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[श्री रामचन्द्रजी डाल्टनगंज वालोंका एक पत्र मुख्तार साहबके पास भाया है जिसे नीचे ज्यों का त्यों दिया जा रहा है। इस पत्रके साथ एक शिलालेखकी नकल भी भेजी है जिसमें उतारते समय कुछ अक्षरोकी गड़बड़ी हो गई है. इससे वह ठीक नहीं पढ़ा जा सका, उसका फोटो भाने पर वह ठीक ढंगसे पढ़ा जा सकेगा । उस लेख में मूर्तिको प्रतिष्ठित कराने वालेका उल्लेख है। और लेख एक हजार वर्षसे भी अधिक प्राचीन है । पत्र से ज्ञात होता है कि वहां पार्श्वनाथका प्राचीन मन्दिर रहा है। उस मन्दिरके पुरातन भवशेषोंकी खोज करनी चाहिये, सम्भव है वहां जैन संस्कृतिका कोई पुरातन अवशेष और उपलब्ध हो जाय।।
-परमानन्द जैन
श्रद्धेय श्री पं० जुगलकिशोर जी साहब,
करीब १. रोज हुए मैं अपने भतीजे चिरंजीव ज्ञानचन्दकी शादीमें रफीगंज गया था। रफीगंजसे करीब ३ मील दूर पर एक पहाड़ है। उस पहाड़ में एक गुफा है जिसमें श्री पार्श्वनाथ भगवानकी एक प्रतिमा विराजमान है। हम लोगोंने उस प्रतिमाके दर्शन करनेकी इच्छा प्रकट को तथा हमारे सम्बन्धी श्रीमान् चांदमल जी साहबने इक्केका तुरन्त प्रबन्ध कर दिया। हम लोग इक्केसे पहाड़की तलहटीमें बसे 'पंचार' नामक प्राम तक गये। तथा वहांसे एक लड़केको लेकर मन्दिरकी ओर रवाना हुए। पहाड़की चढ़ाई कोई विशेष नहीं है। तथा प्राचीनकालमें वह मन्दिर एक बहुत विशाल मन्दिर रहा होगा। क्योंकि जितनी दूरकी चढ़ाई है, उतने दूरमें पत्थरों के अलावा पुराने जमाने की ईटोका ढेर पड़ा है। तथा कहीं कहीं तो ऐसा मालूम पड़ता है कि भोतर कोई पोलो जगह हो । गुफाका प्रवेश द्वार अभी तक ज्यों का त्यों खड़ा है। उसके खम्भों पर नक्काशी इत्यादि बनी हुई है। अन्दर श्री पार्श्व प्रभुको प्रतिमा विराजमान है । जो आसन तक जमीनमें धंस गई है। प्रतिमा पद्मासन अवस्थामें है। फन किसी विधर्मीने तोड़ दिये हैं। वहांके देहात वाले इस प्रतिमाको 'लका बोर' कह कर पूजते हैं। तथा प्रतिमा पर सिन्दूर वगैरह लगा दिया है। इसी गुफासे एक प्रतिमा रफीगंज के श्रावक ले गये थे जो वहांके मन्दिरजीमें विराजमान है।
उस गुफामें एक और प्रतिमा हम लोगोंके देखने में आई। इसमें एक पत्थरके ऊपर पांच अरहत प्रतिमा उकेरी हुई है। तथा प्रतिमाओंके नोचे एक यक्षणीको मूर्ति है। तथा उसके नाचे पाली भाषाका एक शिजालेख है। एक ही पत्थर पर तोनों चीजें बनी हुई हैं। उस शिलालेखको नकल आपके पास भेज रहे हैं। कृपया इसे आप 'अनेकान्त' में प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।
इस शिलालेख वाले पत्थर के लिये हमारे भतीजे चि० कमलकुमारने जिद की कि इसे हम लोग डालटनगंज ले चलेंगे। इसलिये हम तथा भाई गुलाबचन्द जी तथा धर्मचन्द और कमलकुमार बड़ी कोशिशके साथ पहाडसे इसे उतारकर रफीगंज तक लेते आये। लेकिन यहांके पंचोंको जब इसके बारे में पता लगा तो वे झगड़ा करनेके लिये तैयार हो गये तथा लाचार होकर उस प्रतिमाको रफीगंजके पंचोंके ही हवाले कर दिया है।
सुनने में आया है कि एक पाली भाषाका शिलालेख रफीगंजमें पंडित गोपालदासजी जैन शास्त्रीके पास भी है जिसमें सम्राट् श्रेणिक उल्लेख है। अगर ऐसी बात होगी तो हमारे समझसे यह शिलालेख भी २५०० वर्षे पहलेका होना चाहिये । आप इस विषय पर पूरा उल्लेख अपने पत्र 'अनेकान्त' में प्रकाशित करें ऐसी हमारी इच्छा है। ____ इस गुफामें घुसते वक्त दाहिने हाथकी ओर देवनागरी भाषाका एक लेख पत्थर पर उकेरा हुआ है। जिसमें नीचे लिखे वाक्य हैं:
माणिकभद्र नमः...... .........."श्री पार्श्वनाथ..... डालटनगंज
मापका ता०१६-१२-५४
रामचन्द्र जैन