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________________ १८० अनेकान्त [ वर्ष १३ १०,८०० मील होती, अर्थात् ४०,००० मीलके बजाय केवल कह सकते हैं कि उन्होंने वहां ३०० पौंडसे ४०० पौड तक१०,८०० मीलकी यात्रा पर्याप्त होती। का भार सरलतासे उठाया है। यदि पृथ्वी गोल होती तो यदि उपयुक्त सिद्धांत ठीक है तो भूमध्यरेखा निश्चय दक्षिणी ध्रुव भी उत्तरी ध्रवके समान ही प्रबल होता। ही भू की मध्यरेखा ही है। क्योंकि भूमध्यरेखा दक्षिणमें समुद्रादिमें लोहचुम्बक पहाद ऐसे हैं कि होकायंत्रकी समस्त देशांतर रेखायें उत्तरी भागके समान सँकरी न होकर चुम्बक सूईके भरोसमें हम भ्रममें रहकर पृथ्वी गोल होनेका चौड़ाई में बढ़ती ही जाती हैं। यहां कोई काल्पनिक आधार भ्रम और इतनी करीब ८०.. मील होनेका मान लिया नहीं, किन्तु अवलोकनीय सत्य है । कर्करखा ( २३॥ अंश है। हमारी पृथ्वीको बहुत बड़ा चुम्बक माना गया है और उत्तर, का एक अंश ४० मोलके लगभग है, किन्तु इसके इसीको चुम्बक शकिसे प्रभावित होकर चुम्बक सूई उत्तर विपरीत मकर रेखा २३॥ अंश दक्षिण) पर वही अंश ७५ ध्रुवके आकृष्ट होती है। मोलके लगभग होता है। यही नहीं, दक्षिगकी एटलांटिक ऐसी दशामें यदि पृथ्वी गोल हो तो भूमध्य रेखाके सरकिल पर तो यह आप बढ़कर १०३ मील हो जाता है। दक्षिणमें जाने पर चुम्बककी सूईको दक्षिणी ध्रुवकी ओर उत्तरी ध्रुवका समुद्र १०,००० से लेकर १३००० फुट घूम जाना चाहिये, पर ऐसा नहीं होता। इससे सिद्ध होता तक गहरा है, किन्तु पृथ्वी तल कहीं भी ५०० फुटसे उँचा है कि पृथ्वी अवश्य चपटी है, क्योंकि चुम्बककी सूई कहीं नहीं है। यदि केप्टन रामके वर्णनसे इसकी तुलना की जाय भी रहे, मध्य मार्गका निर्देश करती रहती है। साथ ही साथ तो ज्ञात होगा कि दचिणी ध्रुवके पहाड़ १०,००० से यह भी कह देना उचित होगा कि पृथ्वीके गोलेकी सबसे १६,.०० फुट तक उँचे हैं और समुद्रकी गहराई ४२३ बड़ी परिधि भूमध्यरेखाके नीचे है और सबसे छोटी उत्तरी फुट है। इस प्रमाणसे सिद्ध होता है कि पृथ्वी मध्यकी ध्रव पर। अपेक्षा उसका किनारा अधिक उन्नत है, पृथ्वीकी तुलना यदि पृथ्वीको गोल माने और उसकी परिधि २४,००० रकाबीसे की जाती है। मील माने तो २४ घंटेक हिमाबसे उसे अपनी धूरी पर एक इन्हीं सब बातों पर विचार करनेसे भूगर्भशास्त्रियोंने घंटेमें १००० मोल घूम जाना चाहिये, किंतु यह तीव्र गति नाशपाती (पीयर) से पृथ्वीकी उपमा दी है। क्योंकि उन्होंने इतनी प्रबल है कि धरातलकी प्रत्येक वस्तु चिथड़े होकर जान लिया है कि यह उत्तरी ध्रुव पर चिपटी है और दक्षिण छितरा जायगी।। ध्र वकी ओर खिंची हुई है । वे लोग स्पष्टतः क्यों नहीं यदि यह कहा जाय कि पृथ्वीको आकर्षण शक्रि ऐसा कहते कि पृथ्वीका प्राकार रकाबीके समान है। नहीं करने देती तो न्यूयार्कसे शिकागो तक (लगभग १००० पृथ्वीके चपटेपनका एक और प्रमाण सूर्यग्रहण है। मील) कोई भी मनुष्य बलूनमें घण्टेभर भी यात्रा कर उदाहरणार्थ ३० अगस्त सन् १९०५ ई. का ही ग्रहण सकता है। इसी प्रकार दो-तीन घंटेमें शिकागांसे लीजिये । यह पश्चिमी और उत्तरी अफ्रीका, उत्तरी अन्ध- सान्फ्रांसिसको तक यात्रा कर सकता है जो नितांत असमहासागर, ग्रीनलेण्ड, प्राइमलेगड, उत्तरी एशिया (साइ- म्भव है। बेरिया) और ब्रिटिश अमेरिकाके पूर्ण भागोंमें स्पष्ट दिखाई पृथ्वी घूमती हो तो पृथ्वीमेंसे अमुक स्थानसे सीधी पड़ा था। यदि पृथ्वी गोल होती तो अमेरिका और एशिया- ऊर्य एक मील तक बन्दुक द्वारा गोली छोड़ी। गोली एक में कभी एक साथ यह ग्रहण दिम्बाई न पड़ता। पृथ्वीका मिनट बाद नीचे पड़े, तो पृथ्वीको गति ८ मील चली गई गोला लेकर इस सरल समस्या पर स्वयं ही विचार किया माना है। तो गोली उसी स्थान पर क्यों गिरती है ? जाता है या जाना जा सकता है । और देखिये- अब उदाहरणके लिये 'ऐरिक' नामक नहरको ही लीजिथे। प्रयोगोंसे सिद्ध है कि ज्यों-ज्यों हम उत्तरी ध्रुबकी यह नहर लौकपोप्टसे रोचेटर तक ६० मील लम्बी है। ओर बढ़ते त्यों-त्यों पृथ्वीको आकर्षण शक्रि भी उत्तरोत्तर 'पृथ्वी गोल है। इस सिद्धान्तके अनुसार इस नहरके उभारकी बढ़ती प्रतीत होती है । उत्तरी ध्रुवके अन्वेषकोंका यह गोलाई, ६१० फुट होनी चाहिये । सिरोंकी अपेक्षा मध्यका कहना है कि ये वहाँ कठिनतासे १०० पौडका भार उठा उठाव २५६ फुट होना चाहिये। किन्तु स्टेट इंजीनियरकी सकते थे, किन्तु दक्षिणी ध्र वके अन्वेषक इसके विपरीत यह रिपोर्ट अनुकूल या अनुसार यह ऊँचाई ३ फुटसे भी कम है।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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