरके मार्कटिक प्रदेश में ऐसा क्यों ? यदि पृथ्वी गोल है तो उसकी स्वाभाविक गोलाईमें नहीं है। किनारोंकी अपेक्षा बीचका भाग १६६६ फुट ऊँचा होना केप्टन हाल नामक अन्वेषकका कहना है कि वहां बंदूकचाहिये । इसे दृप्टिमें रखकर यदि 'लाल सागर' से भूमध्य- की आवाज २० फुटकी दूरी पर मुश्किलसे सुनी जा सकती सागरकी तुलना करें तो भूमध्यसागर लालसागरसे केवल है। केप्टन मिल एक स्थान पर अपनी यात्राके प्रसंगमें ६ इंच ऊँचा होगा। लिखते हैं कि अटार्कटिक प्रदेशमें ४० मील अधिकसे साधारण पाठशालाओंमें पृथ्वीके गोल होनेका सबसे लोकप्रिय मनुप्यकी दृष्टि नहीं पहुँच सकती। उत्तरी ध्रुवके अन्वेषक उदाहरण समुद्रमं दूर जाते हुए जहाजसे दिया जाता है। इसके विपरीत कहते हैं कि वे १५० से २०० मील तक इस उदाहरणमें जहाज क्षितिजके पार छिपने जानेसे और मार्कटिक प्रदेशोंमें सरलतासे देख सकते थे। कवल मस्तूलके ऊपरका भाग दिखाई देनेसे पृथ्वीको गोलाई एक अमेरिकन साप्ताहिक पत्र 'हारपर्स वीकली' के प्रमाणित की जाती है, किन्त यह सचमच मिश्राम २. वीं अक्टूबर सन् १८६४ ई. के अङ्कमें सरकारी विषयके अपनी अखि गोल होनेसे दूरको वस्तु नुछ विपरीत हो अन्वेषणोंके विषयमें लिखा है कि उत्तरमें 'कोलोरेटो इलेदिखती हैं। क्शेन' से माऊँट उनकगी (१४४१८ फुट) से 'माउन्ट दृष्टभ्रमके कई उदाहरण हैं जिसे 'पपेक्टिव' कहते हैं। एलेन' (१४४१० फुट) तक अर्थात् १८३, मीलकी दूरी रेलकी पटरियों श्रागे भागे मिली हुई देखकर क्या कोई पर वे लोग हेलयोग्राफ (पालिश चढ़ाये शीशे) की सहायताअनुमान कर सकता है कि वे क्षितिजा पार जाकर मुड गई से समाचार भेजनेमें सफल हुए। हैं । वास्तव में यह बिन्दु जो दोनों परियोंको जोडता है, यदि पृथ्वी गोल होती तो उपयुक्त प्रयोग मिथ्या होता। इतना सृचम होता है कि हमारी साधारण दृष्टि उसके पार क्योंकि १८३ मीलकी दुरीमें मध्य भागसे पृथ्वीकी ऊँचाई नहीं पहुँच सकती। (गोलाईके कारण ) २२३०६ फुट हो जाती, जो सर्वथा असम्भव है । यदि पृथ्वी गोल होती तो इंगलिश चैनलके इस कारण यदि शक्तिशाली दूरवीरण यन्त्रसे दबा बीचमें खडे हए जहाजकी छत परसे फ्रांसीसी तटके और जाय तो निश्चय ही पूरा जहाज दिग्बाई देगा | क्या पानीकी ब्रिटिश तटके प्रकाशस्तम्भ ( लाइट हाउस) दोना हो स्पष्ट सतह गोल होने पर ऐमा दृष्टिगत होना ? यदि थी गोल दिखाई न देते । इसी प्रकार बैलूनमें बैठे हुए मनुष्यको होती तो भूमध्यरेग्याके नीचक भागोंम ५ बनाग कदापि पृथ्वी उन्नतोदर दिखाई पड़ती, किन्तु इसके विपरीत वह दिम्बाई न देता परन्तु दक्षिणमें ३० अक्षांशतक धनाग पृथ्वीको रकाबीकी भांति समान देखता है। मरलतापूर्वक देग्या गया है। यदि पृथ्वी गोल होनी तो सच पूछिये तो अब तक जितने मानचित्र बनाये गये हैं श्रार्कटिक और एटलांटिक सर्कलमें सामान परी नीन की कोई दोष अवश्य है और उनकी प्रणालियां महीनेको रान और तीन महीनेका दिन होता । किन्तु भी अपूर्ण हैं। वॉशिगटनक 'यूरो पाव नविगेशन' द्वारा प्रकाशिन 'नोटिकल- मर्केटर प्रोजेक्शन-यह काफमेन नामक जर्मन एलमैनक' नामक चांगके अनुसार दक्षिण ७० अक्षांश पर द्वारा प्राविकृत प्रणाली है। इसमें उत्तरी भाग अपने स्थित 'शेटलैंड' टापू पर सबसे बड़ा दिन १६ घगटे ५३ वास्तविक प्राकारसे बहुत बड़े हो जाते हैं। मिनट का होता है। उत्तरकी और ना में ७० अक्षांश पर (२) पोलबीड प्रणाली-यह प्रणाली मार्केटरसे 'हेमरफास्ट' नामक स्थानमें पूरे तीन महीनेका सबसे बड़ा बिलकल उलटी है। इसमें भिन्न-भिन्न भागोंका क्षेत्रफल तो दिन होता है। दिखाई पड़ता है किन्तु आकार बदल जाते हैं। यदि पृथ्वी गोल होती तो उत्तरी तथा दक्षिणी ध्र वोंमें (३) कोनीकल प्रोजेक्शन-इससे ध्रुबके निकटवर्ती व्यक्तिविषयक भिन्नता न होती। 'एटार्कटिक' प्रदेशमें ऊँचे प्राक्षांशोंका ठीक नकशा नहीं बन पाता और ध्रुवको पिस्तौलकी साधारण अावाज तोपकी आवाजकं ममान गूजती बिन्दु रूपमें नहीं दिखलाया जा सकता। लोनप्रणालोमें भी है और चट्टान टूटनेकी आवाज तो प्रलयनादसे भी भयंकर यह दोष है कि ध्र के समीप पृथ्वीके भाग परस्पर निकट
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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