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________________ * अहम . धस्ततत्त्व-संयोत : विश्वतत्व-प्रकाशक ARTHRIT वार्षिक मूल्य ६) एक किरण का मूल्य ॥) Hatta - नीतिविगेधध्वंसी लोकगवहारवर्तकःसम्यक् । परमागमस्य चीज भुवनेकगुर्जयत्यनेकान्त वर्ष १३ किरण वारसेवामन्दिर, Coहिजेन लालमन्दिर, चांदनी चौक, देहली माघ, वार नि० संवत २४८१, वि० संवत २०११ जनवरो समन्तभद्र-भारती देवागम अनपेक्ष्ये पृथक्त्वैक्ये ह्यवस्तु द्वय हेतुतः । तदेवैक्यं पृथक्त्व च स्वभेदैः साधनं यथा ।। ३३ ।। 'एक दूसरे की अपेक्षा न रम्बने पाले पृथक्त्व और एकत्व चूकि हनुद्वयमे अवस्तु हैं-एकत्व निरपेक्ष होनेसे पृथक्वका और पृथक्व-निरपेक्ष होनेसे एकत्वका कहीं कोई अम्निच नहीं बनना-अनः एकत्व और पृथक्त्व सापेक्षरूपमं विरोधको प्राप्त न होनेसे उसी प्रकार वस्तुत्वको प्राप्त है जिस प्रकार कि साधन (हेतु)-माधन अपने पक्षधर्मत्व, सपसमें सच और विपक्षसे व्यावृत्तिरूप भेदों तथा अन्यय-व्यतिरकरूप भेदोंके साथ सापेक्षताक कारण विरोधको न रखते हुए वस्तुत्वको प्राप्त है।' सत्सामान्यात्त सर्वेक्यं पृथग्द्रव्यादि-भेदतः। मेदाम्मेद-विवक्षायामसाधारण-हेतुवत् ॥ ३४ ॥ ___(यदि यह कहा जाय कि पुकन्चके प्रत्यक्ष-वाशित होनेक कारण और पृथक्त्वक सहाथात्मकतासे बाधित होने के कारण प्रतीतिका निविषयपना है सब मन पदार्थोंमें पाव और पृथक्वको कै अनुभूत किया जा सकता है? तो यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि ) सत्ता-अस्तित्वमें समानता होनेकी दृष्टिस तो सब (जीवादि पदार्थ) एक है-इसलिये एकत्वकी प्रतीतिका रिपय मत्सामान्य होनम वह निविषय नहीं है-और द्रव्यादिक भेदकी दृष्टिस-इन्य, गुण और कर्मको अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी जुड़ी जुदी अपेक्षाको लेकर-सव ( जीवादि पदार्थ ) पृथक् हैं-इसलिये पृथक्त्वकी प्रतीतिका विषय म्यादि भेद होनेसे वह निविषय नहीं है । जिस प्रकार असाधारण हेतु अभेदकी दृष्टिसे एक रूम और भेदकी दृष्टि से अनेकरूप है उसी प्रकार सब पदार्थो में भेदकी विवक्षास पृथक्त्व और अभेदकी विवक्षासे एकत्व सुटित है।'
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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